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'इंदु सरकार' पर Censor Board ने लगायी इमरजेंसी, ये फ़िल्में भी रहीं CBFC के निशाने पर

जय गंगाजल में सेंसर बोर्ड ने 11 कट्स करने के लिए कहा था। इसके ख़िलाफ़ मेकर्स को फ़िल्म सर्टिफ़िकेट एपेलेट ट्रिब्यूनल जाना पड़ा।

By मनोज वशिष्ठEdited By: Updated: Wed, 12 Jul 2017 07:26 AM (IST)
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'इंदु सरकार' पर Censor Board ने लगायी इमरजेंसी, ये फ़िल्में भी रहीं CBFC के निशाने पर
मुंबई। सेंसर बोर्ड और हिंदी सिनेमा में टकराव पिछले कुछ अर्से से काफ़ी बढ़ा है। कभी किसी सीन, तो कभी किसी डायलॉग को लेकर सेंसर बोर्ड की कैंची तेज़ चलने लगती है। हालांकि कई बार बोर्ड के फ़ैसलों पर पलटवार भी होते हैं और मेकर्स बोर्ड से टकरा जाते हैं।

ऐसी फ़िल्मों में अब मधुर भंडारकर की फ़िल्म 'इंदु सरकार' भी शामिल हो गयी है। सीबीएफ़सी ने मधुर की इस फ़िल्म को 14 कट्स के निर्देश दिये हैं, जिसके ख़िलाफ़ मधुर ने अपील करने का फ़ैसला किया है। मधुर ने 10 जुलाई की रात ट्वीट करके लिखा, ''अभी 'इंदु सरकार' की सेंसर स्क्रीनिंग से निकला हूं। कमेटी द्वारा प्रस्तावित 14 कट्स से हैरान हूं। हम रिवाइज़िंग कमेट में जाएंगे।'' मधुर ने सेंसर बोर्ड की सेंसिबिलिटीज़ पर सवाल उठाते हुए कहा है कि ट्रेलर में दिया गया डायलॉग फ़िल्म से कैसे हटाया जा सकता है। मैं किसी तर्क को समझ नहीं पा रहा हूं या भिन्न मानदंडों का इस्तेमाल किया जा रहा है। 

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बता दें कि 'इंदु सरकार' आपातकाल के दौर में सेट की गई कहानी है, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी से प्रेरित किरदार अहम रोल अदा कर रहे हैं। इस समानता के चलते कांग्रेस भी इंदु सरकार की रिलीज़ से पहले स्क्रीनिंग की मांग कर रही है। प्रकाश झा की 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्क़ा' को बोल्ड सींस और डायलॉग्स के चलते सीबीएफ़सी ने इसे सर्टिफ़ाई करने से मना कर दिया था। बोर्ड का कहना था कि फ़िल्म के ये सींस एक समुदाय की महिलाओं को डिस्टर्ब कर सकते हैं।

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बहरहाल, मेकर्स ने फ़िल्म सर्टिफ़िकेशन ट्रिब्यूनल में अपील की, जिसके बाद इसे A सर्टिफ़िकेट के साथ रिलीज़ करने का रास्ता साफ़ हो सका। 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्क़ा' को अलंकृता श्रीवास्तव ने डायरेक्ट किया है। दिलचस्प बात ये है कि मेकर्स ने सेंसर बोर्ड से लड़ी लड़ाई को प्रमोशनल टूल बना लिया।

रवीना टंडन की फ़िल्म 'मातृ' भी कट्स और सर्टिफिकेट को लेकर सीबीएफ़सी बोर्ड से टकरा चुकी है। बोर्ड को फ़िल्म के कुछ सींस डिस्टर्बिंग लगे और सर्टिफ़ाई करने से इंकार कर दिया। रिलीज़ के लिए मेकर्स को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। फ़िल्म में रवीना ने एक स्ट्रांग मदर का करेक्टर निभाया था, जिसकी बेटी का रेप हो जाता है और वो उसे न्याय दिलाने के मिशन पर निकलती है। 

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क्रॉस बॉर्डर आतंकवाद पर आधारित जॉन अब्राहम की फ़िल्म 'फ़ोर्स 2' को सेंसर बोर्ड ने U/A सर्टिफ़िकेट तो दिया, मगर तीन अहम सीन काटने के लिए कहा था। मेकर्स इसके ख़िलाफ़ सीबीएफ़सी की रिवीज़न कमेटी में गए थे।

'उड़ता पंजाब' की टीम को फ़िल्म रिलीज़ करवाने के लिए सेंसर बोर्ड से लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। पंजाब में ड्रग्स की समस्या पर आधारित फ़िल्म में ड्रग्स लेने वाले सींस और कुछ डायलॉग्स में गालीगलौज पर सेंसर बोर्ड को एतराज़ था। सेंसर बोर्ड ने फ़िल्म को 13 कट्स के बाद A सर्टिफ़िकेट दिया था। फ़िल्म की रिलीज़ सुनिश्चित करने के लिए मेकर्स ने सीधे सूचना प्रसारण मंत्रालय को भी एप्रोच किया था।

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सिद्धार्थ मल्होत्रा और कटरीना कैफ़ की फ़िल्म 'बार-बार देखो' को सीबीएफ़सी ने U/A सर्टिफ़िकेट दिया था। मगर, इसके लिए मेकर्स को फ़िल्म से दो सीन काटने पड़े। इन सींस में ब्रा दिखायी गयी थी और सविता भाभी का रेफ़रेंस दिया गया था, जो सेंसर बोर्ड को सही नहीं लगा। 

हंसल मेहता की फ़िल्म 'अलीगढ़' मनोज बाजपेयी की एक्स्ट्राऑर्डिनरी परफॉर्मेंस के लिए जानी जाती है, मगर सेंसर बोर्ड को फ़िल्म में होमोसेक्सुएलिटी शब्द पर एतराज़ था। इसके ट्रेलर को भी इस शब्द की वजह से एडल्ट सर्टिफ़िकेट दिया गया। 

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प्रकाश झा की फ़िल्म 'जय गंगाजल' में सेंसर बोर्ड ने 11 कट्स करने के लिए कहा था। इसके ख़िलाफ़ मेकर्स को फ़िल्म सर्टिफ़िकेट एपेलेट ट्रिब्यूनल जाना पड़ा, जहां से दो मामूली कट्स के बाद U/A सर्टिफिकेट देने के निर्देश दिये गये थे।  

इम्तियाज़ अली की फ़िल्म 'जब हैरी मेट सेजल' पर भी सेंसर बोर्ड की निगाह टेढ़ी हो गयी है। फ़िल्म के एक मिनी ट्रेल में इंटरकोर्स शब्द को लेकर सीबीएफ़सी चीफ़ पहलाज निहलानी ने एतराज़ जताते हुए कहा था कि अगर एक लाख वोट मिल जाएंगे तो वो इस शब्द को प्रोमो और फ़िल्म में जाने देंगे। मगर एक लाख वोट मिलने के बाद निहलानी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। फ़िल्म 4 अगस्त को रिलीज़ हो रही है। देखते हैं सीबीएफ़सी सर्टिफ़िकेट को लेकर क्या रुख़ अपनाता है।