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आप मुंबई में कुड़ी हरयाणे वल दी का प्रमोशन करने आए हैं? मुंबई कितना पसंद है?
मुंबई मुझे बहुत पसंद है। मैं पहली बार यहां साल 2014 में बैसाखी के एक शो के लिए आया था। फिर साल 2015 में अपनी फिल्म अंग्रेज की डबिंग के लिए आया। यह सपनों का शहर है, यहां मुझसे हर मामले में बड़े लोग रहते हैं, उनको देखकर सीखने का मौका मिलता है।
आप तो अब हिंदी फिल्में भी खूब कर रहे हैं। मुंबई में ही बसने का ख्याल नहीं आया ?
नहीं, कभी सोचा ही नहीं। फिलहाल तो पंजाब में ही रहता हूं। अगर आने वाले एकाध साल में अच्छा खास काम आ गया, तो जरूर सोचूंगा। यहां वैसे भी कहां कोई पार्टी में बुलाता है।
पार्टी में नहीं बुलाए जाने का दुख है ?
नहीं, नहीं, वो तो मजाक में कह दिया था। मैं मुंबई में रहता ही नहीं हूं, तो कौन बुलाएगा। वह भी यही सोचते होंगे कि पंजाब से कौन सा टिकट लेकर रात में पार्टी में आ जाएगा। जब यहां रहूंगा और लोगों को पता होगा, तो यकीनन बुलाएंगे ही।
अभिनेत्री सोनम बाजवा ने कहा था कि आने वाले दिनों में पंजाबी इंडस्ट्री में हीरो के बराबर की फीस हीरोइन को भी मिलेगी। आप निर्माता भी हैं। इसे कहां तक साकार होते हुए देख रहे हैं?
मुझे लगता है कि यह सबसे पहले पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री में ही होगा। सोनम में दर्शकों को टिकट खिड़की तक लाने की क्षमता है। उनकी फिल्मों ने अच्छी ओपनिंग ली है। आने वाले दिनों में और भी हीरोइन आएंगी। यहां मल्टीस्टारर फिल्में भी बन रही हैं, जिसमें हीरो-हीरोइन दोनों के लिए बराबरी की जगह होगी। तभी हमारी इंडस्ट्री विकसित भी होगी । मल्टीस्टारर फिल्मों की खासियत ही यही होती है कि हर कलाकार के प्रशंसक फिल्में जाकर देखते हैं, तो टिकट खिड़की पर अच्छी कमाई हो जाती है। कोई भी फिल्म इंडस्ट्री बॉक्स ऑफिस नंबर्स से ही बड़ी होती है। दक्षिण भारतीय इंडस्ट्री की फिल्में हजार करोड़ का व्यापार कर लेती हैं, तभी वो इंडस्ट्री इतनी बड़ी है।
पंजाबी इंडस्ट्री हिंदी से कितनी अलग लगती है ?
पंजाब में लोगों को हंसाना थोड़ा मुश्किल है। वह छोटी बातों पर नहीं हंसते हैं। एकदम हटकर प्रतिक्रिया देंगे या चेहरे बनाएंगे, तब जाकर वह हंसते हैं। हिंदी फिल्में शूट करते वक्त मैं जरा सा कुछ कह देता हूं, तो सारा सेट हंसने लग जाता है। मैं कहता था कि इतनी बड़ी बात तो है नहीं कि सब हंस रहे हैं। बैड न्यूज और खेल खेल में फिल्मों में मैंने स्वाभाविक से भाव दिए हैं, लेकिन मेरे सहकलाकार कह रहे थे कि आप आसानी से हंसा लेते हैं। मैंने यही कहा कि पंजाबी फिल्मों में इन भावों को कोई गिनता ही नहीं है। दिलजीत (दोसांझ) पाजी ने गुड न्यूज में जो कॉमेडी की थी, उसके लिए उन्हें दर्शकों का बहुत प्यार मिला था । पंजाब में कॉमेडी के मास्टर्स हैं।
गुड न्यूज (2019) की सीक्वल बैड न्यूज में आपकी तुलना दिलजीत दोसांझ से होगी। इसके लिए कितने तैयार हैं?
मैं तुलना के लिए तैयार बैठा हूं। वह मेरे बड़े भाई हैं। मैं उनके नक्शे कदम पर चल रहा हूं, जो आसान नहीं है। वह जितनी मेहनत कर रहे है, उतनी मुझसे नहीं हो पाएगा। इस इंडस्ट्री में सफल होने के लिए बहुत सी चीजें छोड़नी पड़ती हैं। कई विवादों को झेलना पड़ता है। दिलजीत पाजी ने सब झेला है। मैं उनके जितना बड़ा बनना नहीं चाहता हूं और मुझसे बना भी नहीं जाएगा।
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क्या पंजाबी इंडस्ट्री में आपस में बेहतर फिल्में करने को लेकर प्रतिस्पर्धा होती है?
हां, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा तो होनी ही चाहिए, तभी लोग मेहनत भी करेंगे। हमारी इंडस्ट्री में लोग ही कम हैं। जैसे बॉलीवुड में एलिस्टर, बी लिस्टर में लोग बंटे हुए हैं, वैसा हमारी इंडस्ट्री में नहीं है। यहां 10-12 अभिनेता हैं, उनमें पांच-छह ऐसे हैं, जिनकी फिल्में की ओपनिंग करोड़ के ऊपर लगती है, बाकी 50 लाख की ओपनिंग वाले हैं। अभिनेत्रियां पांच-छह ही हैं। कलाकार, लेखक और निर्देशक मिलाकर 35-40 लोग ही हैं। हमें और कलाकार, लेखक और खासकर निर्देशक चाहिए। पंजाबी इंडस्ट्री में पैसा है, लेकिन सिर्फ पैसों से काम नहीं होता है। हमें और अच्छे निर्देशक चाहिए।