मुकेश: जाने कहां गए वो दिन..
यह भी दुखद संयोग है कि आज ही के दिन फिल्मों से जुड़ी दो बड़ी हस्तियां दुनिया से विदा हुई। एक थे ऋषिकेश मुखर्जी तो दूसरे सदाबहार गायक मुकेश। राजकपूर की आवाज कहे जाने वाले मुकेश के निधन पर राजसाहब ने कहा था, 'मेरी आवाज और आत्मा दोनों चली गई।'
By Edited By: Updated: Tue, 27 Aug 2013 12:00 PM (IST)
यह भी दुखद संयोग है कि आज ही के दिन फिल्मों से जुड़ी दो बड़ी हस्तियां दुनिया से विदा हुई। एक थे ऋषिकेश मुखर्जी तो दूसरे सदाबहार गायक मुकेश। राजकपूर की आवाज कहे जाने वाले मुकेश के निधन पर राजसाहब ने कहा था, 'मेरी आवाज और आत्मा दोनों चली गई।'
जीवन परिचय इंजीनियर पिता के यहां 22 जुलाई, 1923 को दिल्ली में जन्मे मुकेश के घर में संगीत से किसी का नाता नहीं था। मुकेश के बेटे नितिन मुकेश गायक है और पोते नील नितिन मुकेश बॉलीवुड के चर्चित अभिनेता हैं। इनके पिता जोरावर चंद्र माथुर इंजीनियर थे। परिवार की मर्जी के खिलाफ शादी
946 में मुकेश की मुलाकात एक गुजराती लड़की बची बेन (सरल मुकेश) से हुई। दोनों में प्रेम हो गया। मुकेश कायस्थ थे इसलिए परिवार इस शादी के लिए राजी नहीं था, लेकिन मुकेश दोनों परिवारों के तमाम बंधनों की परवाह न करते हुए अपने जन्मदिन 22 जुलाई, 1946 को सरल के साथ शादी के अटूट बंधन में बंध गए। रामभक्त मुकेश
मुकेश के बेटे नितिन मुकेश के अनुसार, वो भगवान श्रीराम के परम भक्त थे और प्रतिदिन सुबह रामचरित मानस का पाठ किया करते थे, जिसे वे हमेशा अपने पास रखते थे। मुकेश बेटे नितिन मुकेश को गायक नहीं बनाना चाहते थे क्योंकि उनकी नजर में गायन एक सुंदर रुचिकर, मगर बड़ा कष्टदायक व्यवसाय है। मुकेश को अपने दो गीत बेहद पसंद थे- जाने कहां गए वो दिन.. और दोस्त-दोस्त ना रहा.। फिल्मों ने बनाया स्टार सिंगरमुकेश की आवाज की खूबी को उनके एक दूर के रिश्तेदार मोतीलाल ने तब पहचाना, जब उन्होंने उन्हें अपनी बहन की शादी में गाते हुए सुना। मोतीलाल उन्हें बंबई अपने घर ले गए और मुकेश के लिए रियाज का पूरा इंतजाम किया। सुरों के बादशाह मुकेश ने अपना सफर 1941 में शुरू किया। निर्दोष फिल्म में मुकेश ने अदाकारी करने के साथ-साथ गाने भी खुद गाए। उन्होंने इसके बाद माशूका, आह, अनुराग और दुल्हन में भी बतौर अभिनेता काम किया। उन्होंने सब से पहला गाना दिल ही बुझा हुआ हो तो गाया था। मुकेश का सफर तो 1941 से ही शुरू हो गया था, मगर एक गायक के रूप में उन्होंने अपना पहला गाना 1945 में फिल्म पहली नजर में गाया। उस वक्त के सुपर स्टार माने जाने वाले मोतीलाल पर फिल्माया जाने वाला गाना दिल जलता है तो जलने दे हिट हुआ था। मुकेश का अंदाजकेएल सहगल की आवाज में गाने वाले मुकेश ने पहली बार 1949 में फिल्म अंदाज से अपनी आवाज को अपना अंदाज दिया। उसके बाद तो मुकेश की आवाज हर गली हर नुक्कड़ और हर चौराहे पर गूंजने लगी। प्यार छुपा है इतना इस दिल में, जितने सागर में मोती और डम-डम डिगा-डिगा जैसे गाने संगीत प्रेमियों के जुबान पर चलते रहते थे। एक्टिंग में रहे फ्लॉपमुकेश ने एक्टिंग भी की, लेकिन एक के बाद एक तीन फ्लॉप फिल्मों ने उनके सपने को चकनाचूर कर दिया और मुकेश यहूदी फिल्म के गाने में अपनी आवाज देकर फिर से फिल्मी दुनिया पर छा गए।
