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Interview: 'त्रिवेदी' जिसने निकाला 'ताजमहल का टेंडर', NSD के डायरेक्टर बने चित्तरंजन त्रिपाठी ने बताई इसकी वजह

थिएटर एक्टिंग का पहला और सबसे बेहतरीन मंजर माना जाता है। एक आर्टिस्ट की जिंदगी में रंगमंच की कितनी अहमियत होती है इस बारे में एनएसडी के डायरेक्टर और ग्लैमर जगत के मशहूर एक्टर चित्तरंजन त्रिपाठी ने बताया कि आर्टिस्ट और थिएटर का डायरेक्ट रिश्ता होता है। उन्होंने जागरण डॉट कॉम से विशेष बातचीत में थिएटर और उनके बनाए शो पर खास बातचीत की।

By Karishma Lalwani Edited By: Karishma Lalwani Updated: Sat, 28 Oct 2023 07:11 PM (IST)
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National School of Drama Director Chittranjan Traipathi
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। दुनिया भर में ताजमहल सातवें अजूबे में शामिल है, जिसे ना कोई खरीद सकता है ना कोई बेच सकता है। लेकिन एक ऐसा व्यक्ति है, जिसने पूरी दुनिया में तहलका मचा रखा है। वो शख्स है 'त्रिवेदी।' जी हां, त्रिवेदी एक ऐसे व्यक्ति का नाम है, जिसने इस अजूबे का 'टेंडर' निकाल दिया है। उसी त्रिवेदी ने दैनिक जागरण डॉट कॉम से विशेष बातचीत में कहा कि 'ताजमहल का टेंडर' निकालना तो सिर्फ एक छोटी सी शुरुआत है। अब सबके दिलों पर राज करना मकसद है। एनएसडी के डायरेक्टर और बॉलीवुड के मशहूर एक्टर चितरंजन त्रिपाठी ने करिश्मा लालवानी से बताया उनका इरादा दुनिया भर में बड़ा बदलाव लाने का है।

दुनियाभर में कल्चर और अलग शैली से धूम मचाने वाली फिल्म इंडस्ट्री में चित्तरंजन त्रिपाठी ने कई इंटरेस्टिंग रोल प्ले किए हैं। 'दसवीं' और 'शुभ मंगल सावधान' जैसी फिल्मों में अपनी कलाकारी से लोकप्रियता हासिल करने वाले चित्तरंजन की नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में घरवापसी हुई है। उन्होंने 1996 बैच में एनएसडी से एक्टिंग में डिप्लोमा किया और अब इसी संस्थान की बागडोर संभाल रहे हैं।

आप संगीतकार, एक्टर, निर्देशक हैं। इस माध्यम से जुड़ने का ख्याल कैसे आया?

मेरे पिता फोक आर्टिस्ट थे। ओड़िसा में 'पाला गान' नाम का फोक कल्चर है। इस कला को सीखते हुए मैं बढ़ा हुआ। सबसे पहले अपने पिता से संगीत सीखा। इसके बाद इसी क्षेत्र में आगे बढ़ने का ख्वाब देखा। बहुत अमीर परिवार से न होने के बाद भी मेरे पिता ने मुझे बड़े सपने देखने से कभी रोका नहीं। 

एनएसडी में शुरुआत कैसे हुई?

संगीत से शुरू हुआ सिलसिला एक दिन एनएसडी और फिर बॉलीवुड तक जा पहुंचा। मैंने भास्कर चंद्र दास से संगीत की असल शिक्षा ली। सिर्फ उनसे ही नहीं, बल्कि जो भी गुरु, टीचर्स या दोस्त मिले, सभी लोग ऐसे मिले, जिन्होंने मुझे आगे बढ़ाया और मेरे लिए रास्ते बनते चले गए। ऐसे ही यात्रा चलती रही और फिर शुरू हुआ आर्टिस्ट के तौर पर एनएसडी में सफर। यहां मैंने बहुत सीखा। जो भी टीचर्स, सीनियर्स, दोस्त मिले, सबने कुछ न कुछ सिखाया।

'ताजमहल का टेंडर' की शुरुआत कैसे हुई?

इसके पीछे का किस्सा दिलचस्प है। हमारे प्रोफेसर, रामगोपाल जी ने मुझे 'ताजमहल का टेंडर' करने का मौका दिया। ये शो संयोग से मेरे पास आया क्योंकि जिस वक्त मुझे इसे डायरेक्ट करने का मौका मिला, उस वक्त मैं बाहर एक प्ले डायरेक्ट कर रहा था। जब ये शो उनकी नजरों में आया, तो उन्होंने मुझे प्ले करने का बड़ा मंच दिया। इस तरह 'ताजमहल का टेंडर' की शुरुआत हुई।

1998 में शुरु हुआ ये प्ले आज भी पसंद किया जाता है। यही प्ले लाइफ में टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ, जब थिएटर में मुझे लोकप्रियता मिली। इसके बाद साहित्य कला रेपर्टी और कई ग्रुप्स से बुलावा आया। सिनेमा में जाने से पहले मैंने भरपूर नाटक किया। रंगमंच का ये सफर सिनेमाजगत में खुद को स्थापित करने में मुझे बहुत काम आया।

जब सिनेमा से जुड़ने का ख्याल आया, तो 'धौली एक्सप्रेस' फिल्म बनाई। ये उड़िया भाषा में बनी मूवी है, जिसे बेस्ट फिल्म, बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट प्ले बैक सिंगर समेत कई कैटेगरी में अवॉर्ड मिले। हालांकि, एक्टर बनने का सफर इसके बाद शुरू हुआ।

दिल्ली और देश के बाकी हिस्से में बने एनएसडी में क्या फर्क नजर आता है?

