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कभी रिलीज नहीं हुए Kishore Kumar के अनसुने गीत, बर्थ एनिवर्सरी पर पढ़िए रोचक किस्से

4 अगस्त लीजेंड्री सिंगर किशोर कुमार की बर्थ एनिवर्सरी (Kishore Kumar Birth Anniversary) मनाई जाती है। सुरों के सरताज के तौर पर किशोर दा हम सबके दिल में बसते हैं। इस खास दिन पर उनकी बायोग्राफी किशोर कुमार द अल्टीमेट बायोग्राफी’ के लेखक पार्थिव धर व अनिरुद्ध भट्टाचार्य ने गायक के बारे में खुलकर बात की है आइए उनकी लाइफ के बारे में थोड़ा और विस्तार से जानते हैं।

By Ashish Rajendra Edited By: Ashish Rajendra Updated: Sun, 04 Aug 2024 04:00 AM (IST)
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दिग्गज गायक किशोर कुमार की बर्थ एनिवर्सरी (Photo Credit-Jagran)

एंटरटेनमेंट डेस्क, मुंबई। एक गायक, न तो जिसके सुरों की थाह थी और न ही व्यक्तित्व की तमाम परतों की। तमाम आश्चर्यों से भरे किशोर कुमार (Kishore Kumar) की जयंती 4 अगस्त पर उनसे जुड़े किस्से साझा कर रहे हैं पार्थिव धर व अनिरुद्ध भट्टाचार्य, जोकि ‘किशोर कुमार: द अल्टीमेट बायोग्राफी’ के लेखक हैं।

सिनेमा में आया किशोर नाम का तूफान

एक समय था जब हमारे देश में बनने वाली फिल्में कसी-सजी पटकथा पर ही बनती थीं। तब पूरी पटकथा बाकायदा ‘लिखी’ जाती थी, उसे बारीकी के साथ तैयार किया जाता था। 18वीं शताब्दी के छठे दशक के उत्तरार्ध तक पटकथा का वह महत्व नहीं रहा। अचानक फिल्म का नायक ही सर्वोपरि हो गया। तो वहीं कुछ फिल्मों के संगीत निर्देशकों का जादू उस फिल्म से ज्यादा चलने लगा।

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सातवें दशक तक आते-आते किशोर कुमार गांगुली की अनूठी अदाएं और आवाज का आकर्षण इतना बढ़ गया कि क्या नायक, क्या नायिका, फिल्म के बाकी पहलू एक तरफ और किशोर कुमार का गीत-संगीत दूसरी तरफ, उन्होंने सभी को पीछे छोड़ दिया। स्थिति यह थी कि अब निर्माता-निर्देशक नायक-नायिका और पटकथा से ज्यादा फिल्म में किशोर कुमार के गीत-संगीत को अहमियत देने लगे थे।

किशोर कुमार के पॉपुलर गीत

किशोर कुमार के गीतों में पश्चिमी संगीत की झलक रहती थी, जो कहानी को आगे बढ़ाने का एक नया रास्ता देती थी। यही वजह रही कि ‘मेरी दोस्ती तेरा प्यार’, ‘आज का यह घर’, ‘क्षितिज’, ‘एहसास’ जैसी फिल्में भी किशोर कुमार के गीतों से सुसज्जित हुईं।

हालांकि अगर किशोर कुमार के चौकीदार को हृषिकेश मुखर्जी के कोई अन्य बंगाली सज्जन होने का भ्रम न हुआ होता तो राजेश खन्ना पर फिल्माए गए ‘जिंदगी कैसी है ये पहेली’, ‘मैंने तेरे लिए ही’ और ‘कहीं दूर जब दिन’ जैसे गीत किशोर कुमार की आवाज में सजे होते।

