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जन्‍मदिन विशेष: अगर 'जीवन नैया' का हीरो बीमार न होता, तो अशोक कुमार...

अशोक कुमार की इमेज हिंदी फिल्‍म जगत में एक एवरग्रीन हीरो की है, लेकिन शायद कम ही लोग इस बारे में जानते होंगे कि वह पहले ऐसे एक्‍टर हुए जिन्होंने एंटी हीरो की भूमिका भी निभाई थी।

By Tilak RajEdited By: Updated: Thu, 13 Oct 2016 10:12 AM (IST)
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मुंबई। अशोक कुमार का फिल्मों के प्रति झुकाव बचपन से ही था। शायद इसीलिए वो इस क्षेत्र में इतने सफल रहे। अभिनय की नई शैली विकसित की, जिसे काफी पसंद किया गया। हालांकि अशोक कुमार ने कभी सोचा नहीं था कि उन्हें बतौर एक्टर पहली फिल्म में चांस एक हीरो के बीमार पड़ने के कारण मिलेगा। हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में दादामुनि के नाम से मशहूर कुमुद कुमार गांगुली उर्फ अशोक कुमार का जन्म बिहार के भागलपुर शहर में 13 अक्टूबर, 1911 को एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा खंडवा शहर से पूरी की। इसके बाद उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी की।

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हिंदी फिल्म जगत के पहले एंटी हीरो

अशोक कुमार की इमेज हिंदी फिल्म जगत में एक एवरग्रीन हीरो की है, लेकिन शायद कम ही लोग इस बारे में जानते होंगे कि वह पहले ऐसे एक्टर हुए जिन्होंने एंटी हीरो की भूमिका भी निभाई थी। उन्होंने फिल्म 'किस्मत' में एंटी हीरो की भूमिका निभाई थी। इस फिल्म ने कलकत्ता के 'चित्रा' थिएटर सिनेमा हॉल में लगातार 196 सप्ताह तक चलने का रिकॉर्ड बनाया।

'जीवन नैया' से शुरू हुआ अभिनेता के रूप में सफर

साल 1934 में न्यू थियेटर में बतौर लैबेरोटिरी असिस्टेंट काम कर रहे अशोक कुमार को बॉम्बे टॉकीज मे काम कर रहे उनके बहनोई शशाधार मुखर्जी ने अपने पास बुला लिया। वर्ष 1936 में बॉम्बे टॉकीज की फिल्म 'जीवन नैया' के निर्माण के दौरान फिल्म के मुख्य अभिनेता बीमार पड़ गए। तब बॉम्बे टाकीज के मालिक हिंमाशु राय का ध्यान अशोक कुमार पर गया और उन्होंने अशोक कुमार से फिल्म में बतौर अभिनेता काम करने की गुजारिश की। इसके साथ ही 'जीवन नैया' से अशोक कुमार का बतौर अभिनेता फिल्मी सफर शुरू हो गया।

निभाए हर तरह के किरदार...

वर्ष 1939 में प्रदर्शित फिल्म कंगन, बंधन और झूला में अशोक कुमार ने लीला चिटनिश के साथ काम किया। इन फिल्मों में उनके अभिनय को दर्शकों द्वारा काफी सराहा गया। इसके साथ ही फिल्मों की कामयाबी के बाद अशोक कुमार बतौर अभिनेता फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए। अशोक कुमार ने बिमल रॉय के साथ वर्ष 1963 में प्रदर्शित फिल्म 'बंदिनी' में काम किया और यह फिल्म हिन्दी फिल्म इतिहास की क्लासिक फिल्मों में शुमार की जाती है। वर्ष 1958 में प्रदर्शित फिल्म 'चलती का नाम गाड़ी' में उनके अभिनय के नए आयाम दर्शकों को देखने को मिले। हास्य से भरपूर इस फिल्म में अशोक कुमार के अभिनय को देख दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए। वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म 'आशीर्वाद' में अपने बेमिसाल अभिनय के लिए वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किए गए। इस फिल्म में उनका गाया गीत 'रेल गाड़ी रेल गाड़ी' बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। इसके बाद वर्ष 1967 में प्रदर्शित फिल्म 'ज्वैलथीफ' में उनके अभिनय का नया रूप दर्शकों को देखने को मिला।

पहले सोप आपेरा 'हमलोग' के सूत्रधार

वर्ष 1984 में दूरदर्शन के इतिहास के पहले सोप आपेरा 'हमलोग' में आशोक सूत्रधार की भूमिका में नजर आए। इसके बाद दूरदर्शन के लिए ही उन्होंने भीमभवानी, बहादुर शाह जफर और उजाले की ओर जैसे सीरियल में अभिनय किया।

मिले ढेरों सम्मानफिल्मी करियर के दौरान अशोक कुमार को ढेरों सम्मान मिले। वर्ष 1988 में हिन्दी सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के अवार्ड से भी वह सम्मानित किए गए। लगभग 60 सालों तक अपने अभिनय से दर्शकों के दिल पर राज करने वाले अशोक कुमार 10 दिसंबर 2001 दुनिया को सदा के लिए अलविदा कह गए।