Interview: 'त्रिवेदी' जिसने निकाला 'ताजमहल का टेंडर', NSD के डायरेक्टर बने चित्तरंजन त्रिपाठी ने बताई इसकी वजह
थिएटर एक्टिंग का पहला और सबसे बेहतरीन मंजर माना जाता है। एक आर्टिस्ट की जिंदगी में रंगमंच की कितनी अहमियत होती है इस बारे में एनएसडी के डायरेक्टर और ग्लैमर जगत के मशहूर एक्टर चित्तरंजन त्रिपाठी ने बताया कि आर्टिस्ट और थिएटर का डायरेक्ट रिश्ता होता है। उन्होंने जागरण डॉट कॉम से विशेष बातचीत में थिएटर और उनके बनाए शो पर खास बातचीत की।
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। दुनिया भर में ताजमहल सातवें अजूबे में शामिल है, जिसे ना कोई खरीद सकता है ना कोई बेच सकता है। लेकिन एक ऐसा व्यक्ति है, जिसने पूरी दुनिया में तहलका मचा रखा है। वो शख्स है 'त्रिवेदी।' जी हां, त्रिवेदी एक ऐसे व्यक्ति का नाम है, जिसने इस अजूबे का 'टेंडर' निकाल दिया है। उसी त्रिवेदी ने दैनिक जागरण डॉट कॉम से विशेष बातचीत में कहा कि 'ताजमहल का टेंडर' निकालना तो सिर्फ एक छोटी सी शुरुआत है। अब सबके दिलों पर राज करना मकसद है। एनएसडी के डायरेक्टर और बॉलीवुड के मशहूर एक्टर चितरंजन त्रिपाठी ने करिश्मा लालवानी से बताया उनका इरादा दुनिया भर में बड़ा बदलाव लाने का है।
दुनियाभर में कल्चर और अलग शैली से धूम मचाने वाली फिल्म इंडस्ट्री में चित्तरंजन त्रिपाठी ने कई इंटरेस्टिंग रोल प्ले किए हैं। 'दसवीं' और 'शुभ मंगल सावधान' जैसी फिल्मों में अपनी कलाकारी से लोकप्रियता हासिल करने वाले चित्तरंजन की नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में घरवापसी हुई है। उन्होंने 1996 बैच में एनएसडी से एक्टिंग में डिप्लोमा किया और अब इसी संस्थान की बागडोर संभाल रहे हैं।
आप संगीतकार, एक्टर, निर्देशक हैं। इस माध्यम से जुड़ने का ख्याल कैसे आया?
मेरे पिता फोक आर्टिस्ट थे। ओड़िसा में 'पाला गान' नाम का फोक कल्चर है। इस कला को सीखते हुए मैं बढ़ा हुआ। सबसे पहले अपने पिता से संगीत सीखा। इसके बाद इसी क्षेत्र में आगे बढ़ने का ख्वाब देखा। बहुत अमीर परिवार से न होने के बाद भी मेरे पिता ने मुझे बड़े सपने देखने से कभी रोका नहीं।एनएसडी में शुरुआत कैसे हुई?
संगीत से शुरू हुआ सिलसिला एक दिन एनएसडी और फिर बॉलीवुड तक जा पहुंचा। मैंने भास्कर चंद्र दास से संगीत की असल शिक्षा ली। सिर्फ उनसे ही नहीं, बल्कि जो भी गुरु, टीचर्स या दोस्त मिले, सभी लोग ऐसे मिले, जिन्होंने मुझे आगे बढ़ाया और मेरे लिए रास्ते बनते चले गए। ऐसे ही यात्रा चलती रही और फिर शुरू हुआ आर्टिस्ट के तौर पर एनएसडी में सफर। यहां मैंने बहुत सीखा। जो भी टीचर्स, सीनियर्स, दोस्त मिले, सबने कुछ न कुछ सिखाया।
'ताजमहल का टेंडर' की शुरुआत कैसे हुई?
इसके पीछे का किस्सा दिलचस्प है। हमारे प्रोफेसर, रामगोपाल जी ने मुझे 'ताजमहल का टेंडर' करने का मौका दिया। ये शो संयोग से मेरे पास आया क्योंकि जिस वक्त मुझे इसे डायरेक्ट करने का मौका मिला, उस वक्त मैं बाहर एक प्ले डायरेक्ट कर रहा था। जब ये शो उनकी नजरों में आया, तो उन्होंने मुझे प्ले करने का बड़ा मंच दिया। इस तरह 'ताजमहल का टेंडर' की शुरुआत हुई।1998 में शुरु हुआ ये प्ले आज भी पसंद किया जाता है। यही प्ले लाइफ में टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ, जब थिएटर में मुझे लोकप्रियता मिली। इसके बाद साहित्य कला रेपर्टी और कई ग्रुप्स से बुलावा आया। सिनेमा में जाने से पहले मैंने भरपूर नाटक किया। रंगमंच का ये सफर सिनेमाजगत में खुद को स्थापित करने में मुझे बहुत काम आया।जब सिनेमा से जुड़ने का ख्याल आया, तो 'धौली एक्सप्रेस' फिल्म बनाई। ये उड़िया भाषा में बनी मूवी है, जिसे बेस्ट फिल्म, बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट प्ले बैक सिंगर समेत कई कैटेगरी में अवॉर्ड मिले। हालांकि, एक्टर बनने का सफर इसके बाद शुरू हुआ।