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    'थोड़ा डर तो लगना चाहिए', हॉरर कॉमेडी फिल्‍मों के ट्रेंड पर क्‍या बोले निर्माता?

    Updated: Fri, 25 Apr 2025 07:34 PM (IST)

    स्त्री 2 भूल भुलैया 3 और मुंजा की सफलता के बाद बॉलीवुड में हॉरर कॉमेडी फिल्मों का चलन बढ़ गया है। निर्देशक सिद्धांत सचदेव और निर्माता दिनेश विजन इस जॉनर की लोकप्रियता और भविष्य की संभावनाओं पर बात करते हैं। कहानी इमोशंस और किन मुद्दों पर क्‍या बताते हैं फिल्‍ममेकर यहां पढ़ें...

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    बॉलीवुड में क्‍यों छाई हॉरर कॉमेडी, स्त्री 2, मुंजा की सफलता के बाद अब भविष्‍य में क्‍या। जागरण ग्राफिक्‍स

    स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। स्त्री 2, भूल भुलैया 3 और मुंजा की सफलता ने हॉरर कॉमेडी फिल्मों की बहार ला दी है। दरअसल, हिंदी फिल्मों में अगर किसी जॉनर की एक फिल्म हिट हो जाती है तो उस तरह की फिल्मों की लाइन लग जाती है। यही हाल इन दिनों हॉरर कॉमेडी फिल्मों का है। ऐसी फिल्मों को लेकर मनोरंजन जगत के ट्रेंड की पड़ताल करता यह आलेख...

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    पिछले कुछ समय से हॉरर के साथ कहानी का तड़का बॉक्‍स ऑफिस पर सफल हो रहा है। ताजा बानगी स्त्री 2, भूल भुलैया 3 और मुंजा जैसी फिल्में हैं। एक मई को प्रदर्शित होने वाली संजय दत्त अभिनीत फिल्म 'द भूतनी' भी इसी जॉनर की है। 'द भूतनी' में हॉरर के साथ कॉमेडी डालने को लेकर फिल्म के निर्देशक सिद्धांत सचदेव कहते हैं कि सब कुछ कहानी पर निर्भर करता है। हॉरर फिल्में बहुत लंबी नहीं होती हैं। अगर कोई कहानी डेढ़ से दो घंटे थिएटर में दर्शकों को डर के साथ बांधे रख सकती है तो वह फिल्म सफल है।

    हॉररर... पहले और अब कितना बदला यह जॉनर?

    ऐसा नहीं है कि हॉरर फिल्म में कोई और जॉनर पहले मिक्स नहीं रहा है। अगर आप इमरान हाशमी की हॉरर फिल्म देखें तो रोमांस उसका अहम हिस्सा होता था।

    हीरो को वह मोटिवेशन देना है कि हीरोइन को बचाना है, उसके लिए उसमें रोमांटिक एंगल डाला जाता था। उसी तरह से हॉलीवुड की फिल्म 'द कंज्यूरिंग' को देखें तो उसमें एक मां को मोटिवेशन देते हैं कि वह अपनी बच्ची को बचाए। तभी बच्ची अंत में आत्मा के वश से बाहर आती है।

    हॉरर हो या हॉरर कॉमेडी.. इमोशंस का डोज सही होना चाहिए। फिल्‍म 'द भूतनी' की कहानी एक कॉलेज में सेट है। इसमें युवा हैं तो अपने आप कॉमेडी के लिए रास्ते बनने लगते हैं और बनती है एक हॉरर कॉमेडी।

    कहानी चूंकि कॉजेल में चल रही है और वहां लड़क हैं तो वे कितने समय तक डरेंगे, लेकिन अगर कोई कहानी ऐसी मिलती है जो दर्शकों को डराने में कामयाब होती है तो उसे विशुद्ध हॉरर ही बनाना चाहिए। इसमें कोई और जॉनर नहीं मिलाना चाहिए।

    हॉरर को लेकर डायरेक्टर का क्‍या मानना है?

    हॉरर कॉमेडी फिल्मों का यूनिवर्स बना रहे निर्माता दिनेश विजन ने अगले दो वर्ष में आठ फिल्में लाने की घोषणा की है। इस यूनिवर्स की फिल्म 'थामा' का निर्देशन कर रहे निर्देशक आदित्य सरपोतदार इससे पहले मराठी जांबी कॉमेडी फिल्म झोंबिवली, काकुदा और मुंजा का निर्देशन कर चुके हैं।

    आदित्य कहते हैं कि हॉरर का मार्केट हमेशा से बहुत सीमित है और उसके अपने दर्शक हैं। बीते समय में फिल्म महल, रात, भूत को अपने दर्शक मिले हैं।

    हमारे देश में सिनेमा देखने का झुकाव ज्यादतर एंटरटेनमेंट की तरफ है। सिनेमा देखने परिवार साथ में जाता है हॉरर में वैसा नहीं हो पाता। इसलिए अब ऐसी फिल्में ओटीटी पर ज्यादा अच्छी चलती हैं। ऐसी फिल्में सिनेमा में आएंगी तो चलेंगी, लेकिन उनके दर्शक सीमित होंगे। स्त्री 2 और मुंजा की सफलता की वजह यही है कि परिवार ने इन फिल्मों को देखा है।

    हॉरर जॉनर पर क्‍या बोले फिल्‍ममेकर?

