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एक्टर्स की बढ़ती फीस ने तोड़ी मेकर्स की कमर, फिल्म को हिट बनाने के लिए करते हैं चालाकी, OTT रहता है टारगेट

बॉलीवुड में पिछले कुछ दिनों से एक नया मुद्दा गरमाया हुआ है। सितारों की फीस के कारण फिल्ममेकर्स पर बोझ बढ़ रहा है। हाल ही में अनुराग कश्यप ने इस पर बात की थी। धर्मा प्रोडक्शन के मालिक करण जौहर भी अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं। वहीं अब अनिल कपूर और पहलाज निहलानी ने भी फिल्म के बजट और सितारों की फीस को लेकर बात की है।

By Vaishali Chandra Edited By: Vaishali Chandra Updated: Fri, 21 Jun 2024 06:00 AM (IST)
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चुभने लगी सितारों की बढ़ती फीस, (X Image)
प्रियंका सिंह, मुंबई। हाल ही में फिल्मकार करण जौहर ने कलाकारों की बढ़ती फीस से सिनेमा व्यवसाय को नुकसान पहुंचने को लेकर चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने कहा था कि बड़े कलाकारों को मोटी फीस लेने से पहले आत्ममंथन करना चाहिए। फिल्म इंडस्ट्री के अन्य निर्माताओं और कलाकारों ने भी इस मुद्दे पर विचार सामने रखे हैं। प्रियंका सिंह का आलेख...

जीने की ताकत, खाते का बैलेंस और नाम... कभी भी कम नहीं होना चाहिए। फिल्म वंस अपान ए टाइम इन मुंबई दोबारा का यह डायलॉग हिंदी सिनेमा के सितारों पर सटीक बैठता है। फिल्म हिट हो या ना हो, पर सितारों की फीस में बेतहाशा वृद्धि होती रहती है। यह बात निर्माताओं के लिए चिंता का विषय बन रही है।

हाल ही में फिल्मकार करण जौहर ने सितारों की मोटी फीस का मुद्दा उठाते हुए कहा कि किसी भी बजट की फिल्म बनाना चुनौती पूर्ण है। प्रचार और विज्ञापन पर काफी खर्च होता है, हर कलाकार को इस बात की समीक्षा करनी चाहिए कि वे कितनी फीस मांग रहे हैं। कई निर्माता फिल्में बनाना चाहते हैं, इसलिए वे मोटी फीस दे भी देते हैं, लेकिन ऐसा करने से पूरे तंत्र को नुकसान पहुंचता है।

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सिनेमा उद्योग पर असर

शोला और शबनम, आंखें समेत कई फिल्मों का निर्माण कर चुके निर्माता पहलाज निहलानी कहते हैं कि दिलीप (कुमार) साहब, धर्मेंद्र जैसे बीते दौर के बड़े सितारे अपनी फीस तीन-चार वर्ष तक नहीं बढ़ाते थे। आज के कलाकार तो फिल्म विफल होने के बाद भी फीस हर दूसरे वर्ष में बढ़ा देते हैं। दर्शक कंटेंट देखते हैं, बड़े स्टार्स को समझना चाहिए कि उनकी फिल्में बाक्स ऑफिस पर जितना कलेक्शन कर रही हैं, उसके अनुसार अपना शेयर लेना ही उचित है। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो सिनेमा के व्यवसाय पर बहुत असर पड़ेगा।

पहले तीन घंटे की फिल्में बना करती थीं, अब वह अवधि घटकर दो से ढाई घंटे की रह गई है। पहले कलाकार एक फिल्म के लिए ज्यादा दिनों तक शूट करते थे, उनकी वह मेहनत बच गई और फीस ले रहे हैं कई गुना ज्यादा, जो सही नहीं है। ओटीटी ने भी नीति बदल दी है। बाक्स ऑफिस पर प्रदर्शन के हिसाब से वे पैसे देते हैं। ऐसे में बाक्स ऑफिस पर सिनेमा चलता है तो एसोसिएशन के साथ बैठकर अनुपात तय कर लेना चाहिए कि फिल्म की कमाई का कितना फीसद कलाकार को मिलना उचित होगा।