राज कपूर की आवाज बन गए मुकेश 947 में फिल्म नीलकमल से मुकेश को राजकपूर के लिए आवाज देने का पहले मौका मिला। इसी दौरान नौशाद ने मुकेश को अपनी गायन की एक अलग शैली विकसित करने की सलाह दी, जिससे मुकेश की अपनी एक अलग पहचान हो। फिल्म आग के बाद मुकेश राज कपूर की आवाज बन गए। यह दो जिस्म और एक जान का अनूठा संगम था। मुकेश तो पहले से ही राज के लिए फिल्म नीलकमल में- आंख जो देखे.. गा चुके थे। उन्होंने अपनी जिंदगी का आखिरी गीत- चंचल, शीतल, निर्मल कोमल.. भी राजकपूर की सत्यम, शिवम, सुंदरम फिल्म के लिए रिकॉर्ड करवाया। यह गीत उन्होंने अमेरिका के लिए रवाना होने से कुछ घंटे पहले रिकॉर्ड करवाया था। इस जोड़ी ने न जाने कितने अनगिनत यादगार गीत दिए। जैसे छोड़ गए बालम.., जिंदा हूं इस तरह.., रात अंधेरी दूर सवेरा.., दोस्त-दोस्त ना रहा.., जीना यहां मरना यहां.., कहता है जोकर.., जाने कहां गए वो दिन..। मुकेश के निधन की खबर सुनकर राज सन्न रह गए और उनके मुंह से निकल पड़ा- मैंने अपनी आवाज खो दी। दर्दभरे नगमेमुकेश ने गाने तो हर किस्म के गाए, मगर दर्द भरे गीतों की चर्चा मुकेश के गीतों के बिना अधूरी है। उनकी आवाज ने दर्द भरे गीतों में जो रंग भरा, उसे दुनिया कभी भुला नहीं सकेगी। ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना (फिल्म बंदिनी से), दोस्त दोस्त ना रहा (फिल्म संगम से), जाने कहां गए वो दिन (फिल्म मेरा नाम जोकर से), मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने (फिल्म आनंद से), कभी-कभी मेरे दिल में खयाल आता है (फिल्म कभी-कभी से), चंचल शीतल निर्मल कोमल (फिल्म सत्यम शिवम सुंदरम से) जैसे गाने गाकर प्यार के एहसास को और गहरा करने में कोई कसर ना छोड़ी। निधन मुकेश का निधन 27 अगस्त, 1976 को दिल का दौरा पडऩे के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ। मुकेश के गीतों की चाहत उनके चाहने वालों के दिलों में सदा जीवित रहेगी। उनके गीत हम सबके लिए प्रेम, हौसला और आशा का वरदान हैं। मुकेश जैसे महान गायक न केवल दर्द भरे गीतों के लिए, बल्कि वो तो हम सबके दिलों में सदा के लिए बसने के लिए बने थे। उनकी आवाज का अनोखापन, भीगे स्वर संग हल्की-सी नासिका लिए हुए न जाने कितने संगीत प्रेमियों के दिलों को छू जाती है। वो एक महान गायक तो थे ही, साथ ही एक बहुत अच्छे इंसान भी थे। वो सदा मुस्कुराते रहते थे और खुशी-खुशी लोगों से मिलते थे।
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