यूपी चुनाव : 2012 का परिणाम आया तो चौंक उठे लोग
प्रदेश में बसपाराज से उकताये मतदाताओं ने समाजवादी पार्टी पर पांच वर्ष बाद फिर भरोसा जताया। रिकार्ड सीट (224) हासिल होने पर सपा को पहली बार बहुमत की सरकार बनाने का मौका मिला।
By Dharmendra PandeyEdited By: Updated: Fri, 10 Mar 2017 05:37 PM (IST)
लखनऊ (अवनीश त्यागी)। उत्तर प्रदेश प्रदेश की जनता ने खंडित जनादेश की परम्परा को वर्ष 2012 के चुनाव में भी न पनपने दिया। प्रदेश में बसपाराज से उकताये मतदाताओं ने समाजवादी पार्टी पर पांच वर्ष बाद फिर भरोसा जताया।
रिकार्ड सीट (224) हासिल होने पर सपा को पहली बार बहुमत की सरकार बनाने का मौका मिला। बसपा सरकार की नाकामियों के अलावा समाजवादी पार्टी में नए चेहरे के तौर पर अखिलेश यादव को सामने लेकर आने का चुनावी लाभ भी मिला था। सपा के यादव-मुस्लिम समीकरण की मजबूती के साथ पिछड़ों और सवर्ण वर्ग का भी झुकाव होने से वोट प्रतिशत वर्ष 2007 की तुलना में भले ही 3.72 फीसद बढ़ा हो लेकिन सीटों का आंकड़ा 97 से बढ़कर 224 को छू गया।
समाजवादी पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह भले ही कभी पूर्ण बहुमत सरकार में मुख्यमंत्री नही बन सके परंतु उन्होंने अपने पुत्र अखिलेश यादव को बहुमत की सरकार बचाने का मौका संगठन में आंतरिक विरोध को दरकिनार करते हुए दिया। बहुमत की सपा सरकार बनवाने की चाबी बसपा ने ही सौंपी थी। पांच साल के बसपा शासनकाल में भ्रष्टाचार के आरोपों का बोलबाला इस कदर रहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के अपने अनेक मंत्रियों और विधायकों के खिलाफ कार्रवाई करनेपर भी डैमेज कंट्रोल नहीं हो सका। एनआरएचएम घोटाले की गूंज अब तक कायम है। इसके अलावा एससी- एसटी एक्ट के दुरुपयोग ने भी बसपा को भारी क्षति पहुंचायी। गांव-गांव में एक्ट के नाम पर दर्ज कराए अंधाधुंध मुकदमों का आक्रोश वर्ष 2012 में वोट के रूप में फूटा। आम जनता के गुस्से को भुनाने में भारतीय जनता पार्टी अथवा कांग्रेस कामयाब नहीं हो सकी।
भाजपा के एनआरएचएम घोटाले में मुख्य आरोपी पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को पार्टी में शामिल करने का प्रयास आत्मघाती साबित हुआ। बसपा प्रमुख मायावती के बेहद करीबी माने जाने वाले बाबू सिंह से मिली बदनामी से पीछा छुड़ाने की भाजपा नेतृत्व ने हर संभव कोशिशें की परंतु चुनावी नुकसान कम नहीं हो सका।
उधर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भट्टा पारसौल जैसे किसान आंदोलनों के जरिए प्रदेश की जनता का विश्वास लौटाने की कोशिशें की परंतु कारगर न हो सकी। भूमि अधिग्रहण कानून बनाने जैसे टोटके भी फेल साबित हुए। ऐसी परिस्थितियों में जनता ने समाजवादी पार्टी को मजबूत विकल्प मानते हुए बसपा से अधिक सीटों पर जिताते हुए सपा की रिकार्ड बहुमत वाली सरकार बनवा दी। भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम में पूर्व सांसद डीपी यादव को सपा में शामिल नहीं करने की अखिलेश यादव की जिद भी जनता को पंसद आई।
मुस्लिमों के साथ अगड़ों का समर्थन भी ताकत बना
वर्ष में 2012 में सपा को मुसलमानों का एकजुट वोट मिला था। लगभग 125 सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाने वाले मुस्लिम वोटरों को मुलायम सिंह यादव में अपना सच्चा रहनुमा दिखा। मुस्लिम सियासत की नब्ज पहचाने वाले सलीम भारती का कहना है कि 2007 में बसपा को पांच वर्ष के लिए बहुमत की सरकार बनाने का मौका देने के बाद भी मुस्लिमों ने खुद ठगा महसूस किया। पांच वर्ष के बसपा के शासन में स्मारक और घोटाले ही छाए रहे हैं। उधर, कांग्रेस की दयनीय स्थिति बने रहने के कारण मुसलमानों को समाजवादी पार्टी के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
अगड़ों को भी साइकिल ही भाई
वर्ष 2007 में सवर्ण समाज को ज्यादा प्रतिनिधित्व देकर सत्ता में आने वाली बसपा अपने नए वोटबैंक भी संतुष्ट न कर सकी। वर्ष 2007 में बसपा के 41 ब्राह्मण उम्मीदवार चुनाव विजयी हुए थे लेकिन पांच वर्षीय शासनकाल में सवर्णों में जनाधार बढ़ाने का काम न हो सका। बसपा की सवर्ण समाज को जोडऩे की रणनीति चंद परिवारों तक ही सिमट कर रह गयी। सवर्णो में नाराजगी का लाभ भी सपा को मिला। सपा के टिकट पर 21 ब्राह्मणों ने विधानसभा की देहरी लांघी और सपा की बहुमत की सरकार बनाने मे मदद की, जबकि बसपा के सिर्फ 10 ब्राह्मण उम्मीदवार जीत हासिल कर सके।
हालांकि ब्राहमण जोडों अभियान के संयोजक बीडी स्वामी का कहना है कि समाजवादी पार्टी के पांच वर्ष के शासनकाल में ब्राह्मणों के लिए अधिक कुछ नहीं हो सका।
वर्ष 2012 के चुनावी नतीजे
पार्टी चुनाव लड़े जीते मत फीसद
सपा 401 224 29.29
बसपा 403 80 25.95
भाजपा 398 47 15.21
कांग्रेस 355 28 11.63 ।