न कोई खलनायक, न मारपीट, फिर भी इन कारणों से आज तक हिट है 'हम आपके हैं कौन', रिलीज को 30 साल हुए पूरे
न कोई खलनायक न गोली-बारूद फिर भी एक फिल्म ने पूरी इंडस्ट्री के आयाम बदल दिए और प्रभावित कर गई दर्शकों के हर वर्ग को। ‘हम आपके हैं कौन’ ने परिवारिक स्पर्श को जीवंत किया तो वहीं इस फिल्म में दिखाए गए परिधानों से लेकर रीति-रिवाजों और रस्मों को घर-घर में चर्चित कर दिया। आज 30 वर्ष बाद भी ताजा महसूस होने वाली इस फिल्म पर अनंत विजय का आलेख...
अनंत विजय, मुंबई। देश में 1991 में आर्थिक उदारीकरण का दौर आरंभ हुआ तो उसने अर्थव्यवस्था के अलावा समाज पर भी गहरा प्रभाव छोड़ा था। उदारीकरण के कारण विदेशी फिल्में और सीरियल्स भी सुलभ हुए। इससे पश्चिम की खिड़की खुली। वहां की संस्कृति से परिचय हुआ।
'हम आपके हैं कौन' के 30 वर्ष पूरे
भारतीय मनोरंजन जगत पर भी प्रभाव पड़ा। पश्चिम को आधुनिक बताने का विमर्श आरंभ हुआ। परिणाम ये हुआ कि हमारा समाज संयुक्त परिवार से एकल परिवार की ओर बढ़ा। खान-पान, वेशभूषा में परिवर्तन दिखने लगा। हिंदी सिनेमा भी इससे अछूता नहीं रहा। नायिकाओं के कपड़े पश्चिम की तर्ज पर बनने लगे। कहना गलत न होगा कि समाज और सिनेमा दोनों जगह पश्चिम का अंधानुकरण आरंभ हुआ। ऐसे में 1994 में एक फिल्म आती है, ‘हम आपके हैं कौन’।
यह भी पढ़ें: Father's Day 2024: संजय दत्त से लेकर माधुरी दीक्षित तक, सेलेब्स ने फादर्स डे पर ऐसे किया अपने पिता को विश
परंपरा को किया स्थापित
यह फिल्म न केवल व्यावसायिक रूप से सफल हुई बल्कि इसने भारतीय परिवार परंपरा को स्थापित भी किया। सूरज बड़जात्या ने इस फिल्म को लिखा और निर्देशित किया। बड़जात्या परिवार पारिवारिक फिल्में बनाने के लिए ही जाना जाता है। फिल्म ‘हम आपके हैं कौन’ में जिस प्रकार से विवाह, गोदभराई की रस्मों को दिखाया गया, उसने भारतीय जनमानस को गहरे तक प्रभावित किया। इस फिल्म की नायिका माधुरी दीक्षित ने जिस तरह से चुलबुली लड़की निशा का अभिनय किया या इन रस्मों में भागीदारी की, उसने इन रस्मों को हिंदू परिवारों में स्थापित कर दिया।अपनी जड़ों की ओर लौटने को मजबूर करती फिल्म
शादियों में वर के जूते छुपाना और साली का अपने होने वाले जीजा से जूते के बदले पैसे मांगना, वर पक्ष के लड़कों का जूता खोजना, फिर वर और वधु दोनों पक्षों में नोंक-झोंक होना को इस फिल्म की विशेषता के तौर पर रेखांकित किया गया। माधुरी दीक्षित ने तब एक इंटरव्यू में स्वीकार भी किया था कि यह फिल्म दर्शकों को अपनी जड़ों की ओर लौटने के लिए प्रेरित करती है, पूरे परिवार को साथ रहने व जीने की सीख भी देती है।
अगर इस फिल्म पर विचार करें तो इसमें न तो कोई खलनायक है, न ही मार-पीट, खून-खराबा है, न ही गोलियों की तड़तड़ाहट है। इस फिल्म में है कर्णप्रिय संगीत और गाने। लता मंगेशकर के स्वर में ‘माय नि माय’ और लता और एस. पी. बालासुब्रह्ण्यम का युगल गीत ‘दीदी तेरा देवर दीवाना’ बेहद लोकप्रिय हुआ था।