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'हीरामंडी' के लिए Manisha Koirala ने 7 घंटों तक लगवाई मेहंदी, भंसाली के साथ कमबैक को लेकर कही ये बात

90 के दशक की मशहूर अदाकारा मनीषा कोइराला (Manisha Koirala) इस समय वेब सीरीज हीरामंडी की वजह से चर्चा में हैं। निर्देशक संजय लीला भंसाली की इस सीरीज में उनका किरदार काफी अहम होने वाला है। इस बीच हीरामंडी (Heeramandi) के लिए तैयारियों पर मनीषा ने प्रकाश डाला है और बताया है कि कैसे एक सीन के लिए उन्होंने करीब 7 घंटों तक अपने हाथों पर मेहंदी लगवाई थी।

By Ashish Rajendra Edited By: Ashish Rajendra Updated: Sun, 28 Apr 2024 06:00 AM (IST)
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हीरामंडी को लेकर मनीषा ने की खुलकर बात (Photo credit-X)
 एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। ‘खामोशी : द म्यूजिकल’ फिल्म के 28 वर्ष बाद मनीषा कोइराला ने फिल्मकार संजय लीला भंसाली के साथ दोबारा काम किया है। वेब सीरीज ‘हीरामंडी’ एक मई को नेटफ्लिक्स पर प्रदर्शित होगी। मनीषा इसे बेहतरीन दौर मानती हैं, जहां अभिनेत्रियों के लिए अच्छे किरदार लिखे जा रहे हैं। वेब सीरीज, वर्तमान समय व अन्य मुद्दों पर मनीषा ने हाल ही में खुलकर बात की है।

खुद का बताया कमर्शियल एक्ट्रेस

अपने दौर के बारे में बात करते हुए मनीषा कोइराला ने कहा है- जब मैं युवा थी, तो मैं स्वच्छंद थी। मैं कमर्शियल फिल्म अभिनेत्री रही हूं। फिल्मों में मेरा काम सुंदर दिखना और पेड़ों के आसपास भागना ही था। मुझ पर ईश्वर की कृपा रही कि अच्छे रोल और निर्देशक मिले।

जब फिल्म की कहानी हीरो की होती थी, तब उस दौर में मुझे विधु विनोद चोपड़ा ने ‘1942: ए लव स्टोरी’ दी, मुझे ‘अकेले हम अकेले तुम’, ‘बांबे’, ‘दिल से’ जैसी फिल्में मिलीं। अच्छे निर्देशकों के साथ अगर आप छोटा सा भी रोल करते हैं, तो उसमें चमकते हैं। कहीं न कहीं औसत दर्जे के काम की ओर देखने का नजरिया बदला।

पूरी हुई मनीषा की मुराद

मैंने इतनी सारी फिल्में की हैं, लेकिन जिस तरह का एंट्री सीन मुझे ‘हीरामंडी’ में मिला है, वह कभी नहीं मिला। संजय लीला भंसाली अपनी हीरोइनों को बड़ी खूबसूरती से पेश करते हैं। अपने इंट्रोडक्शन सीन में मैं लेटकर मेहंदी लगवा रही हूं। उसके लिए मैं सात घंटे तक लेटी रही थी। अच्छी बात यह रही कि मुझे कंधों में दर्द या दूसरी कोई तकलीफ महसूस नहीं हो रही थी। मन में उत्सुकता थी कि स्क्रीन पर कैसी दिखूंगी।

बेहतर होगा भविष्य

मनीषा कोइराला ने अपनी बातें जारी रखते हुए कहा- फिलहाल मेरा झुकाव लेखन की तरफ भी है। मेरी अगली किताब कोई भी हो सकती है क्योंकि मन में कई कहानियां हैं। हालांकि नारीवाद का विषय मेरे दिल के बहुत करीब है। मुझे जब फेमिनिज्म का अर्थ भी ठीक से पता नहीं था, तब से मैं उस पर बात करती आई हूं। मैं एक ऐसे माहौल में बड़ी हुई हूं, जहां मेरी परदादी, दादी, मां महिलाओं के अधिकारों को लेकर आवाज उठाती आई हैं। उस दौर में जब महिलाएं केवल रसोई घर तक ही सीमित रह जाती थीं, उस वक्त मेरे घर की महिलाएं, सशक्त और मुखर थीं। आज का दौर बदल चुका है।

आज कई महिलाएं हैं, जो अपने अधिकार जानती हैं। अपने कंफर्टजोन से बाहर निकलकर वह उपलब्धियां पा रही हैं, जो नामुमकिन लगती थीं। सिनेमा में अब केवल अभिनेत्रियां और निर्देशिकाएं ही नहीं हैं, बहुत सारी तकनीशियंस भी आ गई हैं।

महिला कंटेंट क्रिएटर्स को देखकर मैं हैरान हूं। जिस तरह से कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ी है, वह देखकर अच्छा लगता है। भविष्य बेहतर लगता है। हालांकि आज भी वेतन और अवसर पुरुषों के समान नहीं मिलते हैं, हम उस दिशा में धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं।

सिनेमा, डिजिटल प्लेटफार्म, टीवी पर महिलाओं पर बने कंटेंट सफल हो रहे हैं। हाल ही में मैं ‘क्रू’ फिल्म देखने के लिए सिनेमाघर गई थी। मैं वहां खासतौर पर इसलिए ही गई थी कि उसमें सब महिला कलाकार हैं। हमें एक-दूसरे के काम की सराहना और सहायता दोनों की जरूरत है।

हमें उस संघर्ष को समझना होगा, जिससे हम सभी महिलाएं गुजरती हैं। मैं इन विषयों के बारे में गंभीरता से सोचती हूं। अभिनेत्रियां कितनी ही प्रसिद्ध क्यों न हों, लेकिन अभिनेता को उनसे तीन-चार गुणा ज्यादा फीस मिलती है, मैंने यह सब देखा है। सिर्फ महिलाएं ही नहीं, पुरुषों को भी इस ओर आवाज उठानी चाहिए। जब हर कोई आवाज उठाएगा तो बदलाव आएगा।

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