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पद्मश्री से सम्मानित विंध्यवासिनी देवी ने 'छठी मइया' के गानों को दी थी पहचान, शारदा सिन्हा ने आगे बढ़ाई धरोहर

बस कुछ दिन और जब नहाय खाय (पांच नवंबर) के साथ घाटों से लेकर घरों तक छठ के गीतों की धुनें सुनाई देने लगेंगी। ये गीत सिर्फ चुनिंदा शहरों ही नहीं बल्कि पूरे देश में फैल चुके हैं जिनकी विशेषता है परंपरागत धुन और साधारण से शब्द। विनोद अनुपम ने छठ के पारंपरिक गीतों के प्रसार और आधुनिक अंदाज पर बात की है।

By Jagran News Edited By: Rinki Tiwari Updated: Mon, 04 Nov 2024 07:28 PM (IST)
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छठी मइया के गीत गाकर मशहूर हुईं ये गायिकाएं। फोटो क्रेडिट- इंस्टाग्राम
 सेंट्रल डेस्क, मुंबई ब्यूरो। विदेश में किसी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाला एक युवा स्वयं छठ व्रत करने के लिए मां के पास आता है, इसलिए कि मां काफी बीमार हैं और इस साल छठ नहीं कर सकतीं। उसके बाकी साथियों को पता चलता है तो वे भी अलग-अलग देशों में अपनी-अपनी कंपनियों से छुट्टी लेकर छठ में सहयोग करने उसके घर पहुंच जाते हैं। यह पूरी कहानी संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित गायिका रंजना झा के गीत ‘माई के मान हम उठायब, दियो हमरा समांग,करबई छठि के बरत’ की पृष्ठभूमि में फिल्माई जाती है।

यह म्यूजिक वीडियो बिहार में तकनीकी शिक्षा के लिए प्रतिष्ठित एक संस्थान ने तैयार करवाया है। यही छठ है, यही छठ के गीत हैं, जो लोगों से भावनात्मक तौर पर जुड़ते हैं। इन गीतों में लोकपर्व होने के नाते दुनिया भर में रहने वाले बिहारियों का छठ (Chhath) के प्रति लगाव, सम्मान और समर्पण ध्वनित होता है।

परंपरा से जुड़े छठी मइया के गीत

फिल्मकार नितिन चंद्रा ने भी हर साल छठ पर एक म्यूजिक वीडियो जारी करने की परंपरा बनाए रखी है। शारदा सिन्हा के स्वर में उनके वीडियो का एक गीत तो आज भी सुना जाता है, ‘पहिले पहिल हम कईनी, छठी मईया व्रत तोहार। करिहा क्षमा छठी मईया, भूल-चूक गलती हमार...।’ पारंपरिक छठ गीतों की शुरुआत चाहे जब भी हुई हो, बदले हैं सिर्फ उनके शब्द, मगर उस भावना को बदलने की कोशिश कभी नहीं की गई, जिसकी शुरुआत विंध्यवासिनी देवी से मानी जाती है।

छठ के गीतों की यह अद्भुत विशेषता है कि इसके तमाम गीतों की धुन लगभग समान रहती है। यह किसी सुखद आश्चर्य से कम नहीं कि 2024 में कोई छठ पर खासतौर से गीत तैयार कर रहा हो और धुन के लिए अपनी उसी प्राचीन परंपरा को याद रखे।

सुरों की बही बयार

छठ गीतों के एल्बम की शुरुआत विंध्यवासिनी देवी के साथ मानी जाती है। एचएमवी ने उन्हें एल्बम बनाने के लिए आग्रह किया और ‘सोने के खरउवां हो दीनानाथ...’, ‘केरवा जे फरेला घवध से, ओह पर सुगा मेंडराय....’ जैसे गीतों से छठ पूजा को नई पहचान मिली। इस दौर के गीतों में अधिकांशतः समूह गायन का प्रयोग दिखता था, यह समूह गायन एक ओर संगीत की कमी को पूरी करता था, दूसरी ओर छठ की सामूहिकता को भी अभिव्यक्ति मिलती थी। इन गीतों में शब्द पक्ष प्रबल सुनाई देता था।

विंध्यवासिनी देवी के छठ गीतों को एक नई लोकप्रियता मिली 1979 में आई फिल्म ‘छठ मैया की महिमा’ से। इस फिल्म में संगीत दिया था भूपेन हजारिका ने, जबकि स्वर दिए थे विंध्यवासिनी देवी ने।

1985 में जब छठ गीतों पर शारदा सिन्हा का पहला कैसेट आया, उसके बाद से अब तक छठ के पर्याय के रूप में कोई एक आवाज जानी जाती रही है तो वो शारदा सिन्हा हैं। शारदा सिन्हा ने शब्द और संगीत के बीच एक रोचक संतुलन बनाया और उनके माध्यम से छठ गीत पर्व की जरूरत बन गए। उल्लेखनीय है कि शारदा सिन्हा ने छठ गीतों की धुन से कभी प्रयोग करने की कोशिश नहीं की। आश्चर्य नहीं कि दशकों से सुने आ रहे उनके गीत आज भी उतने ही उत्साह से बजाए जाते हैं।

बाद में भरत शर्मा व्यास, अनुराधा पौडवाल, विजया भारती, रंजना झा ने भी शारदा सिन्हा की परंपरा को सशक्त करने की कोशिश की। छठ के प्रति इनकी समझ और इनका विश्वास इनके गायन को एक विशिष्ट पहचान देता है, जो छठ की पवित्रता और सहजता से एकाकार हो जाती थी।

स्वागत नई चुनौती का भी

पहले एलपी रिकार्ड, फिर कैसेट और अब डिजिटल मीडिया...समय ने तकनीक बदली, तो लोकप्रियता के गणित भी बदले, नए गायक आए, संगीत भी नया आया, लेकिन छठ के गीतों की अक्षुण्णता कमोबेश बनी रही। अपनी मधुरता के लिए ख्यात लोकगायिका मैथिली ठाकुर गाती हैं, ‘झिलमिल पनिया में सोना सुरुजदेव, ठाणे मुसकाय...’।

यहां बिस्मिल्लाह खान पुरस्कार से सम्मानित चंदन तिवारी परंपरागत धुन के साथ नई चुनौती भी स्वीकार करती दिखती हैं- ‘अंचरा ही नेटुआ नचाय देबो, बजना बजाय देबो.. ’। अद्भुत है छठ की महिमा भी, जहां सबसे

सामान्य को ही सबसे अधिक महत्व दिया जाता है। छठ मैया को खुश करने के लिए और कुछ नहीं, बस आंचल पर नेटुआ नचाना पर्याप्त है।

कल्पना पटवारी ने भी परंपरागत धुन में छठ के कुछ बहुत अच्छे गीत गाए हैं, ‘काठ के रे नईया,गंगा जी के तीरवा, ताहि प बईठी आदित..’। रंजना झा, मैथिली ठाकुर, चंदन तिवारी जैसे कलाकारों की भरसक कोशिशों के बावजूद छठगीत भी डिजिटल मीडियम की उच्छृखंलता से बच नहीं सके। खेसारी लाल यादव के एक वीडियो में नायिका छठगीत को डीजे धुन में गाने का आग्रह करती है। संतोष की बात है कि उत्सव के उत्साह में एक दिन भले ही ऐसे गीत बज जाएं, छठगीतों का पर्याय शारदा सिन्हा ही रहेंगी।

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