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Exclusive: जमीन से जुड़ी फिल्म है 'भैया जी', प्रोडक्शन डिजाइनर बोइशाली सिन्हा ने बताया चीजों पर कैसे हुआ है काम

मनोज बाजपेयी फिल्म भैया जी को लेकर सुर्खियों में हैं। ये मूवी रिलीज से ज्यादा दिनों की दूरी पर नहीं है। इस फिल्म के साथ अपने करियर में फिल्मों का शतक जड़ेंगे। किसी भी फिल्म को सक्सेसफुल बनाने में प्रोडक्शन डिजाइनिंग का बड़ा हाथ होता है। भैया जी की प्रोडक्शन डिजाइनर बोइशाली सिन्हा ने जागरण डॉट कॉम से खास बातचीत करते हुए कुछ चीजों के बारे में बताया।

By Karishma Lalwani Edited By: Karishma Lalwani Updated: Mon, 20 May 2024 05:54 PM (IST)
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'भैया जी' एक्टर मनोज बाजपेयी, प्रोडक्शन डिजाइनर बोइशाली सिन्हा, डायरेक्टर अपूर्व सिंह कार्की

करिश्मा लालवानी, नई दिल्ली। फिल्मों में दिखाई जाने वाली रील दुनिया का प्रभाव बड़े पर्दे पर कुछ ऐसा होता है कि वह देखने में असली लगे। किसी भी फिल्म को स्पेशल बनाने में सिर्फ उसमें दिखने वाले एक्टर्स की मेहनत नहीं होती। इन सबमें पर्दे के पीछे काम करने वालों का खास हुनर और कड़ी मेहनत भी होती है। कलाकारों के लुक्स और बॉडी लैंग्वेज के अलावा कहानी के अनुसार उस सेट को गढ़ना बहुत जरूरी होता है, जिस समय में वह फिल्म बनाई जा रही हो। प्रोडक्शन डिजाइनर इस काम की जिम्मेदारी संभालते हैं। वह कॉन्सेप्ट के अनुसार किसी चीज की कल्पना कर उस पर इतनी बारीकी से काम करते हैं, जो स्क्रीन पर दिखने वाली उस काल्पनिक दुनिया में जान फूंक दे।

'भैया जी' उत्तर प्रदेश के बैकड्रॉप पर बनी कहानी है। प्रोडक्शन डिजाइनर ने बताया कि कैसे 'भैया जी' की दुनिया बसाई। फिल्म की ज्यादातर शूटिंग उत्तर प्रदेश और आसपास के शहरों में हुई है, जहां जरूरी सेटों का निर्माण किया गया। प्रोडक्शन डिजाइनर बोइशाली सिन्हा ने दैनिक जागरण से खास बातचीत करते हुए फिल्म की शूटिंग के साथ ही प्रोडक्शन डिजाइनर के तौर पर अपनी जर्नी पर खास बातचीत की।

आपको हमेशा लगा की बॉलीवुड ही आपकी कॉलिंग है?

मैं दिल्ली की रहने वाली हूं। पेंटिंग, फोटोग्राफी में हमेशा से मेरी दिलचस्पी रही है, लेकिन ऐसा कुछ सोचा नहीं था कि बॉलीवुड में ही काम करूंगी। दिल्ली से पढ़ने के बाद मैंने आर्ट्स की आगे की पढ़ाई फ्रांस से की। वहां से लौटने पर सोचा कि क्यों न अपनी कला का हुनर फिल्म इंडस्ट्री में इस्तेमाल किया जाए। बस यहीं से बॉलीवुड में मैंने अपनी शुरुआत की।

बॉलीवुड में नए आर्टिस्ट के रुप में आपका शुरुआती अनुभव कैसा रहा?

मैं इस मामले में खुद को लकी कहूंगी कि मुझे फौरन काम मिल गया। मुझे शुरुआती दौर में संघर्ष नहीं करना पड़ा। दो दिन में ही काम मिल गया था। मैंने आर्ट निर्देशक बनकर अपना करियर शुरू किया। मेरी पहली फिल्म 'राउडी राठौड़' थी। कुछ विज्ञापन में भी काम किया और अब मनोज बाजपेयी के साथ 'भैया जी' में काम करने का अवसर मिला।

आर्ट डायरेक्टर और प्रोडक्शन डिजाइनिंग में फर्क क्या है?

