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'लोगों को सफलता से बर्बाद होते देखा है...', Chandu Champion के डायरेक्टर ने यशराज फिल्म्स को बताया स्कूल कैंपस

Kabir Khan के निर्देशन में बनी फिल्म चंदू चैंपियन की कहानी लोगों को काफी पसंद आई। कार्तिक आर्यन ने फिल्म में पैरालम्पिक स्वर्ण पदक विनर मुरलीकांत पेटकर का किरदार अदा किया था। फिल्म की बॉक्स ऑफिस पर भी कमाई ठीक ठाक रही। अब हाल ही में निर्देशक कबीर खान ने अपनी फिल्म के साथ-साथ बॉलीवुड में सफलता और असफलता पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की।

By Tanya Arora Edited By: Tanya Arora Updated: Fri, 05 Jul 2024 10:47 AM (IST)
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चंदू चैंपियन के डायरेक्टर से खास बातचीत/ फोटो- Instagram
दीपेश पांडेय, मुंबई। अपने फिल्मी करियर में एक से बढ़कर एक सुपरहिट फिल्में देने वाले निर्देशक कबीर खान इन दिनों कार्तिक आर्यन स्टारर फिल्म 'चंदू चैंपियन' को लेकर सुर्खियों में हैं। मुरलीकांत पेटकर की जिंदगी पर आधारित ये फिल्म दुनियाभर में 100 करोड़ के क्लब में शामिल होने के लिए तैयार है।

हाल ही में फिल्म के डायरेक्टर कबीर खान ने बताया कि वह कभी भी सफलता को इतनी गंभीरता से क्यों नहीं लेते हैं। इसके साथ ही उन्होंने अपने आगामी प्रोजेक्ट्स को लेकर भी दैनिक जागरण के साथ खास बातचीत की।

चैंपियन की परिभाषा आपके हिसाब से क्या है?

आप जिंदगी में जो करना चाहते हैं अगर उसे आप अपने तरीके से कर सके, तो आप चैंपियन हैं। कई बार होता है कि इंसान सफल होते हुए भी काम अपने हिसाब से नहीं कर पाता वो सच्ची सफलता नहीं है। आसान तो जिंदगी में कुछ भी नहीं है, हर चीज के लिए थोड़ा संघर्ष करना ही पड़ता है।

फिल्म इंडस्ट्री ऐसी जगह है जहां काम करने के लिए हजारों लोग आते हैं। सभी का सपना होता है कि एक्टर बने, निर्देशक बने। उस भीड़ में अपनी आवाज पहुंचाना आसान नहीं होता है, लेकिन मजा भी उसी में है।

क्या कभी सफलता सिर पर चढ़ी है, अगर हां, तो फिर उससे कैसे आगे बढ़े?

मेरे साथ अभी तक ऐसा नहीं हुआ है, क्योंकि मैंने कभी अपनी सफलता को गंभीरता से नहीं लिया। सफलता सिर न चढ़ने का शायद एक बड़ा कारण यह भी है कि मेरी ट्रेनिंग यशराज फिल्म्स में हुई है। वहां एक स्कूल कैंपस जैसा माहौल बना हुआ है।

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वहां आप अपनी रेस में अव्वल आए या आखिरी, आपके साथ लोगों का व्यवहार नहीं बदलता। तब मैंने जाना कि अगर आप अपनी सफलता को गंभीरता से नहीं लेंगे तो असफलता भी आपको ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाएगी। इतने वर्षों में मैं इंडस्ट्री में अपने पसंदीदा लोगों के साथ काम कर चुका हूं, मैंने देखा है कि असफलता से ज्यादा लोगों को सफलता बर्बाद करती है।

आज के दौर में पैन इंडिया (अखिल भारतीय) के नाम पर प्रदर्शित हो रही फिल्मों के चलन को आप कैसे देखते हैं?

दरअसल, मुझे ये पैन इंडिया वाली संकल्पना समझ में ही नहीं आती है। पहले एक चलन आया था क्रॉसओवर का, लोग कहते थे कि हम क्रॉसओवर फिल्म बना रहे हैं। जो क्रासओवर या पैन इंडिया फिल्में होंगी, वो बनने और प्रदर्शित होने के बाद ही पता चलेंगी। अगर दर्शकों को वो फिल्में अच्छी लगेंगी, तो वह पैन इंडिया स्तर पर ही क्यों, पैन वर्ल्ड स्तर पर भी जा सकती हैं। लोग तो बस शब्द का इस्तेमाल प्रचार के लिए करते हैं। मुझे ये सिर्फ मार्केटिंग का शब्द लगता है, जिसे मैं गलत भी नहीं कहता हूं।

मुरलीकांत पेटकर ने तो पैरालंपिक में तीन खेलों में हिस्सा लिया था, लेकिन आपने तो सिर्फ एक स्वर्ण पदक विजेता वाली कहानी ही दिखाई... 

जब भी आप किसी सत्य घटना पर आधारित कहानी उठाते हैं तो आपको तय करना पड़ता है कि क्या आगे ले जाए और क्या छोड़ दें। एक बड़ी फिल्म का स्क्रीनप्ले अधिकतम 110-120 पृष्ठ का होता है। किसी व्यक्ति की जिंदगी से जुड़ी हर चीज दिखाने लगेंगे तो फिल्म में एक संशय की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।

मुरलीकांत पेटकर की जिंदगी में इतनी सारी चीजें हैं कि हमने तो बस थोड़ा सा ही हिस्सा दिखाया है। कहानी की मांग के हिसाब से हमने जितना दिखाने का तय किया था बस इतना ही दिखाया है। वैसे मुरलीकांत पेटकर पर तो अच्छी सीरीज बन सकती है।

बायोपिक फिल्मों में सिनेमाई लिबर्टी बहुत ली जाती हैं, ऐसे में फिल्मों को प्रामाणिक दस्तावेजों की तरह कितना देखा जा सकता है...

अगर मुरलीकांत पेटकर के जीवन पर कोई संकलित दस्तावेज है, वो है हमारी फिल्म चंदू चैंपियन। भविष्य में अगर कोई पैरालिंपियन पर रिसर्च करना चाहेगा तो पहला नाम हमारी फिल्म का आएगा, क्योंकि इसमें प्रामाणिकता की कोई कमी नहीं है। मैं जब भी किसी सत्य घटना पर आधारित फिल्म बनाता हूं, तो बहुत रिसर्च करता हूं। इसके अलावा अगर किसी को 1983 के क्रिकेट विश्वकप पर रिसर्च करनी है तो मेरी फिल्म 83 एक प्रामाणिक दस्तावेज है। मेरी वेब सीरीज द फॉरगोटेन आर्मी, आजाद हिंद फौज पर रिसर्च के लिए प्रामाणिक दस्तावेज है और अमेरिका के विश्वविद्यालयों में भी इसे मान्यता दी गई है।

83 और चंदू चैंपियन के बाद क्या अगली फिल्म भी किसी स्पोर्ट्स ड्रामा पृष्ठभूमि पर होगी? 

मैं ऐसे नहीं तय करता कि इसी पृष्ठभूमि पर बनानी है या कुछ अलग करना है। अंतिम निर्णय कहानी पर निर्भर करता है। अगली जो कहानी मुझे उत्साहित करती है मैं उस पर काम करूंगा। दो-तीन कहानियां हैं, जिन पर हम पहले से ही काम कर रहे हैं।

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