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आजकल बन रहे हिंदी गानों को लेकर बोले गुलजार 'कंपोजर की जुबान अंग्रेजी है', नई पीढ़ी को दी हिदायत

कई गीत तो लोगों की जुबान पर चढ़ें हुए हैं। गुलजार साहब का दौर आज भी चल रहा है। ऐसे में नए- नए कंपोजर म्यूजिक डायरेक्टर और लेखकों को लेकर गुलजार साहब ने दैनिल जागरण के साथ खास बातचीत की।

By Pratiksha RanawatEdited By: Updated: Mon, 04 Oct 2021 07:18 AM (IST)
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मशहूर संगीतकार गुलजार साहब, फोटो साभार: Twitter
 मुंबई ब्यूरो, जेएनएन। शब्दों के जादूगर गुलजार साहब ने अपने कई गीतों से सिनेमाजगत में एक अलग ही पहचान बनाई है। गुलजार साहब के बीते जमाने में लिख गए गीत आज भी लोगों को खूब पसंद आते हैं। उनके कई गीत तो लोगों की जुबान पर चढ़ें हुए हैं। गुलजार साहब का दौर आज भी चल रहा है। ऐसे में नए- नए कंपोजर, म्यूजिक डायरेक्टर और लेखकों को लेकर गुलजार साहब ने दैनिक जागरण के साथ खास बातचीत की।

भावों को अपने लफ्जों के जादू से सजाने वाले गीतकार गुलजार के गाने आज भी प्रासंगिक हैं। आज भी उनका काम दिलों को छूता है। इस पर गुलजार कहते हैं, ‘मेरे लिए प्रासंगिक होने का यही मतलब है कि गाने के शब्द ऐसे हों जो जिंदगी से जुड़ें। मैं तो यही मानता हूं कि कहीं कोई ठीक काम हुआ होगा, इसीलिए पुराने गाने आज भी प्रासंगिक हैं। हर कोई अपने दौर को साथ लेकर चलता है। किसी भी गाने का प्रासंगिक होना एक खूबी है। मैं जिस संस्कृति का हिस्सा रहा हूं, उसकी झलक मेरे गानों में है। मेरा शब्दकोश यकीनन बढ़ भी रहा है। कुछ नए लफ्ज शामिल हुए हैं। कुछ पुराने लफ्ज हैं जो धीरे-धीरे गायब हो रहे हैं, उन्हें संभालने की कोशिश कर रहा हूं।’

आधुनिक वक्त में प्रचलित नई जुबान को लेकर गुलजार अपना पक्ष रखते हुए कहते हैं, ‘आज अगर लोग अपने दौर की जुबां संभाल रहे हैं, तो यह भी अच्छी बात है। हम उनके शब्दों से भी इन्कार नहीं कर सकते हैं, लेकिन इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि जो गाना वह लिख रहे हैं, उसमें खामखां कहीं से भी लाकर शब्द न जोड़ लें। नई जुबान जरूर दीजिए, लेकिन ऐसे शब्द न लें, जो पराया लगता हो। मैं अपने गाने लिखते हुए दो बातों का ध्यान रखता हूं, एक, फिल्म के किरदार का, जिस पर गाना फिल्माया जाएगा, दूसरा, उस धुन का, जिस पर गाना तैयार होगा। आज मुश्किल यह है कि कंपोजर की जुबान ही अंग्रेजी है और गाने हिंदी। कम ही लोग हैं जो अपनी जुबान को सीखने की कोशिश करते हैं।’