गदर: एक प्रेमकथा में नजर आया यह नन्हा किरदार अब बदल गया है इतना, दोबारा गदर मचाने को है तैयार
वर्ष 2001 की सफलतम फिल्मों में से एक ‘गदर एक प्रेमकथा’ में बाल कलाकार के रूप में नजर आए उत्कर्ष शर्मा एक बार फिर गदर मचाने को तैयार हैं। इसके अगले भाग में वह मूल फिल्म के सहकलाकारों के साथ नजर आएंगे बस कहानी की पृष्ठभूमि में कुछ किस्से जुड़ेंगे।
By Aarti TiwariEdited By: Updated: Sat, 29 Oct 2022 07:13 PM (IST)
स्मिता श्रीवास्तव।
15 जून, 2001 को सिनेमाघरों में प्रदर्शित फिल्म ‘गदर: एक प्रेमकथा’ ने बाक्स आफिस पर गदर मचाई थी। भारत-पाकिस्तान के बंटवारे की पृष्ठभूमि में निर्मित इस प्रेम कहानी में सनी देओल ने सिख ट्रक ड्राइवर तारा सिंह जबकि अमीषा पटेल ने सकीना अली की भूमिका निभाई थी, जो मुस्लिम राजनेता अशरफ अली (अमरीश पुरी) की बेटी होती हैं। बंटवारे की खूनी आपाधापी पर बनी इस फिल्म में बाल कलाकार के तौर पर नजर आए थे इस फिल्म के निर्देशक अनिल शर्मा के बेटे उत्कर्ष शर्मा। ‘गदर-2’ में उत्कर्ष सनी देओल के बेटे की भूमिका में फिर नजर आएंगे।
भावनात्मक जुड़ाव
‘गदर: एक प्रेमकथा’ के बाद अब अगली कड़ी पर बात करते हुए उत्कर्ष बताते हैं, ‘इस फिल्म की कहानी वहां से आरंभ होती है जहां पर ‘गदर: एक प्रेमकथा’ खत्म हुई थी। ‘गदर-2’ बनाने की पहले कोई योजना नहीं थी। दर्शकों की रुचि को देखते हुए इस बारे में सोचा गया। हालांकि ‘गदर: एक प्रेमकथा’ अपने आप में संपूर्ण फिल्म थी। शक्ति सर (लेखक शक्तिमान तलवार) और पापा (अनिल शर्मा) ने उसको आगे बढ़ाने का आइडिया क्रैक किया। जिसने भी एक लाइन की कहानी सुनी, उन्होंने इस पर सहमति ही दी। उस कहानी को विकसित करने में काफी समय लगा। इस फिल्म की पृष्ठभूमि मूल फिल्म के पात्रों पर ही आधारित है। मूल फिल्म में मेरा चयन अमीषा पटेल की वजह से ही हुआ था। फिल्म के लिए कोई बच्चा नहीं मिल रहा था तो उन्होंने मुझे लेने के लिए पापा से कहा था। दरअसल, फिल्म की तैयारी के लिए वह घर आती थीं। तो हमारे बीच एक जळ्ड़ाव हो गया था। 20 वर्ष बाद उनके साथ काम करने पर लगा कि वो आज भी वैसे ही स्नेहिल व खयाल रखने वाली हैं।’
समझा उस दर्द को
वे आगे कहते हैं, ‘बहरहाल, जहां तक विभाजन के दर्द की बात है तो वह आज भी मौजूद है। हमारी कहानी वर्ष 1971 तक जाएगी। विभाजन की पीड़ा का जो एहसास था वो 1971 में परिलक्षित हळ्आ। वो सब अभिव्यक्त हळ्आ है। उस दौर से मैं परिचित नहीं रहा हूं। हां, परिवार के कई लोगों ने उस दुनिया को देखा है। उसके लिए काफी शोध किया गया। सेना की भी मदद ली गई ताकि एक-एक चीज विश्वसनीय हो। उसका पूरा ध्यान रखा गया है। अपने पात्र के लिए मैंने पिछली सदी के सातवें दशक की फिल्में देखीं। उन फिल्मों को देखकर समझ आता है कि तब समाज कैसा था। लोगों की क्या अपेक्षाएं थीं। मुझे इतिहास से बहुत प्रेम है, तो मैंने राजनीतिक पहलुओं को भी जाना। मेरे लिए शोध काफी रुचिकर रहा। ऐसा लगा कि जैसे कोई बड़ा कार्य मुझे सौंपा गया है।’
