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डायरेक्टर की बात का मान रखते हुए अभिनेता के.के रैना ने आज तक नहीं देखी ये अमेरिकन फिल्म

आज के समय में एक्टर्स और कई डायरेक्टर्स के बीच अनबन की खबरें आती रहती हैं लेकिन इंडियन फिल्म इंडस्ट्री में एक समय ऐसा था जब कोई भी कलाकार डायरेक्टर की बात काट नहीं सकता था। इन्हीं एक्टर्स में से एक हैं 71 साल के के.के रैना जिन्होंने अपने निर्देशक के मना करने के बाद आज तक ये अमेरिकन फिल्म नहीं देखी है।

By Tanya Arora Edited By: Tanya Arora Updated: Sun, 15 Sep 2024 07:00 AM (IST)
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के के रैना ने डायरेक्टर की बात मान कर नहीं देखी फिल्म/ फोटो- IMDB

प्रियंका सिंह, मुंबई डेस्क। निर्देशक को कलाकारों का कप्तान माना जाता है। उनके अनुसार चलना कलाकारों का काम होता है। अभिनेता के. के. रैना ने निर्देशक रंजीत कपूर की बात कुछ ऐसी मानी कि उन्होंने अमेरिकन फिल्म ‘12 एंग्री मैन’ आज तक नहीं देखी।

दरअसल, इस फिल्म पर साल 1986 में ‘एक रुका हुआ फैसला’ फिल्म बनी है, जिसका के. के. रैना अहम हिस्सा हैं। अब इस फिल्म की रीमेक बनी है।

ड्रामा करने वाले पहले रिसर्च करते हैं

जब के. के. से पूछा गया कि क्या कल्ट फिल्मों की रीमेक बननी चाहिए? इस पर उनका कहना था कि कुछ चीजों को आप दोबारा नहीं बना सकते हैं। बकौल के. के. रैना, ‘कितनी ही फिल्में बन जाएं, लेकिन क्या के. आसिफ की ‘मुगल-ए-आजम’ कोई बना पाया है? मेरा मानना है कि कुछ चीजें क्लासिक होती हैं, इसीलिए उन्हें क्लासिक कहा जाता है। ‘एक रुका हुआ फैसला’ की बात करूं, तो जब उन दिनों इस पर नाटक करने के लिए रंजीत (लेखक और निर्देशक रंजीत कपूर) साहब ने कहा था, तब मैं नहीं जानता था कि इस पर कोई अमेरिकन फिल्म बनी है।

ड्रामा करने वालों की आदत है कि हम कुछ भी करने से पहले रिसर्च करते हैं। तब पता चला कि इस पर फिल्म बनी है। रंजीत साहब ने कहा कि वह फिल्म मत देखना। हम आज्ञाकारी एक्टर थे, हमने कहा ठीक है। मैंने आज तक वह फिल्म नहीं देखी, क्योंकि मेरे निर्देशक ने मना किया था। वो चाहते थे कि मैं ताजा लगूं और उस किरदार में अपनी ऊर्जा डालूं।’

सब एक्टर्स को मिले थे पांच हजार रुपए 

वे आगे कहते हैं, ‘जब बासु (चटर्जी) दा ने दिल्ली में हमारा यह नाटक देखा तो बड़े खुश हुए। उन्होंने कहा इस पर फिल्म बनाना चाहता हूं। उनकी बात सुनकर हम सब तो खुशी से उछल पड़े। हर एक्टर को पांच-पांच हजार रुपये देने की बात तय हुई। बहुत साधारण तरीके से बासु दा ने उसे शूट किया। उस सादगी ने फिल्म को जिंदा रखा। अब जब उस फिल्म के बारे में लोगों से तारीफें सुनता हूं, तो लगता है कि फिल्म की खूबसूरती उसकी सादगी और भारतीयता ही थी।

मुझे नहीं पता कि जो रीमेक फिल्म बनी है, उसमें क्या अलग किया गया है। नजरिया नया और अलग होना चाहिए। अब जैसे मैं ‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक करना चाहता हूं, क्योंकि वह कहानी मैं थोड़ा सा अलग तरीके से कहना चाहता हूं। मेरा उस कहानी को लेकर नजरिया अलग है। ऐसे प्रयास किए जा सकते हैं।’