Independence Day 2024: चंद्रशेखर आजाद का किरदार निभाने के लिए दरी पर सोने लगे थे अखिलेंद्र मिश्रा
देश को 1947 में अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिली थी। इस जंग में अनगिनत लोगों ने अपने प्राणों की आहूति दी। कुछ याद रहे कुछ इतिहास के पन्नों में खो गये। स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नायकों समेत कई गुमनाम क्रांतिकारियों के जीवन पर फिल्में बन चुकी हैं। इस लेख में इतिहास के प्रति फिल्मकारों की दिलचस्पी कलाकारों की चुनौतियों और दर्शकों पर प्रभाव की चर्चा।
आजादी के दीवानों पर फिल्में
सच दिखाने की चुनौती- मेकर्स
देश के लिए बलिदान देने वाले कुछ सेनानियों की कहानी इतिहास में दर्ज है, वहीं कुछ के बारे में जानने के लिए काफी शोध करना पड़ता है। फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ में अभिनय के साथ-साथ लेखन और निर्देशन की कमान संभालने वाले रणदीप हुडा कहते हैं-ऐसी फिल्में लोगों को इतिहास के बारे में बताने और मनोरंजन करने के साथ साथ देशप्रेम के प्रति प्रेरित भी करती हैं। ‘सरदार’ और ‘मंगल पांडे: द राइजिंग’ फिल्मों के निर्देशक केतन मेहता कहते हैं, ‘हर नागरिक के लिए देश के इतिहास के साथ जुड़ना जरूरी है। यह जरूरी है कि महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं और देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने वाले बलिदानियों के बारे में जानकारी रखें।’ यह भी पढे़ं: Independence Day 2024: जंगे-आजादी के गुमनाम हीरो, क्या फिल्मों से पहले इन्हें पहचानते थे आप?मैं इतिहास का विद्यार्थी रहा हूं, लेकिन मैंने वीर सावरकर के बारे में काला पानी के अलावा खास पढ़ा नहीं था। मैंने उनके बारे में हिंदी, अंग्रेजी और मराठी में इतना अध्ययन किया था कि पूरी फिल्म लिख दी। फिर उसका निर्देशक और निर्माता भी बन गया। जिम्मेदारी से बारीकियों को समझा। कई स्रोतों से ऐतिहासिक तथ्य लिए, फिर उसे फिल्म में ढाला।
व्यक्तित्व को महसूस करना जरूरी- अभिनेता
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के जीवन को पर्दे पर उतारने के लिए कलाकारों को उनके हाव-भाव के साथ-साथ मानसिक स्थिति, विचारों और भावनाओं को भी समझना पड़ता है। फिल्म ‘द लीजेंड आफ भगत सिंह’ में अभिनेता अखिलेंद्र मिश्रा ने चंद्रशेखर आजाद की भूमिका निभाई थी। वह बताते हैं-यह भी पढ़ें: 88 साल पहले एक अंग्रेज ने बनाई थी भारत की पहली देशभक्ति फिल्म, लीड रोल में थे Ashok Kumar अनेक चुनौतियों के बीच स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की भूमिका सफलतापूर्वक निभाना कलाकार के लिए भी गर्व का विषय होता है।फिल्म ‘ए वतन मेरे वतन’ में वीरांगना उषा मेहता की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री सारा अली खान का कहना है- 'स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई पर आधारित फिल्म का हिस्सा बनकर गर्व महसूस होता है कि उषा मेहता जैसी वीरांगना की कहानी लोगों तक पहुंचा पाई। उषा मेहता बनने के लिए हर चीज बहुत कठिन रही। सारा कहती हैं कि वह रेडियो पर अंग्रेजों के खिलाफ संदेश का प्रसारण करती थीं, जिसके लिए उन्हें फांसी की सजा दी जा सकती थी। उन्होंने कई बलिदान दिए। कभी शादी नहीं की, अपने पिता का घर भी छोड़ दिया था। यह कहानी याद दिलानी जरूरी है।फिल्म साइन करने के बाद मैंने चंद्रशेखर आजाद के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाने का प्रयास किया। उनके बारे में पढ़कर ही मैं दरी पर सोने लगा था। शूटिंग के दौरान सभी कलाकार पुणे के ब्लू डायमंड होटल में ठहरे थे।
वहां भी मैं दरी लेकर गया था और होटल के बिस्तर पर न सोकर उसी दरी पर सोता था। आजाद जैसा लुक पाने के लिए मैंने करीब 20 किलोग्राम वजन बढ़ाया था। आजाद पहलवान थे, वैसा शरीर दिखाने के लिए मैं पूरे बदन में सरसों का तेल लगाकर शूटिंग करता था।