क्या था कादर खान और गोविंदा की सुपरहिट फिल्मों का फॉर्मूला? आज के डायरेक्टर जान लें तो दे सकते हैं ब्लॉकबस्टर
Kader Khan आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी फिल्में फैंस को इस बात का एहसास नहीं होने देती। अपने करियर में अलग-अलग किरदारों से कादर खान ने दर्शकों के दिलों पर राज किया। गोविंदा संग उनकी जोड़ी सुपरहिट रही। एक पुराने इंटरव्यू में कादर खान ने बताया था कि वह और गोविंदा जब भी फिल्मी पर्दे पर आते हैं तो उनकी फिल्में कैसे सुपरहिट हो जाती हैं।
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। कादर खान हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के एक ऐसे अभिनेता थे, जिनमें टैलेंट कूट-कूटकर भरा था। वह एक अच्छे कलाकार होने के साथ-साथ डायलॉग राइटर भी थे। कादर खान (Kader Khan) अपने पूरे फिल्मी करियर में चुनौतियां स्वीकारने से कभी भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने कभी कॉमेडी कर दर्शकों को हंसाया, तो कभी विलेन बनकर लोगों को डराया।
इसके अलावा उन्होंने कैरेक्टर रोल से लेकर मुख्य भूमिका तक फिल्मों में अदा की। उन्होंने अपने पूरे फिल्मी करियर में सबसे ज्यादा काम गोविंदा और शक्ति कपूर के साथ किया और कई यादगार फिल्में दीं। राजा बाबू से लेकर स्वर्ग और साजन चले ससुराल जैसी फिल्में आज भी लोग बड़े चाव से देखते हैं।
इन फिल्मों ने न सिर्फ ऑडियंस को हंसाया, बल्कि बॉक्स ऑफिस पर भी अच्छी कमाई की। कादर खान ने एक पुराने इंटरव्यू में बताया था कि उनकी-गोविंदा और शक्ति कपूर की फिल्में सफल होने का फॉर्मूला क्या है?
इस वजह से कादर खान-गोविंदा की फिल्में होती थीं हिट
डायरेक्टर डेविड धवन एक बार गोविंदा के बिना फिल्में बना भी लेते थे, लेकिन उनकी हर फिल्म में कादर खान होते ही होते थे। लहरें टीवी को दिए एक पुराने इंटरव्यू में जब कादर खान से ये पूछा गया था कि सेम टीम के साथ बार-बार काम करना क्या हिट फिल्मों का फॉर्मूला है तो इसका जवाब देते हुए दिग्गज अभिनेता ने कहा था, "फॉर्मूला कुछ नहीं होता है, बस एक किस्म का सुर ताल बन जाता है।''
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मिसाल देते हुए कादर खान ने आगे कहा- ''जैसे शंकर जयकिशन की एक टीम थी, जैसे एक धुन बनाता था, दूसरा गाने बनाता था। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, कल्याण जी आनंद जी, ये किस्म की ट्यूनिंग बन जाती है। जब एक साथ में सुर मिल जाते हैं तो फॉर्मूला खुद-ब-खुद निकल जाते हैं।"
दर्शकों की नब्ज पता होनी चाहिए- कादर खान
सुपरहिट फिल्मों के असली फॉर्मूला के बारे में आगे बात करते हुए कादर खान ने कहा,"आपको फॉर्मूला जमाने की ट्यून मिल जानी चाहिए। जैसे कहते हैं कि डॉक्टर किसी मरीज की नब्ज देखता है तो हमारी ऑडियंस भी हमारे लिए मरीज जैसी ही है, हमें उनकी नब्ज पकड़नी आनी चाहिए कि कौन सी दवा दें, जो उनके दिल पर लगे। अगर आप उनको ख़राब मूवी दोगे तो वह थिएटर से बाहर निकल जाते हैं, इसलिए डॉक्टर को सही दवा और डायरेक्टर को सही फिल्म देनी चाहिए, बस यही फॉर्मूला है।"