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Nawazuddin Siddiqui ने बताया संघर्ष के दिनों का झकझोर देने वाला अनुभव, कहा- 'वो मेरे मुंह पर पाउडर फेंकता था'

Nawazuddin Siddiqui On Struggling Days नवाजुद्दीन सिद्दीकी इन दिनों अपनी अपकमिंग फिल्म टीकू वेड्स शेरू का प्रमोशन कर रहे हैं। हाल ही में फिल्म का ट्रेलर रिलीज किया गया है। इस बीच उन्होंने अपना एक झकझोर देने वाला अनुभव शेयर किया।

By Vaishali ChandraEdited By: Vaishali ChandraUpdated: Thu, 15 Jun 2023 03:25 PM (IST)
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Nawazuddin Siddiqui On Struggling Days, Twitter Images
नई दिल्ली, जेएनएन। Nawazuddin Siddiqui On Struggling Days: नवाजुद्दीन सिद्दीकी की फिल्म टीकू वेड्स शेरू कुछ दिनों में रिलीज होने वाली है। बीते दिन मुंबई में फिल्म का ट्रेलर रिलीज किया गया। जहां, नवाज के साथ फिल्म की हीरोइन अवनीत कौर और प्रोड्यूसर कंगना रनोट भी पहुंची।

टीकू वेड्स शेरू के ट्रेलर लॉन्च में पर नवाजुद्दीन सिद्दीकी और कंगना रनोट ने फिल्म के बारे में बात करते हुए अपने संघर्ष के दिनों को भी याद किया। जहां, कंगना ने मुंबई और बॉलीवुड के कड़वे सच को लेकर बात की। वहीं, नवाज ने स्ट्रगल के दिनों का झकझोर देने वाला किस्सा सुनाया।

जूनियर आर्टिस्ट होने का शेयर किया अनुभव

नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने मेकअप आर्टिस्ट द्वारा मुंह पर पाउडर फेंकने का किस्सा शेयर किया जब वो जूनियर आर्टिस्ट थे। इंडियन एक्सप्रेस डॉट कॉम की खबर के अनुसार, एक्टर ने कहा, "मुझे याद है एक फिल्म में मैं जूनियर आर्टिस्ट था और मेरी तरह कुछ और जूनियर आर्टिस्ट्स भी थे।"

वो मुंह पर पाउडर फेंकता था

एक्टर ने आगे कहा, "हमारा मेकअप आर्टिस्ट हम सभी को एक लाइन में खड़ा करता था और अपने साथ पाउडर लेकर आता था। वो एक के बाद एक हमारे पास आता और मुंह पर पाउडर फेक कर कहता- मेकअप हो गया।"

कंगना को भी याद आया संघर्ष

वहीं, कंगना रनोट ने ट्रेलर लॉन्च पर अपना अनुभव शेयर करते हुए कहा, "नवाज सर सहित हम सभी उन संघर्षपूर्ण दिनों से गुजरे हैं। आज हमारे पास सब कुछ है, स्टारडम है और फैंस हैं, और दुनिया हम पर बहुत मेहरबान है, लेकिन हमने मुंबई का दूसरा पक्ष भी देखा है और बॉलीवुड के कड़वे सच से रूबरू हुए हैं, जिसे हम शैडी ऑडिशन ऑफिस और ऑफर की तरह जानते हैं।"

आउटसाइडर्स को लेकर कही ये बात

टीकू वड्स शेरू की बात करते हुए कंगना ने आगे कहा, "ये फिल्म उन लोगों के लिए प्यार और लव लेटर है, जो जो शहर में आते हैं और कहीं अपने सपने खो देते हैं, लेकिन अंत में कुछ अधिक सार्थक पाते हैं।  हम बाहर से आए हैं, और हमने इस तरह के संघर्ष देखे हैं, लेकिन किसी तरह केवल एक अचीवर की फिल्म ही सेल्युलाइड तक पहुंचती है...पर यहां लाखों लोग हैं, जो रोज मुंबई आते हैं। ये लोग कहां जाते हैं ? उनके साथ क्या होता है ?"