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'महिला प्रधान फिल्म सुनते ही, दरवाजा बंद कर देते थे', Tahira Kashyap को ये Film बनाने में लग गए छह साल

ताहिरा कहती हैं कि महिलाओं की जो जनसंख्या है उसमें से हर कोई सुंदर या 20-25 साल की ही उम्र के नहीं हैं। आगे ताहिरा कहती हैं कि मैं हमेशा से ही फिल्म बनाना चाहती थी। पहले जोखिम लेने की हिम्मत नहीं थी क्योंकि असफलता का डर था मेरे दो बच्चे भी हैं तो मुझ पर एक दबाव भी था। फिर सोचा जोखिम लेती हूं...

By Priyanka singhEdited By: Mohammad SameerUpdated: Mon, 27 Nov 2023 07:01 AM (IST)
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शर्माजी की बेटी फिल्म को बनाने में ताहिरा को लगे छह साल
महिला प्रधान फिल्में बनाना आज भी आसान नहीं है। कई दरवाजे खटखटाने के बाद मौका मिलता है। यह मानना है अभिनेता आयुष्मान खुराना की पत्नी और निर्देशिका, लेखिका ताहिरा कश्यप खुराना का। उनकी फिल्म शर्माजी की बेटी बनकर तैयार है। हालांकि इस फिल्म को बनाने में ताहिरा को छह साल लग गए।

वह कहती हैं कि कई बार ऐसा हुआ है कि मुझे अपनी कहानी सुनाने का भी मौका नहीं मिला, क्योंकि यह महिला प्रधान फिल्म है। जैसे ही मैं फिल्म का शीर्षक बताती थी, तो जवाब आता था कि नाम तो दिलचस्प है, लेकिन जैसे ही मैं आगे बताती थी कि पांच अलग-अलग उम्र की महिलाओं की कहानी है, तो फिर मेरे लिए दरवाजा बंद हो जाता था। उससे आगे कहानी सुनी ही नहीं जाती थी।

इसलिए इस फिल्म को बनाने में मुझे छह साल लग गए। महिलाओं की जिंदगी में कई दिक्कतें आती हैं। मेरे जो अनुभव रहे हैं, उसे देखकर मैने तय किया कि मैं उन मुद्दों पर बात करूंगी। मेरे लिए यह भी महत्वपूर्ण था कि मैं अलग-अलग उम्र की महिलाओं को इसमें दिखाऊं, क्योंकि हमने जिन महिलाओं की कहानियां फिल्मों में देखी हैं, उनमें 20 से 28 की उम्र को ज्यादा दिखाया गया है।

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उसके पहले और बाद की उम्र की महिलाओं पर ध्यान नहीं जाता है। महिलाओं की जो जनसंख्या है, उसमें से हर कोई सुंदर या 20-25 साल की ही उम्र के नहीं हैं। आगे ताहिरा कहती हैं कि मैं हमेशा से ही फिल्म बनाना चाहती थी। पहले जोखिम लेने की हिम्मत नहीं थी, क्योंकि असफलता का डर था, मेरे दो बच्चे भी हैं, तो मुझ पर एक दबाव भी था। फिर सोचा जोखिम लेती हूं, दरवाजे खटखटाऊंगी, शुरु से शुरू करूंगी, इसलिए कहानी लिखती रही। दिल में था कि मैं फिल्म बनाऊंगी।