Move to Jagran APP

Independence Day 2024: चंद्रशेखर आजाद का किरदार निभाने के लिए दरी पर सोने लगे थे अखिलेंद्र मिश्रा

देश को 1947 में अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिली थी। इस जंग में अनगिनत लोगों ने अपने प्राणों की आहूति दी। कुछ याद रहे कुछ इतिहास के पन्नों में खो गये। स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नायकों समेत कई गुमनाम क्रांतिकारियों के जीवन पर फिल्में बन चुकी हैं। इस लेख में इतिहास के प्रति फिल्मकारों की दिलचस्पी कलाकारों की चुनौतियों और दर्शकों पर प्रभाव की चर्चा।

By Jagran News Edited By: Manoj Vashisth Updated: Tue, 13 Aug 2024 06:30 PM (IST)
Hero Image
अजय देवगन बने थे भगत सिंह। फोटो- इंस्टाग्राम
दीपेश पांडेय व प्रियंका सिंह, मुंबई। फिल्म ‘द लीजेंड आफ भगत सिंह’ का गीत ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है’ उनकी यादों को ताजा करता है। राजगुरु और सुखदेव के साथ उन्हें फांसी की सजा दी गई थी। हिंदी सिनेमा में भगत सिंह के जीवन पर कई फिल्में बनीं।

आजादी के दीवानों पर फिल्में

वर्ष 1931 में उन्हें फांसी दिए जाने के करीब 23 वर्ष बाद 1954 में उनके जीवन पर आधारित फिल्म ‘शहीद-ए-आजाद भगत सिंह’ प्रदर्शित हुई थी। उसके बाद मनोज कुमार अभिनीत ‘शहीद’, अजय देवगन अभिनीत ‘द लीजेंड आफ भगत सिंह’, सोनू सूद अभिनीत ‘शहीद-ए-आजम’ और बाबी देओल अभिनीत ‘23 मार्च 1931: शहीद’ आईं।

यह भी पढ़ें: Shaheed: 15 मिनट... कहानी उस फिल्म की, जिसे देखते हुए वक्त भी भूल गये थे लाल बहादुर शास्त्री

महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, वीर सावरकर समेत कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने देश के लिए जीवन समर्पित कर दिया। उनके जीवन संघर्ष, देश प्रेम और स्वाधीनता संग्राम को लेकर उनके संकल्प को सिनेमा में अलग-अलग निर्माताओं ने प्रस्तुत किया है।

महात्मा गांधी के जीवन पर ‘गांधी’ और देश के लौह पुरुष कहे जाने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल के जीवन पर ‘सरदार’ फिल्म बनी। वहीं शहीद उधम सिंह के जीवन पर पहले ‘शहीद उधम सिंह’, फिर ‘सरदार उधम’ फिल्में बनीं।

वर्ष 1930 में चिटगोंग (वर्तमान में बांग्लादेश स्थित चटगांव) अंग्रेजी शस्त्रागार में हुई लूट का नेतृत्व करने वाले सूर्य सेन के जीवन पर ‘खेले हम जी जान से’ और ‘चिटगोंग’ प्रदर्शित हुईं। वहीं पिछले कुछ वर्षों की बात करें तो ‘मणिकर्णिका: द क्वीन आफ झांसी’, ‘सरदार उधम’, ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ और ‘ए वतन मेरे वतन’ ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की कहानी को प्रस्तुत किया।

यह भी पढ़ें: Independence Day 2024: 'शहीद' से लेकर '1942 लव स्टोरी' तक, जब देश प्रेम के लिए कुर्बान हुआ नायक

सच दिखाने की चुनौती- मेकर्स

देश के लिए बलिदान देने वाले कुछ सेनानियों की कहानी इतिहास में दर्ज है, वहीं कुछ के बारे में जानने के लिए काफी शोध करना पड़ता है। फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ में अभिनय के साथ-साथ लेखन और निर्देशन की कमान संभालने वाले रणदीप हुडा कहते हैं-

मैं इतिहास का विद्यार्थी रहा हूं, लेकिन मैंने वीर सावरकर के बारे में काला पानी के अलावा खास पढ़ा नहीं था। मैंने उनके बारे में हिंदी, अंग्रेजी और मराठी में इतना अध्ययन किया था कि पूरी फिल्म लिख दी। फिर उसका निर्देशक और निर्माता भी बन गया। जिम्मेदारी से बारीकियों को समझा। कई स्रोतों से ऐतिहासिक तथ्य लिए, फिर उसे फिल्म में ढाला।

ऐसी फिल्में लोगों को इतिहास के बारे में बताने और मनोरंजन करने के साथ साथ देशप्रेम के प्रति प्रेरित भी करती हैं। ‘सरदार’ और ‘मंगल पांडे: द राइजिंग’ फिल्मों के निर्देशक केतन मेहता कहते हैं, ‘हर नागरिक के लिए देश के इतिहास के साथ जुड़ना जरूरी है। यह जरूरी है कि महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं और देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने वाले बलिदानियों के बारे में जानकारी रखें।’

यह भी पढे़ं: Independence Day 2024: जंगे-आजादी के गुमनाम हीरो, क्या फिल्मों से पहले इन्हें पहचानते थे आप?

व्यक्तित्व को महसूस करना जरूरी- अभिनेता

स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के जीवन को पर्दे पर उतारने के लिए कलाकारों को उनके हाव-भाव के साथ-साथ मानसिक स्थिति, विचारों और भावनाओं को भी समझना पड़ता है। फिल्म ‘द लीजेंड आफ भगत सिंह’ में अभिनेता अखिलेंद्र मिश्रा ने चंद्रशेखर आजाद की भूमिका निभाई थी। वह बताते हैं-

फिल्म साइन करने के बाद मैंने चंद्रशेखर आजाद के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाने का प्रयास किया। उनके बारे में पढ़कर ही मैं दरी पर सोने लगा था। शूटिंग के दौरान सभी कलाकार पुणे के ब्लू डायमंड होटल में ठहरे थे।

वहां भी मैं दरी लेकर गया था और होटल के बिस्तर पर न सोकर उसी दरी पर सोता था। आजाद जैसा लुक पाने के लिए मैंने करीब 20 किलोग्राम वजन बढ़ाया था। आजाद पहलवान थे, वैसा शरीर दिखाने के लिए मैं पूरे बदन में सरसों का तेल लगाकर शूटिंग करता था।

यह भी पढ़ें: 88 साल पहले एक अंग्रेज ने बनाई थी भारत की पहली देशभक्ति फिल्म, लीड रोल में थे Ashok Kumar

अनेक चुनौतियों के बीच स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की भूमिका सफलतापूर्वक निभाना कलाकार के लिए भी गर्व का विषय होता है।

फिल्म ‘ए वतन मेरे वतन’ में वीरांगना उषा मेहता की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री सारा अली खान का कहना है- 'स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई पर आधारित फिल्म का हिस्सा बनकर गर्व महसूस होता है कि उषा मेहता जैसी वीरांगना की कहानी लोगों तक पहुंचा पाई। उषा मेहता बनने के लिए हर चीज बहुत कठिन रही।

सारा कहती हैं कि वह रेडियो पर अंग्रेजों के खिलाफ संदेश का प्रसारण करती थीं, जिसके लिए उन्हें फांसी की सजा दी जा सकती थी। उन्होंने कई बलिदान दिए। कभी शादी नहीं की, अपने पिता का घर भी छोड़ दिया था। यह कहानी याद दिलानी जरूरी है।