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सारा अली ख़ान से पहले बॉलीवुड में सिर्फ़ उनकी बुआ सोहा ने किया है ऐसा काम

केदारनाथ के ट्रेलर से अंदाज़ा लग जाता है कि फ़िल्म में सैलाब के हैरतअंगेज़ दृश्य पर्दे पर दिखायी देंगे। इन दृश्यों के ज़रिए दर्शक पहली बार पर्दे पर इस विपदा से रू-ब-रू होंगे।

By Manoj VashisthEdited By: Updated: Thu, 06 Dec 2018 11:37 AM (IST)
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सारा अली ख़ान से पहले बॉलीवुड में सिर्फ़ उनकी बुआ सोहा ने किया है ऐसा काम
मुंबई। केदारनाथ धाम में कुछ साल पहले आये सैलाब के बाद हुई तबाही ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। इलाक़े के सैकड़ों गांव पानी में बह गये थे और हज़ारों लोग बेघर हुए थे। ज़िंदगी को पटरी पर लौटने में कुछ साल लगे। पहाड़ों पर बादल फटने से आये इस सैलाब की पृष्ठभूमि पर अभिषेक कपूर 'केदारनाथ' शीर्षक से फ़िल्म लेकर आये हैं, जो 7 दिसम्बर को सिनेमाघरों में आ रही है।

अभिषेक की 'केदारनाथ' पूरी तरह आपदा (Disaster) फ़िल्म नहीं है, बल्कि आपदा की पृष्ठभूमि में समाज के दो विपरीत छोरों पर खड़े युवाओं की प्रेम कहानी है। मगर, इस प्रेम कहानी में 'केदारनाथ' की प्राकृतिक आपदा अहम रोल निभा रही है।  'केदारनाथ' से सैफ़ अली ख़ान की बेटी सारा अली ख़ान सिनेमा की दुनिया में आधिकारिक तौर पर क़दम रख रही हैं। सुशांत सिंह राजपूत इस फ़िल्म के नायक हैं, जिन्होंने अभिषेक की ही फ़िल्म 'काय पो छे' से टीवी के बाद बॉलीवुड में अपनी पारी शुरू की थी।

'केदारनाथ' के ट्रेलर से अंदाज़ा लग जाता है कि फ़िल्म में सैलाब के हैरतअंगेज़ दृश्य पर्दे पर दिखायी देंगे। इन दृश्यों के ज़रिए दर्शक पहली बार पर्दे पर इस विपदा से रू-ब-रू होंगे। यह दूसरी बार है, जब देश में आयी किसी प्राकृतिक आपदा पर फ़िल्म बनायी गयी हो। पहली बार यह कोशिश कुणाल देशमुख ने की थी, जिनके निर्देशन में बनी 'तुम मिले' 2009 में रिलीज़ हुई। 'तुम मिले' भी एक लव स्टोरी थी, मगर इसकी पृष्ठभूमि में मुंबई की जुलाई 2005 की बाढ़ थी, जिसने सपनों के इस शहर को पानी-पानी कर दिया था। फ़िल्म में इमरान हाशमी और सोहा अली ख़ान ने मुख्य भूमिकाएं निभायी थीं। सारा और सोहा का सैलाब की इस डोर से भी एक रिश्ता जुड़ता है।

हॉलीवुड की 2012, द डे आफ़्टर टूमारो, इन टू द स्टॉर्म, द इम्पॉसिबिल जैसी फ़िल्मों के ज़रिए विभिन्न तरह की आपदाओं को दिखाया जाता रहा है। इन फ़िल्मों की कहानी और स्क्रीनप्ले पूरी तरह इन्हीं आपदाओं के इर्द-गिर्द रहता है, जबकि किरदारों के बीच समीकरण साइड प्लॉट्स होते हैं। भारतीय सिनेमा में ऐसी फ़िल्मों का निर्माण काफ़ी कम हुआ है, जिनमें किसी आपदा को मुख्य प्लॉट की तरह इस्तेमाल किया गया हो। आपदाओं को स्टोरी और स्क्रीनप्ले में बस ट्विस्ट देने के इरादे से पिरोया जाता रहा है। उन्हें कहानी का एक टर्निंग प्वाइंट तो बनाया गया, मगर मुख्य कथ्य नहीं। कुछ हिंदी फ़िल्मों का ज़िक्र यहां किया जा रहा है, जिनकी कहानी में किसी दैवीय या प्राकृतिक आपदा ने बेहद अहम भूमिका निभायी है।

60 के दशक में आयी मल्टीस्टारर फ़िल्म वक़्त हिंदी सिनेमा की क्लासिक फ़िल्मों में शुमार है। यश चोपड़ा निर्देशित फ़िल्म में राज कुमार, सुनील दत्त, शशि कपूर, साधना और शर्मिला टैगोर ने मुख्य भूमिकाएं निभायी थीं। बलराज साहनी और अचला सचदेव ने तीनों मुख्य किरदारों के माता-पिता का रोल निभाया था। इस फ़िल्म की शुरुआत एक तगड़े भूकम्प से होती है, जिसके बाद परिवार बिखर जाता है और भाई अपने माता-पिता से बिछड़ जाते हैं। इसके बाद भूकम्प की कोई भूमिका नहीं रहती।

राज कपूर की फ़िल्म सत्यम शिवम सुंदरम को हिंदी सिनेमा का मास्टर पीस माना जाता है। फ़िल्म में शशि कपूर और ज़ीनत अमान ने मुख्य भूमिकाएं निभायी थीं। फ़िल्म शारीरिक सुंदरता की जगह आत्मिक सौंदर्य की चाहत करने का संदेश देती है, मगर इसके क्लाइमैक्स में बाढ़ के प्रभावशाली दृश्यों ने कहानी को अलग मोड़ और आयाम दिया।

आमिर ख़ान की लगान और नर्गिस की मदर इंडिया जैसी कालजयी फ़िल्में देश में सूखे और किसानों की बदहाली की दास्तां बयां करती हैं। इन फ़िल्मों के अलावा ओह माय गॉड, जल और काय पो छे जैसी फ़िल्मों में भूकम्प या सूखे के ज़रिए कहानी आपदाओं को दिखाया जाता रहा है।