Move to Jagran APP

Kaagaz Ke Phool Trivia: Guru Dutt की वो फिल्म जो थ‍िएटर्स में तो फ्लॉप रही लेकिन आज भी मानी जाती है मास्टरपीस

गुरुदत्त सिनेमा के उन बेहतरीन निर्देशकों में शामिल हैं जिनकी फ्लॉप फिल्मों को भी कल्ट क्लासिक की उपाधि दी गई। गुरुदत्त की फिल्में प्यासा और कागज के फूल (Kaagaz Ke Phool) टाइम पत्रिका के अनुसार दुनिया की सौ बेहतरीन फिल्मों में शामिल थीं। ‘कागज़ के फूल’ भारत की पहली सिनेमास्कोप फिल्म थी जिसमें इस तरह के कई प्रयोग किए गए थे।

By Surabhi Shukla Edited By: Surabhi Shukla Published: Sat, 29 Jun 2024 09:03 PM (IST)Updated: Sat, 29 Jun 2024 09:03 PM (IST)
क्यों फ्लॉप हुई थी कागज के फूल

एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि 'कागज के फूल' हिंदी सिनेमा की कल्ट फिल्मों में से एक है। ये फिल्म गुरु दत्त का वो बेहतरीन क्रिएशन है जिसकी शायद ही आज के समय में कोई कल्पना भी कर पाए। कहा तो ये भी जाता है कि फिल्म के निर्देशक गुरुदत्त ने अपनी ज‍िन्दगी के कुछ जख्मों को इस फिल्म के जरिए दिखाने की कोशिश की।

कागज के फूल ये कहानी है ऐसे डायरेक्टर की जो अपने नाम और शोहरत के मजे में अपनी मोहब्बत को पीछे छोड़ देता है। ये फिल्म उन लोगों के समझ में नहीं आएगी जो सिनेमा को बस एक मनोरंजन का जरिया समझते हैं। आपको आज फिल्म से जुड़े ऐसे ही कुछ दिलचस्प किस्से सुनाएंगे जो इसे एक सिनेमेटिक मूवी के तौर पर सेट करते हैं। गुरुदत्त की फिल्में कागज के फूल, चौदहवीं का चांद और साहिब बीबी और गुलाम उनकी सिनेमा की समझ का ही एक बेहतरीन उदाहरण है।

भारत की पहली सिनमेटिक फिल्म

कागज के फूल भारत की पहली सिनेमास्कोप फिल्म है। गुरुदत्त चाहते थे कि इस फिल्म में कुछ अलग किया जाए। संयोग से एक हॉलीवुड की फिल्म कंपनी 20सेंचुरी फॉक्स ने उन दिनों भारत में किसी सिनेमास्कोप में बनने वाली फिल्म की शूटिंग खत्म की थी और उनके स्पेशल लेंस ऑफिस में यहीं छूट गए थे। गुरुदत्त को जैसे ही इस बारे में पता चला वो अपने सिनेमैटोग्राफर वीके मूर्ती को लेकर तुरंत वहां गए। लैंस लेकर कुछ प्रयोग किए गए और फिल्म के लिए इसी फॉर्मेट का प्रयोग किया।

पानी की तरह बहाया पैसा

इस फिल्म को गुरु दत्त ने डायरेक्ट और प्रोड्यूस किया था और इसपर पैसा पानी की तरह बहाया था। ये फिल्म 1959 में रिलीज हुई थी। कागज के फूल एक क्लासिक बॉलीवुड मूवी है जिसे आज के जमाने में मास्टरपीस माना जाता है। लेकिन तब जब फिल्म रिलीज हुई थी तब क्रिटिक्स ने इसके लिए बहुत बुरे रिव्यू दिए थे। इस फिल्म के असलफल होने से गुरुदत्त को काफी नुकसान हुआ। उन्होंने 17 करोड़ गंवा दिए। गुरुदत्त ने इसके बाद से फिल्म बनाना ही छोड़ दिया।

यह भी पढ़ें: 23 साल में तैयार हुई थी ये हिंदी फिल्‍म, रिलीज से पहले चल बसे एक्टर और डायरेक्टर, इस घटना को जान कांप जाएगी रुह

गुरुदत्त के दोस्त की कहानी

इस फिल्म के गाने "हम तुम जिसे कहते हैं शादी" गाने की धुन डोरिस के गाने "के सेरा,सेरा (Whatever will be)" से प्रेरित थी। इसे जे लिविंगस्टन और रे इवांस ने लिखा था। इसके अलावा कहा तो ये भी जाता है कि यह फिल्म ज्ञान मुखर्जी के जीवन से प्रेरित है जो गुरुदत्त के काफी क्लोज थे।

देवानंद के साथ बनाना चाहते थे फिल्म

कागज के फूल के बाद,गुरु दत्त ने फिल्मों को डायरेक्ट करना जरूर बंद कर दिया था, लेकिन अबरार अल्वी और एम.सादिक के साथ वो प्रोड्यूसर के तौर पर काम करते रहे। हालांकि अपने आखिरी दिनों में वह अपने दोस्त देव आनंद के साथ एक कलर्ड फिल्म बनाना चाहते थे लेकिन ये मुमकिन नहीं हो पाया।

फिल्म की शुरुआत और क्लाइमेक्स सीन मराठी फिल्म नटसम्राट 2016 से प्रेरित था जिसमें नाना पाटेकर ने मुख्य किरदार निभाया था।

यह भी पढ़ें: Guru Dutt Birth Anniversary: क्लासिक मानी जाती हैं गुरु दत्त की ये पांच फिल्में, OTT पर हैं मौजूद


This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.