10th Jagran Film Festival: बाल मजदूरी की व्यथा की मर्मिक ‘झलकी’, दर्शकों ने फिल्म को सराहा
बाल मजदूरी करने वाले हर बच्चे के साथ एक कहानी जुड़ी हुई है कि उन्हें कैसे मानव तस्करी का शिकार बनाया गया। ऐसे ही एक बाल मजदूर की जिंदगानी से प्रेरित है फिल्म ‘झलकी’ की कहानी।
By Rahul soniEdited By: Updated: Sat, 20 Jul 2019 07:05 PM (IST)
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। 10वां जागरण फिल्म फेस्टिवल नई दिल्ली में चल रहा है। तीसरे दिन कई फिल्मों की स्क्रीनिंग हुई। इसमें से एक फिल्म का नाम है झलकी। इस फिल्म को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मंचों पर काफी सराहना मिली है।
एक समय था जब बंधुआ बाल मजदूरी पर उद्योग माफिया अपना अधिकार समझते थे। दिल्ली, बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के कई इलाकों में फैली यह कुप्रथा वर्षों तक कायम रही। बीती सदी के आठवें दशक के दौरान इसके खिलाफ मुहिम की शुरुआत हुई। नोबल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने ‘बचपन बचाओ अभियान’ के तहत तकरीबन दो लाख बच्चों को केवल कारपेट उद्योग से छुड़वाया। बाल मजदूरी करने वाले हर बच्चे के साथ एक कहानी जुड़ी हुई है कि उन्हें कैसे मानव तस्करी का शिकार बनाया गया। ऐसे ही एक बाल मजदूर की जिंदगानी से प्रेरित है फिल्म ‘झलकी’ की कहानी। इस फिल्म को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मंचों पर काफी सराहना मिली है।वास्तविक जीवन से प्रभावित इस कहानी में एक बारह साल की लड़की किस तरह से अपने छोटे भाई को मुक्त करवाने के लिए हर स्तर पर संघर्ष के दौर से गुजरती हुई अंत में न केवल अपने भाई को छुड़ाने में सफलता हासिल करती है बल्कि उसके साथ अन्य बच्चों को भी उनके माता पिता से मिलवाती है। इस फिल्म के डिस्ट्रीब्यूटर व और ‘बचपन बचाओ’ आंदोलन के कार्यकर्ता राकेश सेंगर ने बताया कि फिल्म का कॉन्सेप्ट और स्क्रीन प्ले प्रकाश झा और निर्देशक ब्रह्मानंद सिंह का है। इसकी शुरुआत सन 2001 में शिक्षा यात्रा के दौरान हुई। इस दौरान प्रकाश झा ने बच्चों से मुलाकात की और उनकी कहानी जानी। राकेश के मुताबिक बिहार के गढ़वा, पलामू, सहरसा, अररिरया, खगड़िया और दरभंगा जैसे स्थानों पर कारपेट इंडस्ट्री में तकरीबन तीन लाख बच्चे काम करते थे। इनको छुड़वाने की मुहिम के बाद कैलाश सत्यार्थी को नोबल पुरस्कार मिला तो इस मुद्दे को हवा मिली और फिर जागरूकता आई। सुप्रीम कोर्ट ने बाल मजदूरी से जुड़े कई अहम फैसले लिए और बाल मजदूरी अधिनियम में भी बदलाव किए गए।
राकेश के मुताबिक बदलाव की इस बयार के बाद अब बच्चों को छुड़वाने के लिए इतना संघर्ष नहीं करना पड़ता और 24 घंटे के भीतर यह काम हो जाता है। पहले इसके लिए कई बार उनकी टीम पर हमले भी हुए और लोग इस मुद्दे पर फिल्म बनाते हुए डरते थे। इस फिल्म में गाने पौराणिक किस्सों पर आधारित है जो कि खासा आकर्षित करते हैं।यह भी पढ़ें: 10th Jagran Film Festival: ऐसी दीवानगी देखी नहीं कहीं, तीसरे दिन दर्शकों का जमावड़ा