इसी क्रम में जहां वह हालिया प्रदर्शित फिल्म ‘छोटा भीम एंड द कर्स आफ दम्यान’ में नजर आए, वहीं ‘तन्वी द ग्रेट’ में वह अभिनय के साथ निर्देशन भी कर रहे हैं। इस दौरान
अनुपम खेर ने अपने करियर को लेकर खुलकर बात की है।
अगर आज के अनुपम खेर ‘सारांश’ वाले अनुपम खेर का मार्गदर्शन करते तो क्या कहते?
कुछ नहीं। मुझे लगता है ‘सारांश’ वाले अनुपम खेर को किसी मार्गदर्शन की जरूरत नहीं थी। उसे काम की जरूरत थी, जब वो उसको मिला तो वो उस पर टूट पड़ा। चूंकि ‘सारांश’ वाला अनुपम खेर वैसा था, तभी आज वाला अनुपम खेर ऐसा बन पाया।
मैं कौन होता हूं उसे मार्गदर्शन देने वाला। उसके पास मेरे मार्गदर्शन के लिए बहुत कुछ है। ‘सारांश’ वाला अनुपम खेर ही मेरा मार्गदर्शन करता आ रहा है।
500 से ज्यादा प्रोजेक्ट करने के बाद इस फैंटेसी फिल्म में क्या खास देखा?
पहली बात तो यही कि ये फैंटसी फिल्म है, मुझे कास्ट्यूम पहनना अच्छा लगता है। एक अलग स्टाइल में एक्टिंग होती है, नए निर्देशक की पहली फिल्म है। नए निर्देशकों के साथ काम करना अच्छा लगता है, क्योंकि वो एक फिल्म में अपना पूरा जीवन लगा देते हैं।
इसमें मुझे बच्चों के साथ काम करने का मौका मिला। बच्चे आपके अंदर के बच्चे और कलाकार दोनों को जिंदा रखते हैं। फिल्म की कहानी अच्छी है और छोटा भीम बच्चों के बीच एक ब्रांड है। उसके लाइव एक्शन फिल्म का हिस्सा बनना मेरे लिए दिलचस्प था।
आज के दौर में बाल दर्शकों को ध्यान में रखते हुए बहुत कम फिल्में बन रही हैं, क्या इसमें कोरोना महामारी का प्रभाव देखते हैं?
यह कोरोना का प्रभाव नहीं है। कोरोना महामारी के बाद तो ज्यादा बननी चाहिए थी, क्योंकि उसके बाद हमें महसूस हुआ कि जिंदगी किसी भी क्षण रुक सकती है। कभी नहीं सोचा था कि पूरी दुनिया रुक जाएगी। हर तरह की फिल्मों का अपना एक दौर होता है, उसे शुरू करने वाली कोई न कोई फिल्म होती है।
हो सकता है कि इस फिल्म से बच्चों की फिल्मों का नया दौर शुरू हो। सफल होने के बाद यह फिल्म बहुत आगे जाएगी, इसके बाद ऐसी और भी कई फिल्में बनेंगी।
फिल्मों में लीड रोल को लेकर बोले अनुपम
‘सारांश’ के समय में भी मैं अपने आपको हीरो ही समझता था। ‘सारांश’ से बड़ा हीरो और कोई हो ही नहीं सकता है। अब जो बदलाव नजर आ रहा है, इसका कारण कंटेंट और दर्शकों की बदलती पसंद है। आज के दौर में कंटेंट ही सब कुछ है। अब लोगों के लिए मनोरंजन के बहुत सारे रास्ते खुल गए हैं। लोग डिजिटल प्लेटफार्म पर देश-विदेश की इतनी सारी फिल्में देख रहे हैं।
हाल ही में ‘12th फेल’ और ‘लापता लेडीज’ जैसी फिल्में चली हैं, उससे फिल्मकारों को ढांढस मिला है कि आप अच्छी फिल्में बनाओ, वो चल जाएंगी। बता दें कि वह ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’, ‘शिवशास्त्री बल्बोआ’ और ‘विजय’ जैसी फिल्मों में शीर्षक भूमिका में रहे हैं।
वर्तमान में जड़ों से जुड़े सिनेमा की काफी बातें हो रही हैं, हिंदी सिनेमा में उसकी जरूरत कैसे देखते हैं?
जब तक दर्शकों को उनकी धरती, उनकी जड़ों से जुड़ी कहानी नहीं सुनाएंगे, तब तक सफलता के अवसर कम ही बनेंगे। इस मामले में आजकल दक्षिण भारतीय सिनेमा बहुत आगे चल रहा है क्योंकि वहां धरती से जुड़ी कहानियां कही जा रही हैं, हिंदुस्तान की कहानी, भारत की कहानी कही जा रही है।
हम तो इसी चक्कर में उलझे हुए हैं कि हम किस तरह से स्वयं को पश्चिमी सिनेमा की तरह दिखा सकें। इसलिए ज्यादातर मामलों में न इधर के रहे हैं, न उधर के।
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