वहीं स्वयं किशोर कुमार के अतरंगी फैसलों के किस्से भी खूब हैं। फिल्म ‘उपकार’ के गीत ‘कसमें वादे प्यार वफा’ को गाने से मना तो कर दिया था मगर इसकी वजह स्वयं उन्हें तक मालूम नहीं थी। इसी सूची में सत्यजीत रे की कल्ट कामेडी फिल्म ‘पारस पत्थर’ भी जोड़ लीजिए, जब वे सिर्फ यह खबर सुनकर भागे-भागे पहुंचे थे कि उन्हें एक भूमिका दी गई है और उसी फिल्म को करने के दौरान वे सिर्फ इस वजह से लगातार ड्राइव करते हुए पनवेल तक निकल गए थे क्योंकि निर्देशक ‘कट’ कहना भूल गए थे (या शायद उन्होंने कहा था, मगर बात कुछ और थी।

डायरेक्टर भी रहे किशोर दा

एक तरफ जहां किशोर कुमार ‘दूर गगन की छांव में’ जैसी गंभीर फिल्म कर रहे थे तो वहीं ‘बढ़ती का नाम दाढ़ी’ जैसी फिल्म के साथ एक बड़ा जोखिम ले चुके थे। सोचने वाली बात है कि अगर वे भारतीय सिनेमा में स्वयं को निर्देशक अल्फ्रेड हिचकाक की तरह स्थापित करने का विचार रख रहे थे, तो उन्होंने हिचकाक की कोशिशों का एक प्रतिशत भी क्यों नहीं पूरा किया?

क्या यह आकर्षण केवल उनके निजी मनोरंजन के लिए था? सबके लिए आश्चर्य था कि किशोर कुमार वास्तव में क्या थे? उनको समझने वाले बताते हैं कि उनका आसान सा फार्मूला था। वे सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक स्वयं को यथासंभव सर्वश्रेष्ठ तरीके से व्यस्त रखते थे, जिसे समझा या विश्लेषित नहीं किया जा सकता। इसका बस इन्हीं आंकड़ों से अनुमान लगा सकते हैं कि उनके कुल गीतों की संख्या में हिट का अनुपात फिल्म जगत में शीर्ष पर है।

भले ही कैसेट ने रूप बदलते हुए सीडी/डीवीडी की जगह ले ली और आज सब कुछ स्ट्रीम हो रहा है, मगर जो अपरिवर्तित रहा है वह है किशोर कुमार का जादू। इसके अलावा, अब उनके प्रशंसकों का एक नया समूह है, जिनसे वे न तो मिले थे और न ही उनसे बात हुई थी।

नहीं रिलीज हुए किशोर कुमार के ये गीत

ये प्रशंसक उनकी गैर प्रदर्शित फिल्मों व गीतों को उच्च कीमतों पर साझा कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, पुणे में होने वाले ‘पंचम मैजिक’ शो में किशोर कुमार के कुछ अप्रदर्शित गीतों को जारी किया गया, जिसमें ‘खुशबू’ (1975) में इस्तेमाल होने से रह गया वह गीत भी था, जिससे इस फिल्म को इसका नाम मिला, गीत है- ‘मुझको यूं ही उदास रहने दो’।

किशोर-पंचम दा की साझेदारी सबको पसंद थी, मगर कुछ ऐसे लोग थे, जिन्होंने इस जोड़ी को इतना भी खास नहीं माना और सदा इनकी आलोचना की। उनके लिए किशोर कुमार ने बहुत पहले ही फिल्म ‘गंगा की लहरें’ (1964) में संवाद के जरिए उत्तर दे दिया था कि ‘मैं कहता था ना...दुनिया कहती मुझको पागल, मैं कहता दुनिया पागल’।

जो भी हो, आज की पीढ़ी के लिए यह जोड़ी और विशेष तौर पर किशोर कुमार एक खुराक की तरह हैं, जो ‘रेट्रो’ संगीत का आनंद लेना चाहते हैं, लेकिन यह तय नहीं कर पाते कि वे संगीत की प्यास कहां बुझाएं। हां, यह दुखद है कि किशोर कुमार जैसा बेशकीमती नगीना आज हमारे बीच नहीं, मगर उनके नाम पर आंसू बहाने के बजाय मुस्कुराएं कि कभी संगीत का ऐसा सरताज भी हुआ था। वह सितारा जो अपने संगीत से पीढ़ियों को जोड़ता चला आ रहा है। जिसकी एक धुन जेनरेशन गैप को धता बता जाती है। आज धुन के इसी धुरंधर को मुस्कुराकर याद करने का दिन है।

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