विभाजन ने बढ़ाया था संघर्ष, बिमल राय, हृषिकेश मुखर्जी, असित सेन जैसे फिल्मकारों ने कालजयी फिल्मों का किया निर्माण
बिमल राय को हिंदी फिल्मों में काम मिला और बाद की बातें इतिहास हैं। बिमल राय ने ‘दो बीघा जमीन’ ‘परिणीता’ ‘देवदास’ व ‘मधुमती’ जैसी कालजयी फिल्में बनाईं। आज जब हम स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो हमें इन महान फिल्मकारों की संघर्ष यात्रा का स्मरण करना चाहिए।
By Rupesh KumarEdited By: Updated: Fri, 08 Apr 2022 03:19 PM (IST)
अनंत विजयl भारतीय सिनेमा के आधारस्तंभ बिमल राय, हृषिकेश मुखर्जी, असित सेन जैसे फिल्मकारों ने स्वाधीनता संग्राम की पृष्ठभूमि में अपने प्रयासों से न सिर्फ इस विधा को मजबूत किया, बल्कि देश विभाजन का दंश झेलने के बावजूद समर्पित भाव से कालजयी फिल्मों का निर्माण किया। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के मौके पर उनकी संघर्ष यात्रा का स्मरण करा रहे हैं अनंत विजय...
स्वाधीनता के पहले कलकत्ता (अब कोलकाता) फिल्म निर्माण का एक बड़ा केंद्र हुआ करता था। इसका बड़ा कारण बड़ा बंगाली दर्शक वर्ग था। उनकी रुचि को ध्यान में रखकर बांग्ला में फिल्में बनती थीं, जो बहुत अच्छा बिजनेस किया करती थीं। हीरालाल सेन से लेकर बिमल राय तक एक बेहद समृद्ध परंपरा रही है। प्रथमेश बरुआ, नितिन बोस, देवकी बोस जैसे लोगों ने बंगाल में रहकर ही फिल्म निर्माण का शिखर छुआ था।
बिमल राय ने अपना करियर कलकत्ता के न्यू थिएटर के साथ आरंभ किया था और बाद में प्रथमेश बरुआ के साथ उनकी फिल्मों में कैमरापर्सन के तौर पर काम किया। कलकत्ता में बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री बहुत अच्छे तरीके से चल रही थी। फिल्मकारों को अच्छा खासा मुनाफा होता था और वो सभी लोग तकनीक पर निवेश कर रहे थे। अच्छे से अच्छा कैमरा और फिल्म निर्माण से जुड़ी मशीनों के आयात पर खर्च किया जाता था। उधर देश में स्वाधीनता का संग्राम भी अपने चरम पर पहुंचने लगा था। हमें स्वाधीनता मिली, लेकिन विभाजन की विभीषिका भी साथ मिली। विभाजन के बाद की हिंसा चर्चा में रही। उस पर सैकड़ों लेख लिखे गए, लेकिन विभाजन ने समाज के अन्य हिस्सों पर जो प्रभाव छोड़ा उसकी चर्चा कम हुई। हिंसा और आर्थिक नुकसान के अलावा विभाजन ने भारत के फिल्म उद्योग को बुरी तरह से प्रभावित किया था, खास तौर पर बंगाली फिल्मी दुनिया को।
विभाजन के बाद बंगाल का पूर्वी हिस्सा पाकिस्तान को मिला। इस तरह से बांग्ला फिल्मों का बाजार दो देशों में बंट गया। इसने बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री को बुरी तरह से प्रभावित किया। दर्शक संख्या विभाजित होने की वजह से बांग्ला फिल्मों से होनेवाला मुनाफा कम हो गया। इसकी वजह से कालांतर में बंगाली फिल्मों के निर्माण पर भी असर पड़ा। बांग्ला में कम फिल्में बनने लगीं और फिल्मों से जुड़े लोगों को काम मिलना बंद हो गया। कलकत्ता की उस दौर की फिल्म निर्माण की सफल फिल्म कंपनी न्यू थिएटर पर संकट के बादल छा गए। विभाजन की वजह से आर्थिक संकट इतना बढ़ा कि कंपनी अपने कलाकारों को वेतन तक नहीं दे पा रही थी। नई फिल्मों के बनाने का काम भी बाधित हुआ। न्यू थिएटर से जुड़े सभी फिल्मकारों के साथ-साथ बिमल राय भी आर्थिक संकट से प्रभावित हुए थे। उनको भी अपने परिवार की चिंता सताने लगी थी। इस चिंता के साथ बिमल राय बांबे (अब मुंबई) पहुंचे थे।
बांबे में वो अपने मित्र हितेन चौधरी से मिले जो उस वक्त मशहूर अभिनेता अशोक कुमार के साथ मिलकर फिल्म निर्माण कंपनी बांबे टाकीज चला रहे थे। बिमल राय ने उनके सामने कलकत्ता में फिल्म से जुड़े लोगों की चिंता और न्यू थिएटर की आर्थिक दिक्कतों को रखा और उनसे ये जानना चाहा कि अगर वे बांबे आते हैं तो उनको हिंदी फिल्मों में काम मिलेगा। हितेन चौधरी ने उनसे कोई वादा तो नहीं किया, लेकिन उनके लिए कुछ करने का भरोसा दिया। बिमल राय कलकत्ता लौट गए थे। एक दिन हितेन चौधरी ने बिमल राय के बारे में अशोक कुमार से चर्चा की। अशोक कुमार ने ध्यान से उनकी बात सुनी और हितेन चौधरी से बिमल राय को फौरन बांबे बुलाने को कहा। हितेन चौधरी ने बिमल राय को बांबे बुलाया। बिमल राय अपने चार साथियों के साथ कलकत्ता से बांबे आए थे। ये साथी थे ह्रषिकेश मुखर्जी, असित सेन, नबेंदु घोष और पाल महेन्द्र।