लंबी-चौड़ी टीम समस्या

हिंदी सिनेमा में शाह रुख खान, सलमान खान, आमिर खान, अक्षय कुमार जैसे सितारे प्रॉफिट में हिस्सा लेते हैं। इसके अलावा सितारों की लंबी चौड़ी टीम होती है। हाल ही में फिल्मकार और कोरियोग्राफर फराह खान भी अपने बयान को लेकर चर्चा में रही थीं। उन्होंने कहा था कि सितारों के साथ उनकी निजी टीम का खर्च काफी बढ़ गया है। ये पैसे की बर्बादी है। इसे नियंत्रित करना आवश्यक है। इस संबंध में सहमति जताते हुए पहलाज कहते हैं कि पहले पैसा फिल्म के निर्माण में ही लगता था, अब बाकी चीजों पर भी लगता है।

निर्माता जब उन्हें यह दे रहे हैं तो उन्हें भी साबित करना होगा कि वे उस स्तर का कलेक्शन दें। अब स्टूडियोज आ गए हैं, वे एकाधिकार दिखाना चाहते हैं कि सलमान खान या अजय देवगन की फिल्में मेरे पास हैं। वे अग्रिम पैसे देते हैं, 40 दिन में फिल्म शूट कर लेते हैं। टिकट स्वयं खरीदकर या मुफ्त में बांटकर यह दिखा देते हैं कि पहले तीन दिन का अच्छा कलेक्शन हुआ है, ताकि ओटीटी व दूसरी जगहों से पैसे वसूल कर सकें। वे आराम से अपनी फिल्मों के लिए बाजार बना लेते हैं।

तय कर लें फॉर्मूला

इस विषय में सरकार 3, चेहरे, द बिग बुल फिल्मों के निर्माता आनंद पंडित कहते हैं कि फीस का मानक तय होना चाहिए। जैसे हॉलीवुड में फॉर्मूला होता है कि पहले तीन दिन की कमाई का एक हिस्सा कलाकार को दिया जाता है। जो फिल्म पर खर्च होता है, उसमें से 20-30 फीसदी एक्टर का होना चाहिए, बाकी फिल्म निर्माण, प्रमोशन और पोस्ट प्रोडक्शन पर खर्च होना चाहिए। हॉलीवुड में अगर 50 करोड़ की फिल्म बनती है तो उसका अधिकतम 10 करोड़ रुपये कलाकार का पारिश्रमिक होता है।

हमारे यहां उल्टा है, एक्टर ही फिल्म का 70-80 प्रतिशत लेकर जाते हैं, निर्माता को बाकी 20 प्रतिशत में बाकी की चीजें करनी पड़ती हैं। लेखक पर पैसा खर्च नहीं करते हैं, इसलिए फिल्में अच्छी नहीं बन पाती हैं। वहीं पहलाज कहते हैं कि ये साझा सहयोग की भी बात है। निर्माताओं को साथ आना होगा कि मोटी फीस देकर कलाकारों को साइन न करें। हर कलाकार को अच्छे निर्माता-निर्देशक की आवश्यकता होती है, जिन्हें कंटेंट की समझ हो।

समझदारी से काम लें

अभिनेता अनिल कपूर स्वयं भी फिल्म निर्माण में सक्रिय हैं। अनिल कहते हैं कि कलाकारों को समझना चाहिए कि किन मुश्किलों से गुजरकर निर्माता फिल्म बनाते हैं। मैं हमेशा यह कहता हूं कि अगर कलाकार को टिकना है, लंबी दौड़ लगानी है तो इन चीजों के लिए समझदार होना चाहिए। मैंने जब करियर शुरू किया था, तब से आज तक इस पर अमल भी करता हूं कि निर्माता को सहयोग करूं।

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