Entertainment News: साउथ के विलेन का बढ़ रहा है हिंदी फिल्मों के प्रति लगाव , जगपति बाबू बोले- जीवन में अभिनय नहीं कर सकता हूं
फिल्म के बाद दक्षिण भारतीय अभिनेता जगपति बाबू आगामी दिनों में अब हिंदी फिल्म रुसलान में नजर आएंगे। हिंदी फिल्मों में उनकी रूचि बढ़ रही है। रुसलान के अलावा अखिल भारतीय फिल्म सालार पार्ट 2 शौर्यांग पर्वम और पुष्पा 2 में भी वह अहम भूमिकाओं में होंगे। उन्होंने कहा कि एक फिल्म से आप केवल पैसों से ही नहीं बल्कि भावनात्मक तौर पर भी जुड़े होते हैं।
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। फिल्म के बाद दक्षिण भारतीय अभिनेता जगपति बाबू आगामी दिनों में अब हिंदी फिल्म ''रुसलान'' में नजर आएंगे। हिंदी फिल्मों में उनकी रूचि बढ़ रही है। ''रुसलान'' के अलावा अखिल भारतीय फिल्म 'सालार पार्ट 2 : शौर्यांग पर्वम' और 'पुष्पा 2 : द रूल' में भी वह अहम भूमिकाओं में होंगे।
उनसे बातचीत के अंश...
1. आपने ''रुसलान'' के ट्रेलर लांच पर कहा था कि शूटिंग शुरू करने के पहले तीन दिन में समझ आ जाता है कि फिल्म अच्छी या बुरी हैं...
(हंसते हुए) मैं भगवान नहीं हूं। यह अनुभव के आधार पर कहा था कि जब दो लोग मिलते हैं, तो आपको पता होता है कि उनके साथ घुलमिल पाएंगे या नहीं। सेट पर जब निर्देशक और बाकी कलाकारों से मिलते हैं, तो अहसास हो जाता है। जब पता चल जाता है कि यह काम नहीं करेगा, तो उस प्रोजेक्ट में काम करना प्रताड़ना जैसा हो जाता है। मैं कई बार निर्माता-निर्देशक और कलाकारों को कह देता हूं कि यह नहीं हो पा रहा है, इस फिल्म से छुटकारा पाओ। एक फिल्म से आप केवल पैसों से ही नहीं, बल्कि भावनात्मक तौर पर भी जुड़े होते हैं। बाद में दुख नहीं होना चाहिए। मैं उन्हें पहले ही मानसिक तौर पर तैयार कर देता हूं। पता नहीं ऐसा करना चाहिए या नहीं, लेकिन मैं ऐसा ही हूं।2. हिंदी सिनेमा में आप खुद के लिए कैसे रोल तलाश ढूंढ रहे हैं? दक्षिण भारतीय फिल्मों में आप ज्यादा अमीर विलेन की भूमिका में होते हैं...
मैं हीरो और विलेन नहीं हूं। मैं केवल एक्टर हूं। मुझे लगता है बतौर हीरो मेरा मार्केट खत्म हो चुका है। हमेशा यह कहते रहना सही नहीं होगा कि यह रोल मेरे लिए बना है। मैं खुश हूं कि हर तरह के रोल कर पा रहा हूं। मैं अमीर विलेन वाले रोल से इतर मध्यम वर्गीय किरदार भी निभाना चाहता हूं, जैसे इरफान ने लंचबाक्स फिल्म में किया था। मैंने बतौर हीरो भी हर तरह का काम किया है। अब कुछ और करना चाहता हूं, नहीं तो खुद से ही बोर हो जाऊंगा। मैं इसलिए निर्माताओं से कहता हूं कि मैं अमीर दिखता हूं, तो आप मुझे सूट पहनाकर विलेन क्यों बना देते हैं। मुझे ऐसी भूमिकाओं से निकलने दो।
3. हिंदी दर्शकों के बीच मिल रही स्टारडम दक्षिण भारत के दर्शकों से कितनी अलग है?
सच कहूं, तो फिल्म इंडस्ट्री से होकर भी मैं यहां का नहीं हूं। मुझे नहीं पता नहीं कि फिल्म जगत में खुद को कैसे प्रमोट करना है या लोगों को कैसे खुश करना है। मैंने स्टारडम को पाने के लिए अपनी कोई ऊर्जा नहीं लगाई है। उस उद्देश्य से कुछ नहीं किया है। सब बस होता चला गया। इसे गंभीरता से नहीं लेता हूं।4. आपने कहा था कि मैंने कई फिल्में पैसे के लिए की हैं, लेकिन अब मैं नहीं करना चाहूंगा। अपनी पसंद का काम करने के लिए आर्टिस्ट को आर्थिक तौर पर मजबूत रहना कितना जरूरी है?
(हंसते हुए) ऐसा नहीं है कि मैं नहीं करूंगा। कलाकार को फिल्मों की जरुरत होती है। कई फिल्मों में किरदार भले ही बहुत अच्छा नहीं होता है, लेकिन अगर उसमें प्रभास, महेश बाबू जैसे कलाकार होते हैं, तो वह फिल्म बड़ी हो जाती है। कई फिल्मों में पैसे ज्यादा लगे होते हैं, यह कई चीजों का मिश्रण होता है। लीजेंड फिल्म के बाद मैंने 80-90 फिल्में की हैं। उसमें से मुझे केवल नौ या दस फिल्मों में ही काम करके मजा आया। हर फिल्म के बारे में पहले से पता नहीं होता है कि वह अच्छी है या नहीं। कई बार सेट पर जाने पर समझ आता है।