ममता के लिए कहीं 'ओवैसी' तो साबित नहीं होंगे अब्बास सिद्दीकी, जानें इसकी वजह और बदलता समीकरण
West Bengal Election 2021 आइएसएफ के मुखिया और फुरफुराशरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की हुंकार बंगाल के लगभग 30 फीसद अल्पसंख्यक वोटों पर एकमुश्त कब्जे की कोशिश में लगीं ममता बनर्जी को परेशान कर सकती है। जानें कैसे...
By Krishna Bihari SinghEdited By: Updated: Thu, 08 Apr 2021 07:05 AM (IST)
आशुतोष झा, कोलकाता। शाम का वक्त और लगभग पांच-छह हजार लोगों की भीड़। हावड़ा के सकरैल विधानसभा क्षेत्र से मैदान में तो माकपा के उम्मीदवार हैं लेकिन इंतजार है आइएसएफ के मुखिया और फुरफुराशरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी का। उनके आते ही अल्पसंख्यक युवाओं में जोश आ जाता है। वह आते हैं और कहते हैं, 'हमने पहली बार वोट डाला है और इसका श्रेय सुरक्षाबलों को जाता है।' यानी वह सीधे सीधे फर्जी वोटिंग का आरोप लगाते हैं।
तुष्टीकरण के खिलाफ उठा रहे आवाजवह आगे कहते हैं, तृणमूल और बीजमूल यानी तृणमूल और भाजपा दोनों सांप्रदायिक हैं। वह लगातार अपने भाषणों में तुष्टीकरण के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं और ममता पर यह आरोप लगा रहे हैं कि वह मुस्लिमों को भीख पर निर्भर रखना चाहती हैं। उनकी हर बात पर ताली बजती है और युवा मुट्ठी बांधकर अपना समर्थन जताते हैं।
भरमा सकता है यह जोश
यह जोश भरमा सकता है क्योंकि वाम-कांग्रेस-आइएसएफ का जोत कुछ सीमित क्षेत्रों के अलावा कहीं लड़ाई में नहीं दिख रहा है लेकिन बंगाल के लगभग 30 फीसद अल्पसंख्यक वोटों पर एकमुश्त कब्जे की कोशिश में लगीं ममता बनर्जी को जरूर परेशान कर रहा है।
ओवैसी ने बदल दिया था समीकरणपीरजादा वही बातें कर रहे हैं जिसकी चर्चा है। तुष्टीकरण की बातें वह स्वीकार रहे हैं और मुस्लिमों के पिछड़ा रहने का आरोप लगा रहे हैं। अभी कुछ महीने पहले की ही बात है जब बिहार विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल के इलाके में पांच सीटें जीतकर एआइएमआइएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने पूरा समीकरण बदल दिया था।
मतों के विभाजन में हो सकते हैं मददगारबंगाल में वाम और खुद की पार्टी के लिए प्रचार कर रहे अब्बास सिद्दीकी 'ओवैसी' बन पाएंगे यह कहना तो मुश्किल है, लेकिन यह मानने से गुरेज नहीं होना चाहिए कि उनका एक समर्थक वर्ग है और वोटों के विभाजन में अहम साबित हो सकते हैं।भाजपा के नेता भी रख रहे नजरदक्षिण बंगाल के कुछ जिलों में भाजपा के नेता भी उनके भाषणों पर नजर रख रहे हैं और कुछ मामलों में उत्साहित भी हो रहे हैं। ममता को इसी बात का डर था और इसीलिए आखिरी वक्त तक परोक्ष रूप से अब्बास को रोकने की कोशिश होती रही थी। ममता के लिए राहत की बात सिर्फ इतनी है कि अब्बास सिद्दीकी का प्रभाव क्षेत्र भी सीमित है। वह खुद 30 सीटों पर चुनाव लड़े रहे हैं जबकि वाम लगभग 150 और कांग्रेस बाकी सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
कांग्रेस और वाम का सीमित जोरदूसरी बात यह कि कांग्रेस और वाम का जोर सिर्फ उन सीटों पर ज्यादा है जहां से उन्हें ठोस भरोसा है। यानी विधानसभा की लगभग आधी सीटों पर जोत का बहुत ध्यान नहीं है। शायद यही कारण है कि बंगाल की सड़कों पर आप घंटों घूमते रहें तब ही संभव है कि कहीं आपको कभी सत्ता में रह चुकी कांग्रेस और 35 साल तक एकछत्र राज करने वाले वामदलों की कोई गतिविधि तो दूर, कोई झंडा पोस्टर भी दिखे।
अहम कड़ी साबित हो सकते हैं अब्बासबड़े चुनावी बैनर की बात की जाए तो केवल ममता ही ममता दिखेंगी क्योंकि तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा के लिए यह अवसर ही नहीं छोड़ा कि उसे विज्ञापन के लिए कोई बड़ी जगह मिले। नजरों से ओझल कर विरोधी दलों को मतदाताओं की स्मृति से भी बाहर करने की तृणमूल की कोशिश को जोत ने धक्का दे दिया है और उसमें अहम कड़ी शायद अब्बास साबित हों।