Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

सौंदर्य की अलौकिक अनुभूति सत्यं शिवम् सुंदरम्

सौंदर्य शाश्वत है। सुंदर तन और मन के मणिकांचन संयोग से सौंदर्य अमरत्व पाता है। रीतिकाल से आधुनिक काल तक सौंदर्य को अपने शब्दों से अभिव्यक्ति देने वाले साहित्यकार की कल्पना को रेखांकित करता अभय कुमार का आलेख..

By Keerti SinghEdited By: Updated: Sun, 16 Oct 2022 02:36 PM (IST)
Hero Image
जिंदगी उम्र के हिसाब से ढल सकती है, लेकिन छवि के रूप में अप्रतिम सौंदर्य तो अमर हो जाता है

 यदि आप मानसिक रूप से समृद्ध होंगे तो इस सौंदर्य की अलौकिक अनुभूतियों से आनंदित हो सकते हैं। सौंदर्य शाश्वत है। सुंदर तन और मन के मणिकांचन संयोग से सौंदर्य अमरत्व पाता है। शरीर नश्वर हो सकता है, जिंदगी उम्र के हिसाब से ढल सकती है, लेकिन छवि के रूप में अप्रतिम सौंदर्य तो अमर हो जाता है।

क्या आप फिल्म मुगल-ए-आजम की नायिका मधुबाला को भूल सकते हैं? क्या असंख्य दर्शक मधुबाला के मर्यादित सौंदर्य की आभा से आप्लावित नहीं हुए होंगे! लेकिन बहुत सी नायिकाओं का सौंदर्य जाने क्यों चिर स्मृति के रूप में नहीं रह पाता। इसी तरह क्या आप पिकासो के चित्र की मोनालिसा को भूल सकते हैं! सौंदर्य के साथ मर्यादा का संगम भी होना आवश्यक है। क्योंकि सौंदर्य जब अपनी पूर्णता में हो तो अलौकिक और आध्यात्मिक होता है। माता सीता की अनुपम छवि हो या राधा जी का सौंदर्य दोनों अपने आप में अलौकिक, आध्यात्मिक और शाश्वत हंै।

रीतिकाल में प्रेम और सौंदर्य के कवि बिहारीलाल नायिका के सौंदर्य के संबंध में एक दोहा कहते हैं-

'भूषण भार संभारिहैं, क्यों यह तन सुकुमार।

सूधो पांय न पड़त महि, शोभा ही के भार।Ó

कवि कहता है कि तुम्हारे सौंदर्य के बोझ से तुम्हारा शरीर ही नहीं संभल पा रहा है तो तुम्हारा शरीर आभूषणों का बोझ कैसे सहन कर पाएगा! प्रेम और सौंदर्य अमर होता है, जिसका दर्शन यौवनकाल में होता है। लेकिन, बुढ़ापे का सौंदर्य भी कम आकर्षक नहीं होता, यदि वह पवित्र भावों से निर्मित हो। इस संदर्भ में मैं सुप्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन की इन पंक्तियों को उद्धृत कर रहा हूं-

'मैं सुख पर, सुषमा पर रीझा,

इसकी मुझको लाज नहीं है।

जिसने फूलों में रंग भरा

पहले वो शरमाए....Ó

धरती पर ऐसा कौन मनुष्य होगा, जो सौंदर्य-दर्शन से रसमय नहीं हुआ होगा, लेकिन यह वासना से कोसों दूर होना चाहिए। 'उर्वशीÓ में कविवर दिनकर ने लिखा है-

'दृष्टि का जो पेय है, वह रक्त का भोजन नहीं है,

रूप की आराधना का मार्ग आलिंगन नहीं है।Ó

संपूर्ण प्रकृति में सौंदर्य बिखरा पड़ा है, जो नित्य नूतन स्वरूप प्राप्त करता है। सौंदर्य युगों से सत्य रहा है, सत्य रहेगा और शाश्वत भी।