दम मारो दम.. की दुनिया खंगालता हिंदी सिनेमा, इन विषयों पर बनने वाली फिल्मों पर एक नजर...
ड्रग्स की दुनिया इसके कारोबार कारण प्रभाव तथा परिणामों को केंद्र में रखते हुए हिंदी सिनेमा में कई फिल्में बनी हैं। देश में ड्रग्स रूपी जहर के प्रसार की रोकथाम में हिंदी सिनेमा की भूमिका। इस विषय पर बनने वाली फिल्मों में कलाकारों के प्रभाव की पड़ताल करती स्टोरी
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 24 Jun 2022 01:18 PM (IST)
दीपेश पांडेय। साल 1971 में रिलीज फिल्म हरे रामा हरे कृष्णा के गाने दम मारो दम.. के दृश्य में अभिनेत्री जीनत अमान और उनके आस पास के लोगों को मादक पदार्थों का सेवन करते हुए दिखाया गया है। उसके बाद से दम मारो दम.. शब्द का इस्तेमाल ज्यादातर ड्रग्स, गांजा तथा अन्य मादक पदार्थों के सेवन के संदर्भ में किया जाने लगा। दुनिया भर में ड्रग्स (नशीली दवाओं) के सेवन और उसकी तस्करी की रोकथाम के उद्देश्य से 26 जून को इंटरनेशनल डे अगेंस्ट ड्रग एब्यूज एंड इलिसिट ट्रैफिकिंग मनाया जाता है। ड्रग्स आज देश की प्रमुख समस्याओं में से एक है।
रहस्यमयी और भयावह दुनिया : देश में ड्रग्स यानी कि मादक पदार्थों के प्रति युवाओं का बढ़ रहा आकर्षण दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले हमारे देश भारत के लिए एक बड़ी खतरे की घंटी है। ड्रग्स का काला कारोबार और उसकी दुनिया हमेशा से आम इंसान के रहस्यमयी रहा है, जिसे समझने में सिनेमा लोगों के लिए एक बड़ा माध्यम रहा। ड्रग्स के कारोबार से लेकर इसके इस्तेमाल, प्रभाव और दुष्परिणामों जैसे विषयों को केंद्र में रखकर हिंदी सिनेमा में कई फिल्में बनी। साल 1971 में इस विषय पर बनी देव आनंद तथा जीनत अमान अभिनीत फिल्म हरे कृष्णा हरे राम हिट रही। उसके बाद अलग-अलग वर्षों में चरस (1976), जांबाज (1986), जलवा (1987), फैशन (2008), देव डी (2009), पंख (2010), दम मारो दम (2011), गो गोवा गॉन (2013), रमन राघव 2.0 (2016), उड़ता पंजाब (2016) तथा मलंग (2020) जैसी फिल्मों भी ड्रग्स से जुड़े अलग-अलग पहलुओं को दिखाया गया। जान्हवी कपूर अभिनीत आगामी फिल्म गुड लक जेरी में भी ड्रग्स कहानी का अहम हिस्सा है। फिल्म हरे रामा हरे कृष्णा में माता-पिता के बीच अलगाव के बाद नायिका ड्रग्स का शिकार बनती है और अंत में वह अपनी हालत पर शर्मिंदा होकर आत्महत्या कर लेती है। फिल्म शैतान में कुछ युवा ड्रग्स के नशे में दो मासूम लोगों का एक्सीडेंट कर देते हैं। फिल्म के अंत में उन्हें भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। इसी तरह गो गोवा गॉन में एक नए ड्रग्स के सेवन से लोग जाम्बी बन जाते हैं।
