Sholay में नहीं खत्म हुआ था गब्बर का आतंक, इस फिल्म में भी Amjad Khan बने थे खूंखार डाकू
शोले इंडियन सिनेमा की सबसे यादगार फिल्मों में से एक है। अमिताभ बच्चन-धर्मेंद्र और अमजद खान स्टारर इस फिल्म को 31 अगस्त को सिनेमाघरों में दोबारा रिलीज किया गया था। इस फिल्म में सबसे ज्यादा अमजद खान के किरदार गब्बर ने लोगों को डराया था। क्या आप जानते हैं कि शोले में गब्बर का किरदार निभाने के बाद अमजद खान ने 16 साल बाद दोबारा यही किरदार प्ले किया था।
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। 1975 में रिलीज हुई कल्ट फिल्म 'शोले' इंडियन सिनेमा की सबसे बेस्ट और यादगार फिल्मों में से एक है। रमेश सिप्पी के निर्देशन में बनी इस फिल्म का हर किरदार घर-घर में मशहूर है। जय-वीरू की दोस्ती से लेकर बसंती और धन्नो का तालमेल बेहद ही लाजवाब था।
अमिताभ बच्चन से लेकर संजीव कपूर, हेमा मालिनी और धर्मेंद्र जैसे कई बेहतरीन सितारे इस फिल्म का हिस्सा थे। शोले का वैसे तो हर कैरेक्टर लोगों को याद है, लेकिन अगर किसी किरदार की गूंज आज भी सबसे ज्यादा है, तो वह है 'गब्बर'। फिल्म में अमजद खान ने गब्बर का किरदार अदा किया था।
उनके डायलॉग इतने आइकॉनिक बन गए कि उन्हें आज भी लोग नहीं भूले। लेकिन आप ये नहीं जानते होंगे कि शोले में गब्बर का आतंक सिर्फ रामगढ़ गांव तक ही नहीं खत्म हुआ था। शोले की रिलीज के 16 साल बाद अमजद खान ने एक और फिल्म में गब्बर की भूमिका अदा की थी, जिसमें वह मरे भी नहीं थे। कौन सी थी वह फिल्म जिसमें सांभा बना था 'लांबा' और 'गब्बर' का आ गया था डुप्लीकेट 'जब्बर', यहां जानें पूरी डिटेल्स:
इस फिल्म में दोबारा 'गब्बर' बनकर लौटे थे अमजद खान
अमजद खान ने फिल्म 'शोले' में उनके किरदार ने जो प्रभाव लोगों पर छोड़ा है, वह आज तक नहीं मिट पाया है। हालांकि, उनका ये आतंक सिर्फ हिंदी फिल्मों तक ही सीमित नहीं था, बल्कि भोजपुरी सिनेमा तक पहुंच गया था। 'शोले' को दो अलग-अलग भाषाओं में रिलीज किया था गया था। हिंदी रिलीज के 16 साल बाद मूवी का भोजपुरी वर्जन भी आया था। भोजपुरी में फिल्म का टाइटल था 'रामगढ़ के शोले'। इस फिल्म के निर्देशन की कमान अजित देवानी ने संभाली थी।
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भोजपुरी वर्जन में जहां अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र की जगह कोई और नजर आया, वहीं अमजद खान ने 16 साल बाद अपने गब्बर के किरदार को दोबारा पर्दे पर जिया। इस फिल्म में 'गब्बर' भोजपुरी में बोलता हुआ दिखाई दिया और तो और गब्बर को अंत में 'रामगढ़ के शोले' में मरना भी नहीं पड़ा। इस फिल्म को शोले से पूरी तरह कॉपी नहीं किया गया है, बल्कि इसमें मेकर्स ने अपना भोजपुरी के फ्लेवर के साथ मूवी को और भी जबरदस्त बनाने की कोशिश की है।