देशभर में अब चार एनएसडी हैं। पहले एक थी। बेंगलुरु, साउथ, वाराणसी हर जगह के रंगमंच की अपनी पहचान है। यहां 25-30 लोगों को चुना जाता है। अलग-अलग राज्य से चुने जाने वाले बच्चे हर जगह से होते हैं। देखा जाए, तो यह एक तरह से देश की संस्कृति के लिए बहुत अच्छा है। यहां बारीकियों को इस तरह सिखाया जाता है कि जो भी स्टूडेंट्स पासआउट हों, वो बहुत टैलेंटेड बनकर निकलते हैं। मेजर डिफ्रेंस कल्चर का ही है।

ओडिया फिल्म इंडस्ट्री और बॉलीवुड में क्या और कितना अंतर है?

ओडिया उड़ीसा तक सीमित है, जबकि बॉलीवुड पूरे देश में फैला है। यहां सबसे बड़ा फर्क पैसे और कमर्शियल एक्सप्लोरेशन का है। बात जब हिंदी भाषा की होती है, तो इंटरनेशनल तक इसका मार्केट बढ़ जाता है, जबकि ओडिया, उडीसा तक सीमित है। हालांकि, वहां भी कई कलाकार हैं, जिनके पास आइडिया अच्छा है। इस इंडस्ट्री को पहले की तुलना में अब थोड़ी ठीकठाक पहचान मिलने लगी है।

एक कलाकार के लिए थिएटर की ट्रेनिंग कितनी जरूरी?

ट्रेनिंग किसी भी एक्टर की लाइफ का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। टैलेंट गिफ्ट जरूर है, लेकिन उसके लिए आपको हल चलाना होता है। कहने का मतलब है कि टैलेंट को बाहर लाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। कोई एक्टिंग के हर एक स्टेप पर चढ़ते हुए विधिवत तरीके से खुद को ट्रेन करता है, कोई जीवन के अपने अनुभव से सीखता है, कोई फिल्मों में काम करते-करते काफी कुछ सीख जाता है। 

एनएसडी में भी जो ट्रेनिंग दी जाती है, वह सिर्फ फिल्मों के लिए नहीं, बल्कि पूरे पैकेज को ध्यान में रखकर दी जाती है। इसका फायदा यह होता है कि ड्रामा आर्टिस्ट को इस क्रिएटिव फील्ड से जुड़ी हर चीज की बारीक नॉलेज हो जाती है।

एक्टर के लिए डिसिप्लिन के अलावा और क्या सबसे जरूरी है?

अगर कॉमर्शियल तरीके से देखा जाए, तो एक्टर का पीआर काफी मजबूत होना चाहिए। इसके अलावा उसकी चालाकी और कैमरे के सामने अच्छा परफॉर्म करना उसके लिए बहुत जरूरी है। अगर डिसिप्लिन के अलावा ये बात किसी एक्टर में नहीं है, तो आगे बढ़ना मुश्किल हो जाता है।

सेक्रेड गेम्स में 'त्रिवेदी' का रोल कैसे मिला?

'दिल्ली 6' में रामलीला अनाउंसर से शुरुआत की। जब सेक्रेड गेम्स के बारे में सुना, तो 'त्रिवेदी' के रोल को करने के लिए मैं काफी एक्साइटेड था। मैंने कई ऑडिशन दिए। संयोग से इस ऑडिशन में मेरा सेलेक्शन हो गया और मुझे विक्रमादित्य मोटवानी के डायरेक्शन में इस सीरीज में काम करने का मौका मिला। सैफ अली खान, नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे वर्ल्ड क्लास एक्टर्स के साथ काम करने का सुनहरा अवसर मुझे मिला।

लड़कियों के लिए एक्टिंग लाइन में करियर कितना स्टेबल?

सिर्फ लड़कियों के लिए ही नहीं बल्कि लड़कों के लिए भी यहां संघर्ष है। यहां कुछ भी प्रेडिक्टेबल और स्टेबल नहीं है। पेरेंट्स का सपोर्ट होना जरूरी है क्योंकि यहां करियर बनाना बड़ा चैलेंज हो सकता है। कई बार ऐसा होता है कि आपको पता ही नहीं कि कल काम मिलेगा या नहीं मिलेगा। काम नहीं मिलता, तो उसकी चिंता से आप परेशान हैं। काम मिल गया, तो भी कुछ कर पाने और खुद को साबित करने की टेंशन घिरी रहती है।

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