फिल्मकार के लिए ड्रग्स से जुड़ी कहानियां सही संदर्भ में दिखाना जरूरी हैं, क्योंकि अगर इसे ग्लैमर और फैशन से जोड़कर दिखाया जाएगा तो वह बहुत से युवा ड्रग्स की तरफ आकर्षित हो सकते हैं। इस बाबत फिल्म शैतान और दम मारो दम के अभिनेता गुलशन देवैया कहते हैं, किरदार और कहानी का एक संदर्भ होता है। दर्शकों को हर चीजों को सही संदर्भ में देखना होता है। शैतान फिल्म की कहानी का अंत बहुत बुरी तरह से होता है, ड्रग्?स लेने वाले सारे किरदार मारे जाते हैं। आजकल के दर्शक काफी समझदार हो गए हैं खासकर इंटरनेट मीडिया आने के बाद। फिल्में देखकर बहुत से तो नहीं, लेकिन कुछ लोग तो कहानी और कलाकारों से जरूर प्रभावित होते हैं। फिल्मकारों को सिर्फ इतनी जिम्मेदारी समझने की जरूरत है कि अगर कहानी में जरूरत है, तभी ड्रग्स से जुड़े सीन या किरदार दिखाएं। सिर्फ चलन की वजह से इस तरह के सीन या किरदार ना दिखाएं।
इन विषयों पर बनीं फिल्में
- हरे कृष्णा हरे राम
- चरस (1976)
- जांबाज
- जलवा
- फैशन
- देव डी
- पंख
- दम मारो दम
- गो गोवा गॉन
- रमन राघव 2.0
- उड़ता पंजाब
- मलंग
अभिनय मुश्किल : ड्रग्स के नशे में धुत इंसान का व्यक्तित्व सामान्य इंसान से बिल्कुल अलग हो जाता है, तो कलाकारों के लिए ऐसे सीन करना आसान नहीं होता है। इसके लिए फिल्मकार और कलाकार अलग-अलग तरीके अपनाते हैं। फिल्म में कभी वास्तविक ड्रग्स का इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि इसके लिए ड्रग्स की तरह दिखने वाली अन्य चीजों का इस्तेमाल करते हैं। इस बारे में गुलशन बताते हैं, च्फिल्मों में जब कलाकारों द्वारा ड्रग्स लेने का सीन दिखाया जाता है, तो उनमें ज्यादातर सीन में कलाकार सिर्फ अंदर खींचने का नाटक करता है। भी-कभी ड्रग्स सेवन दिखाने के लिए डिस्प्रिन (दर्द निवारक दवा) का पाउडर भी दिया जाता है, लेकिन वह भी ज्यादा नहीं सूंघ सकते हैं। मुझे एक शो के लिए ऐसा सीन शूट सूट करना पड़ा था। उसके लिए मैंने अपने हाथों से डिस्प्रिन को अच्छी तरह पीसकर पाउडर बनाया था। क्योंकि कभी-कभी अगर डिस्प्रिन ठीक से नहीं पीसी जाती, तो उसके टुकड़े नाक में अटक जाते हैं, जिससे नाक से खून भी आ सकता है। इसके और भी तरीके हैं, पर अधिकतर मामलों में कैमरा एंगल और कलाकार के इमोशंस दिखाकर फिल्मकार चीट (धोखा या दिखावा) करते हैं। शैतान की शूटिंग के दौरान तो हमने पूरा चीट किया था। उसमें हमने ड्रग्स की जगह शुगर फ्री टेबलेट के पाउडर और ग्लूकोस इस्तेमाल किया था। कैमरे पर चीजें ऐसी दिखती हैं कि नाक से ले रहे हैं, लेकिन अक्सर हम उन्हें मुंह से ही खींच कर चीट करते हैं।ज् वहीं इस बाबत फिल्म गो गोवा गॉन के अभिनेता कुणाल खेमू बताते हैं, च्हमारी फिल्म की सबसे खास बात यह थी कि हमारे निर्देशक राज और डीके (राज निदिमोरू और कृष्णा डीके) स्मोक(धूमपान ) भी नहीं करते हैं। ऐसे में जब उन्हें रोलिंग से लेकर ड्रग्स लेने जैसे सीन फिल्माने होते थे, तो वह यूट्यूब पर जाकर उसके बारे में बाकायदा रिसर्च करते थे। यह देख कर हमारे दिमाग में यही सवाल उठता था कि वह इसे प्रमाणिकता के साथ कैसे फिल्मा सकते हैं? लेकिन फिल्म में उन्होंने अच्छी तरह किया है।
