Amitabh Bachchan की वो फिल्म, जिसके फ्लॉप होने के बाद कहने लगे थे लोग- बच्चन खल्लास हो गया!
अमिताभ बच्चन ने इंडस्ट्री में जितनी लम्बी पारी खेली है और खेल रहे हैं वो कम ही कलाकारों को नसीब होता है। कल्कि 2898 एडी में उन्हें अश्वत्थामा के रूप में एक्शन करते देख दर्शक हैरान हैं। दूसरी पारी में जिस तरह के किरदार निभाये हैं वो सिनेमा में एक अलग ही मुकाम रखता है मगर एक वक्त ऐसा भी था जब उन्हें खत्म मान लिया गया था।
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। 1988 में अमिताभ बच्चन की फिल्म गंगा जमना सरस्वती रिलीज हुई थी। उस वक्त यह फिल्म मगरमच्छ वाले दृश्य के लिए बेहद चर्चित रही थी, जिसमें अमिताभ बच्चन अपने कंधे पर एक मगरमच्छ बांधकर विलेन बने अमरीश पुरी की हवेली पर पहुंचते हैं।
अस्सी के दौर में जवान हो रही पीढ़ी को याद होगा कि इस दृश्य को फिल्म के प्रमोशनल पोस्टर्स में भी खूब इस्तेमाल किया गया था। हिंदी सिनेमा के पर्दे पर यह एक सनसनीखेज दृश्य था। इससे पहले पोस्टरों पर हीरो को शेर या किसी दूसरे जानवर से लड़ते हुए तो दिखाया गया था, मगर कंधे पर मगरमच्छ को ले जाते हुए नहीं देखा गया था।
मगर, क्या आप यकीन करेंगे कि ऐसे दिलचस्प दृश्यों के बावजूद गंगा जमना सरस्वती फ्लॉप रही थी और इस फिल्म की असफलता के साथ ही अमिताभ बच्चन के करियर को फिनिश यानी खत्म माना जाने लगा था। मैगजीनों में इस संबंध में कवर स्टोरी लिखी गईं कि सुपरस्टार अमिताभ के सामने अब क्या विकल्प बचे हैं।
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फोटो- एक्स व स्क्रीनशॉट/YouTube
मीडिया में अमिताभ बच्चन के करियर पर लगा बैरियर
ऐसा ही एक पुराना मैगजीन कवर सोशल मीडिया साइट एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर वायरल हो रहा है, जिसमें अमिताभ की हताशा से भरी तस्वीर के साथ लिखा गया है- FINISHED... With The Crash Of Ganga Jumnaa Saraswathi, Is It The End Of The Road For The Superstar? (गंगा जमना सरस्वती के क्रैश होने के बाद क्या सुपरस्टार के लिए रास्ता बंद हो गया है?) द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया के कवर का यह फोटो निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री के अलावा और भी एक्स यूजर्स ने शेयर किया है। विवेक ने इसके साथ लिखा-फोटो- एक्समैगजीन और इसके संपादकों का करियर दशकों पहले खत्म हो चुका है, लेकिन अमिताभ बच्चन, 35 साल बाद भी, हर रोज दहाड़ रहे हैं। विवेक ने मैगजीन के टाइटल पर तंज कसते हुए आगे लिखा- सिर्फ इतना कहना है कि मीडिया के जरिए जितनी भी जानकारी हमें मिलती है, वो किसी के विचार हैं या उनकी व्यावसायिक मजबूरी।