हिंदी फिल्म इंडस्ट्री भले पुरुष प्रधान होने के लिए जानी जाती हो, लेकिन इंडस्ट्री ने कई छाप छोड़ देने वाले सब्जेक्ट के साथ महिलाओं के सशक्तिकरण को दिखाया। कुछ फिल्में तो इतनी दमदार हैं कि इन्होंने समाज के नजरिए पर असर डाला। यहां कुछ ऐसी ही फिल्मों के बारे में बात करेंगे...यह भी पढ़ें-
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थैंक्यू फॉर कमिंग (Thank You For Coming, 2023)
थैंक्यू फॉर कमिंग मॉर्डन जमाने की कहानी कहती है। फिल्म महिलाओं को लेकर ऐसे विषय पर बात करती है, जिसे समाज न जरूरी समझती है और न ही बात करने लायक मानता है। फिल्म में दिखाया है कि फिजिकल रिलेशनशिप में जितना संतुष्ट एक पुरुष का होना जरूरी है, उतना ही ये महिलाओं के लिए भी है। फिल्म का सब्जेक्ट बोल्ड और कहानी दमदार है।
थप्पड़ (Thappad, 2020)
थप्पड़ में तापसी पन्नू एक घरेलू महिला के किरदार में नजर आई, जिसकी जिंदगी एक थप्पड़ के बाद बदल जाती है। अपना सब कुछ पति और घर पर न्यौछावर करने वाली हर आम महिला की कहानी इस फिल्म मे दिखाई। अपने नाम की तरह ही फिल्म कुरीतियों पर जोरदार थप्पड़ मारती है।
लिपस्टिक अंडर माय बुर्का (Lipstick Under My Burkha, 2016)
इस फिल्म में चार महिलाओं की कहानी दिखाई गई है। सभी की उम्र और कहानी एक- दूसरे से बिल्कुल अलग है, लेकिन एक बात कॉमन है कि ये सभी अपनी इच्छाओं को छिप- छिपाकर पूरा करती और अपने सपने को जीने की कोशिश करती हैं, क्योंकि समाज इन्हें अपनी रूढ़िवादी सोच के बंधन से बाहर नहीं निकलने देता।
क्वीन (Queen, 2014)
फिल्म में ऐसी लड़की कहानी दिखाई गई, जिसकी शादी ऐन मौके पर टूट जाती है। लड़की का मंगेतर सिर्फ इसलिए शादी तोड़ देता है, क्योंकि वो घरेलू है। लड़के को इस बात की टेंशन है कि विदेश के रहन- सहन में वो गुजारा नहीं कर पाएगी, जबकि ये एक लव मैरिज होती है। फिल्म में ये भी दिखाया गया है कि कैसे शादी टूटने के बाद लड़की और उसका परिवार संघर्ष करता है।
मर्दानी (Mardaani, 2014)
इस फिल्म में रानी मुखर्जी, शिवानी शिवाजी रॉय नाम की दमदार महिला पुलिसकर्मी के किरदार में नजर आईं। मर्दानी में ड्रग रैकेट और बाल तस्करी की कहानी दिखाई गई है। फिल्म का डायरेक्शन प्रदीप सरकार ने किया है।यह भी पढ़ें-
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इंग्लिश विंग्लिश (English Vinglish, 2012)
इस फिल्म की भारतीय महिलाओं पर एकदम सटीक बैठती है। फिल्म में एक मां और पत्नी अपने बच्चों और पति से वो सम्मान नहीं पा पाती, जिसकी वो हकदार है, सिर्फ इसलिए क्योंकि उसे इंग्लिश नहीं आती। हिंदी मीडियम स्कूल की पढ़ाई ने एडवांस बच्चों के सामने उसे पिछड़ा बना दिया है, लेकिन यही मां मौका मिलने पर अपनी इस हार को जीत में बदल देती है।
लज्जा (Lajja, 2001)
इस फिल्म की कहानी ऐसी है कि ये समाज के मुंह पर कसकर तमाचा जड़ती है। भारतीय समाज में एक तरफ तो नारी को देवी मानकर पूजा जाता है, वहीं दूसरी तरफ पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है। इतना ही नहीं, कई बार तो इन देवियों को समाज दहेज की भेंट चढ़ाने से भी नहीं कतराता।
अस्तित्व (Astitva, 2000)
तब्बू स्टारर ये फिल्म पुरुषवादी समाज से एक बार फिर रुबरू करवाती है। फिल्म में शादीशुदा जिंदगी में की कहानी दिखाई गई है कि कैसे जो चीज एक पति के लिए जायज है, क्योंकि वो एक मर्द, वहीं पत्नी के लिए मर्यादा पार करने वाली बात हो जाती है। फिल्म में दुर्व्यवहार सहती और शादी के बाहर अपने अस्तित्व को तलाशने की कोशिश करती महिला की कहानी दिखाई गई है।
मृत्युदंड (Mrityudand, 1997)
माधुरी दीक्षित, शबाना आजमी और शिल्पा शिरोडकर अभिनीत ये फिल्म तीन मजबूत महिलाओं की कहानी है। ये तीनों समाज के अत्याचारी पुरुष और उनकी दमकारी सोच के खिलाफ आवाज उठाती हैं। मृत्युदंड का डायरेक्शन प्रकाश झा ने किया है।
दामिनी (Damini, 1993)
दामिनी की कहानी शारीरिक शोषण पर आधारित है। फिल्म की हीरोइन (मीनाक्षी शेषाद्री) अपने ससुराल में काम करने वाली महिला के लिए आवाज उठाती है, जिसके साथ दुष्कर्म उसका देवर कर देता है। फिल्म में दिखाने की कोशिश की गई है कि समाज हो या अपना परिवार, अगर किसी ने गलत किया है, जो उसे सजा जरूर मिलनी चाहिए।