देशभक्ति और सामाजिक मुद्दों पर फिल्में क्यों बनाते थे Manoj Kumar? इन मूवीज में दिखाई 'भारत' की झलक
24 जुलाई को हिंदी सिनेमा के भारत कहे जाने वाले अभिनेता मनोज कुमार (Manoj Kumar) का 87वां जन्मदिन मनाया जाएगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उन्हें देश का बेटा क्यों कहा जाता है और क्या वो वजह थी जिसके चलते वह अक्सर देशभक्ति और समाजिक मुद्दों पर आधारित फिल्मों का निर्माण करते थे। आइए इन सब को इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
क्यों देशभक्ति और सामाजिक फिल्में करते थे मनोज कुमार?
ये भी पढ़ें- 'क्रांति' में कैसे हुई थी Dilip Kumar की एंट्री, एक झटके में मनोज कुमार ने ट्रेजेडी किंग को कर लिया था राजीजब आदमी भूखा होता है तो सामने जो पड़ा हो वो खा लेता है। जब उसकी स्थिति पटरी पर आती है तो वो कुछ करने के बारे में सोचता है, इंसान सिर्फ सोचता है और करवाने वाला वो ऊपर वाला होता है। समाज हमें बहुत कुछ देता है और ऐसे में हमारा पूरा फर्ज बनता है कि हम भी उस समाज का हिस्सा होने के नाते, उसे बदले में कुछ अच्छा दें।
यही कारण है जो मेरी फिल्में देशभक्ति, संस्कृति और सामाजिक मुद्दों को दर्शाती हैं। अच्छी बात ये है कि ये फिल्में दर्शकों से सीधे तौर पर जुड़ पाती हैं।
हिंदी सिनेमा के भारत मनोज कुमार
इन फिल्मों में उठाये सामाजिक मुद्दे
साल 1957 में फिल्म फैशन के जरिए मनोज कुमार ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा था। हालांकि, इस मूवी में उनका किरदार काफी छोटा था।इसके बाद 1961 में आई कांच की गुड़िया मूवी से मनोज का बड़ा ब्रेक मिला, लेकिन बतौर लीड एक्टर हरियाली और रास्ता से उनकी किस्मत चमकी। यह मनोज कुमार की पहली बड़ी सफलता थी। इस फिल्म के बाद उन्होंने कई यादगार और हिट फिल्मों में हीरो के किरदार निभाये। उपकार के साथ मनोज की फिल्ममेकिंग का अंदाज बदला और सरोकारी फिल्में उनकी फिल्मोग्राफी में शामिल होने लगीं। इन फिल्मों के जरिए मनोज कुमार ने किसानों से लेकर बेरोजगारी और अपनी संस्कृति को बढ़ावा देने के विषयों को हाइलाइट किया।साल | फिल्म | मुद्दा |
1967 | उपकार | किसान |
1970 | पूरब और पश्चिम | भारतीय संस्कृति |
1974 | रोटी कपड़ा और मकान | बेरोजगारी |
1981 | क्रांति | आजादी |
1987 | कलयुग और रामायण | भारतीय संस्कृति |
1989 | देशवासी | देशभक्ति |