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हिंदी फिल्मों में सुहाना होता है रेलवे का सफर, ट्रेन में बुनी गई हैं कई कहनियां

हिंदी फिल्मों में कहा जाता है कि हर रोज रेलों में एक छोटा भारत सफर करता है। हिंदी फिल्मों और ट्रेन की बात चले तो दिमाग में सबसे पहले द बर्निंग ट्रेन का नाम कौंधता है। इसके अलावा कई और फिल्मों के भी नाम शामिल है।

By Aditi YadavEdited By: Aditi YadavUpdated: Sun, 16 Apr 2023 02:17 PM (IST)
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मुंबई ब्यूरो। 16 अप्रैल, 1853 को भारत में चली थी पहली रेलगाड़ी और 170 सालों के सफर में विभिन्न पड़ावों को पार करते हुए देश बन गया है। दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क। भारत की यह जीवन रेखा जैसे हिंदी फिल्मों का भी अभिन्न अंग बन गई, जहां भाप के इंजन से लेकर आधुनिक मेट्रो ट्रेन तक रेल कभी शोर मचाते-धुआं उड़ाते दाखिल हुई तो कभी खामोशी से साथ चलती रही पटरियों की तरह...

चाहे वह आदित्य चोपड़ा की मेनस्ट्रीम फिल्म मोहब्बतें का ओपनिंग शॉट हो या श्याम बेनेगल की कला फिल्म मम्मोह में फरीदा जलाल की भारत से पाकिस्तान को कारुणिक विदाई, दोनों विपरीत फ्रेम भारतीय रेलवे और हिंदी फिल्मों के अंतर्संबंधों को प्रस्तुत करते हैं। कहा जाता है कि हर रोज रेलों में एक छोटा भारत सफर करता है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि भारतीयों के दिलों को धड़काने वाली हिंदी फिल्मों में रेल और उसका प्लेटफार्म प्रेम, द्वेष, मिलन, जुदाई, आंसू और मुस्कान जैसी भावनाओं की अभिव्यक्ति का मंच रहा है।

सरहद से गुजरती पटरियां

स्वाधीन भारत का इतिहास विभाजन की त्रासदी में बहे खून से लिखा गया था और एम.एस. सथ्यू की फिल्म गर्म हवा में इसे ट्रेन के माध्यम से बखूबी दर्शाया गया। अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म नास्तिक में भी विभाजन की त्रासदी को दर्शाने के लिए ट्रेन को बतौर प्रतीक लिया गया तो सनी देओल अभिनीत फिल्म गदर: एक प्रेम कथा में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के कारण रेलवे प्लेटफार्म और चलती ट्रेन में हिंसा के दृश्यों ने दर्शकों में सिहरन पैदा कर दी थी। इसी फिल्म में रेलवे प्लेटफार्म पर नायक सनी देओल नायिका अमीषा पटेल को सहारा देते हैं जो बाद में प्रेम के रूप में पनप कर दोनों को विवाह बंधन में बांध देता है।

एक्शन में रफ्तार का रोमांच

हिंदी फिल्मों और ट्रेन की बात चले तो दिमाग में सबसे पहले द बर्निंग ट्रेन का नाम कौंधता है। यह फिल्म चलती ट्रेन में आग लगने और इसके ब्रेक फेल हो जाने के बाद यात्रियों में फैली दहशत का सिल्वर स्क्रीन रूपांतरण थी। इसी प्रकार भारतीय सिनेमा की नायाब फिल्म शोले में चलती मालगाड़ी में लड़ाई के दृश्य ने सिनेमा हॉल में बैठे दर्शकों की सांसें रोक दी थीं। यह पहला मौका था जब दर्शक किसी भारतीय फिल्म में इस कदर रोमांचक दृश्य से रूबरू हुए थे। ( वैसे 1934 में आई तूफान मेल में पहली बार चलती ट्रेन में स्टंट दृश्यों को फिल्माया गया था। इसका गीत दुनिया यह दुनिया तूफान मेल काफी लोकप्रिय हुआ था।) फिल्म शोले में दृश्य के साथ ध्वनि और पार्श्व संगीत के अद्भुत तालमेल ने रोमांच को कई गुना बढ़ा दिया था।

रेल में परवान चढ़ती मोहब्बत

भारतीय फिल्मों में अधिकांश: ट्रेन का डिब्बा नायक-नायिका की नोक-झोंक अथवा सौम्य मिलन और फिर प्रेम के पनपने का कारण बनता रहा है। राजेन्द्र कुमार (मेरे महबूब) से लेकर शाहरुख खान (चमत्कार और चेन्नई एक्सप्रेस) तक यह परंपरा लगभग सभी नायकों ने निभाई है। सिनेमा के स्वर्णयुग की फिल्म पाकीजा का वह दृश्य यादगार है, जिसमें ट्रेन के डिब्बे में एक साथ सफर कर रहे नायक और नायिका पूरी यात्रा में एक-दूसरे से अनजान रहते हैं। ट्रेन से उतरते हुए नायक राजकुमार नायिका मीना कुमारी के लिए कागज पर वह संदेश छोड़ जाते हैं जो बाद में भारतीय सिनेमा का सर्वाधिक रोमांटिक संवाद साबित हुआ, आपके पांव देखे... बहुत खूबसूरत हैं। इन्हें जमीन पर न रखिएगा, मैले हो जाएंगे! फिल्म में कुछ दृश्यों के बाद चलते-चलते नृत्य में मीना कुमारी के घुंघरुओं में ट्रेन की वह याददाश्त खनकती है!

भावनात्मक ज्वार की बानगी

फिल्म आराधना के रोमांटिक गीत मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू ने लोकप्रियता के रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। इस गीत में नायिका ट्वाय ट्रेन में बैठकर दार्जिलिंग का सफर रही होती है और नायक का मित्र (सुजीत कुमार) रेल पटरियों के समानांतर सड़क पर जीप चला रहा होता है। खुली जीप में बैठे नायक राजेश खन्ना और ट्रेन में सफर कर रहीं शर्मिला टैगोर इस गीत के बाद रातों-रात चर्चा का केंद्र बन गए थे। फिल्म ने सफलता के रिकार्ड अगर तोड़ दिए थे तो इसके पीछे यह गीत और किशोर कुमार की आवाज महत्वपूर्ण कारक थी। इसी प्रकार शाहरुख खान - प्रीति जिंटा अभिनीत फिल्म दिल से में मलाइका अरोड़ा के रेलवे वैगन की छत पर नृत्य छैंया-छैंया ने फिल्म को अच्छी- खासी ओपनिंग दी थी।

दरअसल, वीर-जारा, बंटी और बबली, जब वी मेट, ये जवानी है दीवानी, इशकजादे, किक, गुंडे, टायलेट एक प्रेमकथा, पति, पत्नी और वो में दृश्य प्रयोग से लेकर रेल के इर्द-गिर्द घूमती एक चालीस की लास्ट लोकल तक यह स्वयंसिद्ध तथ्य है कि इस वर्ष हिंदुस्तान में अपनी 170 वीं वर्षगांठ मना रही रेलवे न केवल देश बल्कि हिंदी सिनेमा की भी लाइफ लाइन रही है।