ताजा हुईं बचपन की यादें ‘गदर-2’ की शूटिंग के दौरान उत्कर्ष की बचपन की बहुत प्यारी यादें ताजा हुईं। उत्कर्ष कहते हैं, ‘पहले तो लखनऊ के पास शूट की योजना नहीं थी, फिर कुछ वजहों से हमें वहीं शूटिंग करनी पड़ी। लगभग पांच वर्ष की आयळ् में मैंने पहला शाट दिया था। उसी लोकेशन पर फिर से शाट दिया। यह अजीब संयोग है कि वहां पर शूट करने की योजना नहीं थी, लेकिन आखिरी क्षणों में वही लोकेशन जमी। उस लोकेशन को अन्य कारणों से उपयोग किया। उसी एंगल पर लाइट-कैमरा थे। लगा यह तो पहले मैं कर चुका हूं। वह बड़ा रुचिकर था। कह सकते हैं कि मैंने बचपन को एक तरह से दोबारा जी लिया। ‘गदर’ की शूटिंग लोकेशन पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रही है। अब ‘गदर-2’ के लिए भी वहां के लोग खासे उत्साहित थे। एक नए अभिनेता हैं जो ‘गदर-2’ में काम कर रहे हैं। एक दिन जब उनकी शूटिंग नहीं थी तो वह पर्यटक की तरह घूम रहे थे। उन्हें भी वहां के लोग बता रहे थे कि यहां पर ‘गदर’ की शूटिंग हुई थी, अब ‘गदर-2’ शूट हो रही है। वो भी उनकी बातों का आनंद ले रहे थे।’
कई बार हुई थी स्क्रीनिंग ‘गदर: एक प्रेमकथा’ से जुड़ी अन्य यादें उत्कर्ष साझा करते हैं, ‘पापा अक्सर बताते हैं कि उस समय फिल्म पूरी होने के बाद वितरक को दिखाई जाती थी। उसके बाद उन्हें बेचा जाता था। मुझे याद है कि तब हम कई बार फिल्म देखने थिएटर जाते थे। कई वितरक पापा के मित्र थे, जिन्होंने बाद में इससे पैसा भी कमाया था, वो भी आगे आकर साथ देने से मुकर जाते थे। ऐसा पड़ाव आता है जब लगता है कि आप अपनी फिल्म पर विश्वास रखें या न रखें। बहरहाल, उस समय पापा और सनी सर ने फिल्म पर विश्वास रखा। तब सुभाष चंद्रा (जीटेलीफिल्म्स के संस्थापक) ने निर्णय लिया कि हम खुद ही रिलीज करेंगे। ऐसा ही विश्वास अपने काम पर रखना चाहिए। बचपन में यह अनुभव मैं क्या ही समझता, लेकिन अब समझता हूं। जीवन में ऐसे कई मोड़ आते हैं जब आपका खुद पर विश्वास डगमगाने लगेगा, लेकिन आप खुद पर विश्वास रखें तो वह काम सफल हो ही जाता है।’
भूलती नहीं वो बातें ‘गदर: एक प्रेमकथा’ में अमरीश पुरी भी थे। उनके साथ की कई यादें अब भी ताजा हैं उत्कर्ष के मन में। वे बताते हैं, ‘फिल्मों में उन्होंने खलचरित्र निभाए, लेकिन असल जीवन में बहुत अच्छे इंसान थे। कभी उनसे डर नहीं लगा। सनी सर (सनी देओल) तब भी वैसे ही थे अब भी वैसे ही शांत हैं। वह फिल्मों में भले ही अलग दिखें, लेकिन असल जीवन में बहुत शर्मीले हैं। ‘गदर-2’ में उनके साथ काम करने का जो एहसास है वो शब्दों में बयां नहीं हो सकता। वह बहुत मार्गदर्शन करते हैं। उन्होंने मुझसे पहले ही दिन कहा था कि कोई भी मार्गदर्शन चाहिए तो मुझे बस एक फोन कर दो। यह मुझे बहुत अच्छा लगा। वो काम के बीच में अपना अहं नहीं लाते हैं।’