संतुलन जरूरी : सिनेमा का मुख्य उद्देश्य मनोरंजन होता है, लेकिन अपनी विस्तृत पहुंच और प्रभाव की वजह से कई बार सिनेमा मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक संदेश और जागरूकता प्रसारित करने में भी अहम योगदान देता है। मनोरंजन के साथ दिए गए संदेश को समझना आसान होता है। ऐसे में ड्रग्स जैसे गंभीर विषय पर फिल्म बनाते वक्त फिल्मकार के लिए मनोरंजन और जागरूकता के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक होता है। संजय दत्त की बायोपिक फिल्म संजू के अभिनेता बमन ईरानी का कहना है, च्जो चीजें हमारे लिए अच्छी नहीं है, हमें उन सभी के खिलाफ जागरूकता फैलानी चाहिए। हम अपनी फिल्मों और किरदारों के जरिए लोगों को आसानी से संदेश दे सकते हैं। ड्रग्स जैसे सभी गंभीर सामाजिक मुद्दों पर बात करना और उनकी कहानियों दिखाई जानी बहुत जरूरी है। सिनेमा का मुख्य उद्देश्य लोगों का मनोरंजन करना है। अगर हम फिल्म के माध्यम से सिर्फ संदेश देने जाएंगे, तो उसमें मनोरंजन नहीं रह जाएगा। ऐसी स्थिति में लोग उस कहानी से दूर भागने लगते हैं। सिनेमा के जरिए संदेश देना तो ठीक है लेकिन उसके साथ-साथ मनोरंजन होना भी बहुत जरूरी होता है।
सबकी जिम्मेदारी: ड्रग्स रुपी जहर को देश से उखाड़ फेंकने की जिम्मेदारी देश के हर नागरिक की होती है। इस काम में सिनेमा इंडस्ट्री तो अपनी फिल्मों, कहानियों और किरदारों के माध्यम में लोगों में लगातार संदेश दे ही रहा है, लेकिन इसके साथ माता-पिता, पुलिस, राजनेता, स्वयंसेवी और कलाकारों समेत समाज के सभी तबके को अपने हिस्से का काम करने की जरूरत है। इस बारे में मोहित सूरी कहते हैं, च्ड्रग्स को उखाड़ फेंकने की जिम्मेदारी आप सिर्फ सिनेमा के कंधों पर नहीं डाल सकते हैं, इसके लिए समाज के हर तबके को अपने हिस्से का काम करना पड़ेगा। इस प्रक्रिया में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण चीज माता-पिता द्वारा उनके बच्चों की परवरिश होती है। जब बच्चे बड़े होते हैं, तो माता-पिता को अपने बच्चों को ड्रग्स और उसके दुष्प्रभावों के बारे में समझाना चाहिए। अगर बच्चे इस तरह की फिल्में भी देखते हैं, तो माता-पिता को चाहिए कि बच्चों को कहानी का सही संदर्भ समझाएं और बताएं कि इस तरह की चीजें अच्छी नहीं है और फिल्मों में भी इसके परिणाम बुरे ही होते हैं।
रीयल लाइफ में भी ड्रग्स: सिर्फ रील लाइफ में ही नहीं, कुछ सितारे रियल लाइफ में भी ड्रग्स से जुड़े मामलों में सुर्खियों रहें। साल 2020 में अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के अकस्मात निधन के बाद सिनेमा जगत पर नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) कीकार्रवाई तेज हुई। जिसके बाद सुशांत की पूर्व गर्लफ्रेंड तथा अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती के साथ अभिनेत्री अनन्या पांडे, दीपिका पादुकोण और सारा अली खान के साथ एनसीबी ने पूछताछ की था। अभिनेता संजय दत्त, अभिनेत्री दिव्या भारती और रैपर हनी सिंह जैसे कई अन्य सितारे भी ड्रग्स की लत का शिकार हो चुके हैं। हाल ही में एनसीबी ने शाह रुख खान के बेटे आर्यन खान को ड्रग्स से जुड़े मामले में गिरफ्तार किया था। बाद में उन्हें क्लीन चिट दे दी गई।