    वर्तमान में चुनिंदा फिल्ममेकर हॉरर जॉनर की कहानियां ला रहे हैं। इनमें छोरी और छोरी 2 जैसी विशुद्ध हॉरर फिल्में बनाने वाले विशाल फुरिया भी शामिल हैं। वह हॉरर कॉमेडी से इतर विशुद्ध हॉरर फिल्में बनाने में दिलचस्पी ले रहे हैं। उनकी अगली हॉरर फिल्म काजोल अभिनीत 'मां' है।

    विशाल कहते हैं कि वैश्विक स्तर पर भी हॉरर में काफी बदलाव दिख रहे हमारे यहां शहरी हॉरर ज्यादा बन रहा था, देसी कम।  मैंने मराठी में हॉरर फिल्म लपाछपी बनाई उसे काफी पसंद किया गया।

    फिर उसकी हिंदी रीमेक छोरी बनाई। इसका मकसद महिलाओं से जुड़ी सामाजिक बुराइयों पर बात करना था। इसलिए उसे खरर की कहानियों में पिरोया प्राइम वीडियो पर आने की वजह से उसकी पहुंच भी वैश्विक हुई।

    मुझे लगता है कि हारर में बहुत स्कोप है। अभी तो हमने बहुत कम काम किया है। हमारे यहां अलग-अलग भाषाओं में बहुत सी लोक कथाएं हैं। भूतों और चुड़ैलों के भी बहुत प्रकार हैं। इस वजह से उन्हें अब हारर कामेडी फिल्मों, जैसे स्त्री, मुंजा, भूल भुलैया में भी एक्सप्लोर किया जा रहा है।

    हॉरर फिल्मों के स्कोप को लेकर विशाल कहते हैं कि हमारे यहां इसकी समझ कम है, जबकि हॉरर कॉमेडी की बेहतर है। विशुद्ध हॉरर कहानी लिखते वक्त लगता है। हॉरर में नायक अमूमन पीड़ित होता है, उसे अंत में हीरोगिरी दिखाने का मौका मिलता है, जबकि कलाकार को हीरो दिखना होता है।

    इस वजह से बड़े कलाकार विशुद्ध हॉरर करना नहीं चाहते, जबकि हॉरर कॉमेडी कर लेते हैं। अब जोर कहानी पर है। अच्छे कलाकार अगर कहानी में यकीन रखेंगे तो हारर की कहानियां भी कही जाएंगी। दर्शक अगर इसे देखने आएंगे तो यह जॉनर खुलने के साथ खिलेगा भी।

    हॉरर कॉमेडी और हॉरर में क्‍या अंतर है?

    हॉरर कॉमेडी और हॉरर में अंतर बताते हुए निर्देशक सिद्धांत सचदेव कहते हैं कि हॉरर कॉमेडी में कहानी शुरू होने के थोड़ी देर बात भूत कौन है पता चल जाता है, जैसे- फिल्म 'स्त्री' में लाल साड़ी में एक औरत को दिखा दिया गया था।

    हॉरर फिल्मों में भूत को जल्दी दिखाते नहीं है। केवल उसके होने के अहसास से डराते रहते हैं। ऐसे में डर उस अनजान से लगता है। जितना भी खराब चेहरा हो उसे अगर देख लिया तो वह डर निकल जाता है। पहली बार भूत जब सामने आता है तो जो माहौल होता है, वहीं दोनों जॉनर के बीच का अंतर है।

    करने हैं कुछ नए प्रयोग

    हॉरर के प्रति लगाव को लेकर फिल्मकार विशाल फुरिया कहते है कि मुझे बचपन से हॉरर पसंद है। फिल्म इंडस्ट्री में आने से पहले मैं प्रेमो ओर वीएफएक्स में काम करता था, जब मैं यहां आया तो देखा कि जैसा क्लासिक हॉरर  बनता है, वह हमारे यहां नहीं बन रहा है। पूर्व में विक्रम भट्ट जैसे कुछ फिल्ममेकर्स ने खास शैली की हॉरर फिल्में बनाई थी पर मुझे कुछ अलग करना है।

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