कभी रिलीज नहीं हुए Kishore Kumar के अनसुने गीत, बर्थ एनिवर्सरी पर पढ़िए रोचक किस्से
4 अगस्त लीजेंड्री सिंगर किशोर कुमार की बर्थ एनिवर्सरी (Kishore Kumar Birth Anniversary) मनाई जाती है। सुरों के सरताज के तौर पर किशोर दा हम सबके दिल में बसते हैं। इस खास दिन पर उनकी बायोग्राफी किशोर कुमार द अल्टीमेट बायोग्राफी’ के लेखक पार्थिव धर व अनिरुद्ध भट्टाचार्य ने गायक के बारे में खुलकर बात की है आइए उनकी लाइफ के बारे में थोड़ा और विस्तार से जानते हैं।
एंटरटेनमेंट डेस्क, मुंबई। एक गायक, न तो जिसके सुरों की थाह थी और न ही व्यक्तित्व की तमाम परतों की। तमाम आश्चर्यों से भरे किशोर कुमार (Kishore Kumar) की जयंती 4 अगस्त पर उनसे जुड़े किस्से साझा कर रहे हैं पार्थिव धर व अनिरुद्ध भट्टाचार्य, जोकि ‘किशोर कुमार: द अल्टीमेट बायोग्राफी’ के लेखक हैं।
सिनेमा में आया किशोर नाम का तूफान
एक समय था जब हमारे देश में बनने वाली फिल्में कसी-सजी पटकथा पर ही बनती थीं। तब पूरी पटकथा बाकायदा ‘लिखी’ जाती थी, उसे बारीकी के साथ तैयार किया जाता था। 18वीं शताब्दी के छठे दशक के उत्तरार्ध तक पटकथा का वह महत्व नहीं रहा। अचानक फिल्म का नायक ही सर्वोपरि हो गया। तो वहीं कुछ फिल्मों के संगीत निर्देशकों का जादू उस फिल्म से ज्यादा चलने लगा।
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सातवें दशक तक आते-आते किशोर कुमार गांगुली की अनूठी अदाएं और आवाज का आकर्षण इतना बढ़ गया कि क्या नायक, क्या नायिका, फिल्म के बाकी पहलू एक तरफ और किशोर कुमार का गीत-संगीत दूसरी तरफ, उन्होंने सभी को पीछे छोड़ दिया। स्थिति यह थी कि अब निर्माता-निर्देशक नायक-नायिका और पटकथा से ज्यादा फिल्म में किशोर कुमार के गीत-संगीत को अहमियत देने लगे थे।
किशोर कुमार के पॉपुलर गीत
किशोर कुमार के गीतों में पश्चिमी संगीत की झलक रहती थी, जो कहानी को आगे बढ़ाने का एक नया रास्ता देती थी। यही वजह रही कि ‘मेरी दोस्ती तेरा प्यार’, ‘आज का यह घर’, ‘क्षितिज’, ‘एहसास’ जैसी फिल्में भी किशोर कुमार के गीतों से सुसज्जित हुईं।
हालांकि अगर किशोर कुमार के चौकीदार को हृषिकेश मुखर्जी के कोई अन्य बंगाली सज्जन होने का भ्रम न हुआ होता तो राजेश खन्ना पर फिल्माए गए ‘जिंदगी कैसी है ये पहेली’, ‘मैंने तेरे लिए ही’ और ‘कहीं दूर जब दिन’ जैसे गीत किशोर कुमार की आवाज में सजे होते।वहीं स्वयं किशोर कुमार के अतरंगी फैसलों के किस्से भी खूब हैं। फिल्म ‘उपकार’ के गीत ‘कसमें वादे प्यार वफा’ को गाने से मना तो कर दिया था मगर इसकी वजह स्वयं उन्हें तक मालूम नहीं थी। इसी सूची में सत्यजीत रे की कल्ट कामेडी फिल्म ‘पारस पत्थर’ भी जोड़ लीजिए, जब वे सिर्फ यह खबर सुनकर भागे-भागे पहुंचे थे कि उन्हें एक भूमिका दी गई है और उसी फिल्म को करने के दौरान वे सिर्फ इस वजह से लगातार ड्राइव करते हुए पनवेल तक निकल गए थे क्योंकि निर्देशक ‘कट’ कहना भूल गए थे (या शायद उन्होंने कहा था, मगर बात कुछ और थी।