कौन हैं करसनदास मूलजी, जिन्होंने समाज के खिलाफ जाकर लड़ी विधवाओं के हक की लड़ाई, 'महाराज' में जुनैद ने निभाई भूमिका
आमिर खान के बेटे जुनैद खान की डेब्यू फिल्म महाराज कुछ दिनों पहले नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई थी। इस फिल्म को समीक्षकों की मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली थी। फिल्म में Junaid Khan ने करसनदास मूलजी का किरदार अदा किया था जो पेशे से एक पत्रकार थे। कौन थे करसनदाज मूलजी जिनके खिलाफ महाराज ने मानहानि का केस किया था। क्या है इसकी कहानी चलिए जानते हैं।
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। आमिर खान को जिस पल का इंतजार था, वो आ चुका है। उनके बड़े बेटे जुनैद खान ने अभिनय की दुनिया में कदम रख दिया है। यशराज फिल्म्स बैनर तले बनी 'महाराज' से जुनैद ने हिंदी सिनेमा में अपना सफर शुरू किया है। ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर पिछले सप्ताह रिलीज हुई फिल्म 'महाराज' को दर्शकों की मिली—जुली प्रतिक्रिया मिली।
हालांकि, जुनैद अपने पिता आमिर की तरह दर्शकों पर वह प्रभाव नहीं छोड़ पाए, जिसकी उम्मीद फैंस लगाए हुए थे। जुनैद ने फिल्म में एक पत्रकार करसनदास मूलजी की भूमिका निभाई है।
अगर आपने नेटफ्लिक्स पर यह फिल्म देख ली है तो क्या आपके मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि आखिर करसनदास कौन थे? यह कहानी असली है या कल्पना है? तो आइए जानते हैं कि इस किरदार की असली कहानी।
कौन है करसनदास मूलजी?
25 जुलाई 1832 को जन्मे करसनदास मूलजी एक गुजराती भाषी पत्रकार थे। साल 1874 में करसनदास को काठियावाड़ राज्य में प्रशासन के लिए नियुक्त किया गया था। गुजराती वैष्णव परिवार में पैदा हुए करसनदास आधुनिक विचारों वाले थे।
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जब उन्होंने विधवा महिला की दूसरी शादी की लड़ाई लड़ी तो उन्हें उनके परिवार से बाहर कर दिया था। पत्रकारिता में अपना सफर शुरू करने से पहले करसनदास ने कॉटन ट्रेड में अपनी किस्मत आजमाई थी, लेकिन वह उसमें सफल नहीं हो पाए।
यौन उत्पीड़न का पर्दाफाश
यह घटना है 21 अक्टूबर 1860 की, जब बंबई से प्रकाशित होने वाले एक गुजराती अखबार में "हिन्दुओं का सच्चा धर्म आज के समय में पाखंडी मत" शीर्षक के साथ खबर प्रकाशित हुई। इस लेख को सत्यप्रकाश अखबार में करसनदास मूलजी ने लिखा था। इसमें उन्होंने वैष्णव सम्प्रदाय के एक धर्मगुरु द्वारा कथित रूप से महिलाओं के यौन उत्पीड़न की पोल खोली थी।
करसनदास के खिलाफ हुआ मानहानि का केस
अपने ऊपर लगे कथित आरोपों के बाद धर्मगुरु ने मूलजी और अखबार के प्रकाशक के खिलाफ साल 1862 में बॉम्बे सुप्रीम कोर्ट में केस दर्ज कराया था। यह मामला भारतीय न्यायिक इतिहास का सबसे विवादित और पूरी बंबई (मुंबई) में चर्चा का विषय बन गया था। हालांकि, ये केस तब ज्यादा चर्चित हुआ, जब 'महाराज' की रिलीज से महज एक दिन पहले ही गुजरात हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी।
करसनदास मूलजी को महिला अधिकारों का पैरोकार और सामाजिक सुधारक रूप में जाना जाता था। उन्होंने विधवा विवाह के लिए लड़ाई लड़ी थी, जो उस समय एक कुरीति के रूप में प्रचलित थी। करसनदास ने सत्य प्रकाश अखबार शुरू करने से पहले एंग्लो गुजराती अखबार और रस्त गोफ्तार में भी काम किया था।
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