एक्टर्स की बढ़ती फीस ने तोड़ी मेकर्स की कमर, फिल्म को हिट बनाने के लिए करते हैं चालाकी, OTT रहता है टारगेट
बॉलीवुड में पिछले कुछ दिनों से एक नया मुद्दा गरमाया हुआ है। सितारों की फीस के कारण फिल्ममेकर्स पर बोझ बढ़ रहा है। हाल ही में अनुराग कश्यप ने इस पर बात की थी। धर्मा प्रोडक्शन के मालिक करण जौहर भी अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं। वहीं अब अनिल कपूर और पहलाज निहलानी ने भी फिल्म के बजट और सितारों की फीस को लेकर बात की है।
प्रियंका सिंह, मुंबई। हाल ही में फिल्मकार करण जौहर ने कलाकारों की बढ़ती फीस से सिनेमा व्यवसाय को नुकसान पहुंचने को लेकर चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने कहा था कि बड़े कलाकारों को मोटी फीस लेने से पहले आत्ममंथन करना चाहिए। फिल्म इंडस्ट्री के अन्य निर्माताओं और कलाकारों ने भी इस मुद्दे पर विचार सामने रखे हैं। प्रियंका सिंह का आलेख...
जीने की ताकत, खाते का बैलेंस और नाम... कभी भी कम नहीं होना चाहिए। फिल्म वंस अपान ए टाइम इन मुंबई दोबारा का यह डायलॉग हिंदी सिनेमा के सितारों पर सटीक बैठता है। फिल्म हिट हो या ना हो, पर सितारों की फीस में बेतहाशा वृद्धि होती रहती है। यह बात निर्माताओं के लिए चिंता का विषय बन रही है।
हाल ही में फिल्मकार करण जौहर ने सितारों की मोटी फीस का मुद्दा उठाते हुए कहा कि किसी भी बजट की फिल्म बनाना चुनौती पूर्ण है। प्रचार और विज्ञापन पर काफी खर्च होता है, हर कलाकार को इस बात की समीक्षा करनी चाहिए कि वे कितनी फीस मांग रहे हैं। कई निर्माता फिल्में बनाना चाहते हैं, इसलिए वे मोटी फीस दे भी देते हैं, लेकिन ऐसा करने से पूरे तंत्र को नुकसान पहुंचता है।
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सिनेमा उद्योग पर असर
शोला और शबनम, आंखें समेत कई फिल्मों का निर्माण कर चुके निर्माता पहलाज निहलानी कहते हैं कि दिलीप (कुमार) साहब, धर्मेंद्र जैसे बीते दौर के बड़े सितारे अपनी फीस तीन-चार वर्ष तक नहीं बढ़ाते थे। आज के कलाकार तो फिल्म विफल होने के बाद भी फीस हर दूसरे वर्ष में बढ़ा देते हैं। दर्शक कंटेंट देखते हैं, बड़े स्टार्स को समझना चाहिए कि उनकी फिल्में बाक्स ऑफिस पर जितना कलेक्शन कर रही हैं, उसके अनुसार अपना शेयर लेना ही उचित है। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो सिनेमा के व्यवसाय पर बहुत असर पड़ेगा।पहले तीन घंटे की फिल्में बना करती थीं, अब वह अवधि घटकर दो से ढाई घंटे की रह गई है। पहले कलाकार एक फिल्म के लिए ज्यादा दिनों तक शूट करते थे, उनकी वह मेहनत बच गई और फीस ले रहे हैं कई गुना ज्यादा, जो सही नहीं है। ओटीटी ने भी नीति बदल दी है। बाक्स ऑफिस पर प्रदर्शन के हिसाब से वे पैसे देते हैं। ऐसे में बाक्स ऑफिस पर सिनेमा चलता है तो एसोसिएशन के साथ बैठकर अनुपात तय कर लेना चाहिए कि फिल्म की कमाई का कितना फीसद कलाकार को मिलना उचित होगा।