'सिनेमा का मतलब नाच-गान नहीं होता...' Anant Mahadevan ने वर्तमान फिल्मों पर खोली दिल की बात
छवि प्रभावित होने के भय से सामान्यतः जो भूमिकाएं करने से अभिनेता बचते हैं उन्हें स्वीकार करने से अनंत महादेवन को हिचक नहीं है। सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने वाली फिल्म यस पापा में वह ऐसा ही चरित्र निभा रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह आज के जमाने में वैसी फिल्में बनाना चाहते हैं जो समाज की सच्चाई से रूबरू कराने वाले हों।
प्रियंका सिंह, मुंबई। अभिनेता और निर्देशक अनंत महादेवन (Anant Mahadevan) फार्मूला फिल्मों से अलग राह पर चलने में भरोसा रखते हैं। उनकी फिल्म यस पापा (Yes Papa) भी उसी सार्थक सिनेमा का हिस्सा है। फिल्म में परिवार के अंदर चल रहे अनैतिकता के कटु सत्य को उठाया गया है। अनंत कहते हैं कि मैं ऐसे ही विषय चुनता हूं, जिसके बारे में बात करना जरूरी होता है।
थिएटर में जहां फिल्म की कमाई मायने रखती है, वहां सार्थक सिनेमा के लिए दर्शक जुटा पाना क्या कठिनाइयों भरा होता है?
अनंत कहते हैं कि सिनेमा का मतलब नाच-गान, एक्शन, रोमांस ही नहीं होता है। पिछली सदी के सातवें और आठवें दशक में सिनेमा में श्याम बेनेगल, मणि कौल, गोविंद निहलानी, गुलजार, ऋषिकेश मुखर्जी, बिमल राय समेत कई फिल्मकार क्रांति लाए थे। उन्होंने सिनेमा में मनोरंजन के साथ ही सामाजिक विषयों को उठाया था। मैं मानता हूं कि जब दर्शकों को सार्थक सिनेमा देंगे, तभी शिकायत दूर होगी कि बालीवुड वाले अलग तरह की फिल्में नहीं दिखाते हैं।
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'बातों के दलदल में मत पड़ना'
अनंत महादेवन ने कहा, "मुझसे ऋषिकेश मुखर्जी ने कहा था कि हमारे यहां औसत काम को लोग एक्स्ट्राऑर्डनरी बताते हैं। लोगों की बातों के इस दलदल में मत पड़ना। सिनेमा को उपभोक्ता उत्पाद नहीं मान सकते हैं। यह रचनात्मक माध्यम है। फिल्म यस पापा में पिता का जो नकारात्मक रोल है, बहुत से कलाकार ये सोचकर नहीं करना चाहेंगे कि छवि खराब होगी। मैं वैसी चीजें करूंगा, जो बाकी लोगों ने मना की हैं। कठिन चीजें कर पाएंगे तो बतौर कलाकार बेहतर होंगे।"