प्रोडक्शन डिजाइनिंग, आर्ट डायरेक्शन से बड़ा टर्म है। अलग-अलग देशों की इंडस्ट्री में इनकी अलग-अलग अहमियत है। हॉलीवुड में प्रोडक्शन डिजाइनिंग के कई मतलब हैं, लेकिन हमारे यहां चीजें अब धीरे-धीरे बदल रही हैं। प्रोडक्शन डिजाइन में कलर पैलेट, कॉस्ट्यूम डिजाइन, फ्रेम इन सबका काम होता है। आर्ट डायरेक्शन में आपको प्रॉप्स बनाकर देना होता है। 

'भैय्या जी' के सेट से जुड़ी कोई याद या इंसीडेंट?

'भैया जी' की शूटिंग लखनऊ, बाराबंकी, मलिहाबाद में पूरी हुई है। इसमें कुछ चीजों को वैसे ही इस्तेमाल किया गया है, जैसे वो हैं और कुछ को बनाया गया है। फिल्म के ट्रेलर में मनोज बाजपेयी गाड़ी लेकर आ रहे हैं और उनके पीछे कई लोग हैं। इस सीन में दिखाई गई कुछ चीजें कन्स्ट्रक्शन का हिस्सा हैं। फिल्म में दिखाया गया घर असली है, बाकी की कुछ चीजें प्रॉप्स, आर्ट और प्रोडक्शन डिजाइनिंग का हिस्सा हैं।

आर्ट डायरेक्टर के रूप में आपके सामने क्या चुनौतियां थीं?

इस फील्ड में मेंटल और फिजिकल प्रेशर होता है, लेकिन अगर आप सेट पर हो, तो आप लड़के हो या लड़की, इससे फर्क नहीं पड़ता। आपको काम करना है। कोई भी काम आप बिना जुनून के करते हैं, तो वह काम नहीं बनेगा। मैंने ये कभी नहीं सोचा कि मैं लड़की हूं, तो मुझे इस चीज की दिक्कत आएगी। यह सब इस पर निर्भर करता है कि आप क्या करना चाहते हो और उसे कैसे करते हो।

कभी ऐसी सिचुएशन आई कि आपको लगा कि आपने जैसा सोचा, वैसे काम नहीं हो रहा?

कुछ एक सीरीज के सेट पर ऐसा जरूर हुआ कि मेरे और सिनेमाटोग्राफर के काम में परेशानी हुई हो। लेकिन 'भैया जी' के सेट पर ऐसी किसी परेशानी से दो-चार नहीं होना पड़ा।

एक साथ कई मल्टीपल प्रोजेक्ट्स में काम कर पाना कितना संभव है?

ये मुश्किल होता है। एक फिल्म के लिए ही आपका पूरा समय निकल जाता है। दिन-रात कुछ पता नहीं चलता। फिर अगर आप मल्टीपल प्रोजेक्ट्स में काम करें, तो चीजों को मैनेज करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है।

प्रोडक्शन डिजाइनर के काम को कम आंकते हुए पेमेंट किया जाता है?

यह निर्भर करता है कई बातों पर। किसी सुपरस्टार या स्टार के मुकाबले प्रोडक्शन डिजाइनर के बजट में इश्यू जरूर आता है। यहां बारगेनिंग होती है। हालांकि, पिछले कुछ समय में चीजें बदली हैं। स्क्रीन पर दिखने वाला कलाकार हो या पर्दे के पीछे काम करने वाले लोग, फिल्म से जुड़ा हर व्यक्ति उस मूवी को सफल बनाने के लिए कड़ी मेहनत करता है।

आर्ट डायरेक्टर बनने के लिए किसी कोर्स की जरूरत होती है?

बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स- इंटिरियर या आर्किटेक्चर को तवज्जो दी जाती है। आपका आर्ट बैकग्राउंड है, तो कोई दिक्कत नहीं।

बॉलीवुड आने की चाहत रखने वाली लड़कियों के लिए क्या मेसेज देना चाहती हैं?

सच कहूं तो अगर आपमें जुनून है, तो आप कहीं भी टिक जाओ। मैंने सेट पर छोटे से छोटा काम भी किया है। जब आप आर्टिस्टिक फील्ड में होते हो, तो आप लड़का हो या लड़की यह न सोचकर सिर्फ अपना 100 प्रतिशत दो। मैं हर किसी के लिए यही कहूंगी कि अपने पैशन पर काम करो, क्योंकि इस शहर में ऐसा कुछ है, जिसे आप नहीं पा सकते।

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