Shah Rukh Khan से आमिर खान तक, कोच बन खिलाड़ियों की प्रतिभा को दिए पंख, जज्बे से दिलाई जीत
जब खिलाड़ियों की मेहनत रंग लाती है तो कोच का ही सीना सबसे ज्यादा चौड़ा होता है। खिलाड़ियों का जज्बा दिखाने वाले सिनेमा में उनका कौशल तराशने वाले कोच की दुनिया को भी बारीकी से उकेरा गया है। 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस है । इस खास मौके पर कोच आधारित फिल्मों की पड़ताल करता स्मिता श्रीवास्तव का आलेख...
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। खिलाड़ी को मैदान पर चमकते देखने के पीछे उसकी अपनी कड़ी मेहनत के साथ जुड़ा होता है कोच का मार्गदर्शन। कोच ही खिलाड़ियों को उनकी सीमा से आगे जाकर बेहतर करने के लिए प्रेरित करते हैं। कोच के समर्पण, मेहनत और लगन पर हिंदी सिनेमा भी फिल्में बनाता आया है। इनमें कोच या मैनेजर की भूमिका बड़े सितारों ने निभाई है जबकि खिलाड़ी की भूमिका में ज्यादातर अपरिचित या कम लोकप्रिय चेहरे भी लिए गए हैं।
स्पोर्ट्स पर बनी है ये फिल्में
इसमें सबसे पहला नाम आता है फिल्म ‘चक दे! इंडिया’ का। करीब 17 साल पहले आई इस फिल्म में कमजोर, बिखरी और हतोत्साहित भारतीय महिला हॉकी टीम आखिरकार विश्व कप विजेता बनती है। टीम को यह जीत कोच कबीर खान (वास्तविक जीवन में हॉकी गोलकीपर और 1998 के एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम के कोच मीर रंजन नेगी) की मेहनत से मिलती है।
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कबीर खान की भूमिका में नजर आए शाह रुख खान का फिल्म में संवाद है कि ‘मैं इंडियन नेशनल वुमन टीम का कोच हूं। मुझे न तो स्टेट के नाम सुनाई देते हैं और न दिखाई देते हैं। सिर्फ एक मुल्क का नाम सुनाई देता है इंडिया!’
'दंगल' भी है उदाहरण
महिला खिलाड़ी की प्रतिभा को कोच द्वारा पहचानने का दूसरा उदाहरण फिल्म ‘दंगल’ में देखने को मिलता है। यह फिल्म राष्ट्रीय स्तर के पहलवान महावीर सिंह फोगाट और उनकी बेटियों गीता-बबीता के जीवन की घटनाओं से प्रेरित है। हरियाणा के भूतपूर्व नेशनल रेसलिंग चैंपियन महावीर सिंह फोगाट (फिल्म में अभिनेता आमिर खान) घर की कमजोर आर्थिक स्थिति की वजह से अपने रेसलिंग करियर पर विराम लगाकर नौकरी चुनते हैं। तब देश के लिए स्वर्ण पदक जीतने का स्वप्न वह अपनी बेटियों के जरिए पूरा करते हैं।
यह फिल्म गीता और बबीता के चैंपियन बनने के सफर के साथ बेटियों को लेकर रूढ़िवादी सोच, खेल की अहमियत, अनुशासन के साथ देशप्रेम के जज्बे को बारीकी से खंगालती है। यह दर्शाती है बेटियों को आगे बढ़ाने में कोच की प्रगतिशील सोच और दूरदृष्टि कितनी अहम होती है। खिलाड़ी की तरह कोच भी तपस्या करता है। ‘दंगल’ की सफलता ने कई लोगों को अपनी बेटियों को खेल में आगे बढ़ाने को प्रोत्साहित किया।