संगीतज्ञ येसुदास के गाए गीत 'जब दीप जले आना...' से श्रोताओं तक खूब पहुंचा राग यमन
फिल्म संगीत में यमन के कुछ बेहतरीन उदाहरण हैं- चन्दन सा बदन (सरस्वतीचन्द्र) आंसू भरी हैं ये जीवन की राहें (परवरिश) वो शाम कुछ अजीब थी (खामोशी) ये क्या जगह है दोस्तो (उमराव जान) और निगाहें मिलाने को जी चाहता है (दिल ही तो है)।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Mon, 05 Sep 2022 09:49 AM (IST)
अयोध्या, यतीन्द्र मिश्र। अगर आप हिंदी फिल्म गीतों के शैदाई हैं और कभी रेडियो पर येसुदास का गाया 'जब दीप जले आना' (चितचोर) सुना है तो क्या कभी यह सोचकर ठिठके होंगे कि इसे भारतीय शास्त्रीय संगीत के बहुप्रचलित राग यमन पर आधारित करके रचा गया? अकसर संगीत की दुनिया में यह होता है कि हम शास्त्रीयता की जमीन पर मौजूद ढेरों रागों को भले ही उनके मूल स्वरूप में पहचानते न हों, मगर उन पर आश्रित किसी गीत, भजन या गजल से परिचित होते हैं।
राग यमन भी ऐसा ही राग है, जिसकी महत्वपूर्ण बात यह है कि ज्यादातर हिंदुस्तानी संगीत घरानों में इसी राग से संगीत विद्यार्थियों की शिक्षा आरम्भ की जाती है। शायद ही कोई संगीत सीखने वाला व्यक्ति ऐसा होगा, जो इस राग की प्रसिद्ध बन्दिश 'सखी ए री आली पिया बिन' जानता न हो। अपनी कर्णप्रियता और सौन्दर्यबोध में अनुपम राग, जिसे 'इमन' भी पुकारा जाता है। मूल रूप से कल्याण थाट का राग, जिसमें तीव्र मध्यम को छोड़कर सारे शुद्ध स्वर लगते हैं। अधिकांश संगीत घरानों में यह मुहावरा प्रचलित रहा- 'इमन बजा कि मन बजा'। आशय यह कि यमन को वाद्यों पर छेड़ते समय कलाकार का मन बज उठता है।
प्रख्यात संगीतकार गोविन्दराव टेम्बे ने यह स्थापित किया कि यमन और कल्याण एक ही राग हैं, जिनमें बहुत कम भिन्नता है। हालांकि, दोनों मध्यम के प्रयोग करने पर इसे 'यमन कल्याण' कहा जाता है। आक्सफोर्ड इनसाइक्लोपीडिया आफ म्युजिक आफ इंडिया में वर्णित है कि कर्नाटक संगीत में कल्याण थाट से निर्मित, यमन से मिलता राग 'यमुना कल्याणी' मौजूद है। यमन या कल्याण का महत्व यह भी है कि ये एक रागांग राग माना जाता है। मराठी नाट्य संगीत हो या उत्तर भारत का भक्ति संगीत, हिंदी फिल्मी संगीत याकि सुगम संगीत का क्षेत्र- हर जगह अपने मूल रूप, किसी जोड़ राग (यमनी बिलावल, पूरिया कल्याण) के साथ या मिश्र रागों की संगति में यमन शामिल रहा है।
उस्ताद बड़े गुलाम अली खां को लेकर एक किस्सा मशहूर है कि एक बार वे अपने कन्सर्ट, जो लक्ष्मीबाग, गिरगांव, मुंबई में होने वाला था, शाम को राग यमन गाने वाले थे। उसी दिन सुबह वे राग का अभ्यास अपने मनोभावों में कर रहे थे, तब तक पास के फ्लैट से रेडियो पर लता मंगेशकर की आवाज में 'बहाना' फिल्म का गीत उनके कानों तक पहुंचा- 'जा रे बदरा बैरी जा, रे जा रे'। खां साहब का मन इस गाने की ओर बरबस चला गया और वे गीत सुनने में डूब गए। गीत की समाप्ति के बाद उस्ताद थोड़े खिन्न व अन्यमनस्क हो उठे। कुछ सोचते हुए अपने शिष्यों से बोले- 'जब से इस लड़की का यमन मेरे कानों में पड़ा है, मैं अपना यमन भूल गया हूं।'
फिल्म संगीत में यमन के कुछ बेहतरीन उदाहरण हैं- 'चन्दन सा बदन' (सरस्वतीचन्द्र), 'आंसू भरी हैं ये जीवन की राहें' (परवरिश), 'वो शाम कुछ अजीब थी' (खामोशी), 'ये क्या जगह है दोस्तो' (उमराव जान) और 'निगाहें मिलाने को जी चाहता है' (दिल ही तो है).... एक राग, जो शाम के वक्त भले गाया-बजाया जाता हो, अपने माधुर्य में दिनभर विभोर रखता है।
[उत्तर प्रदेश]