Code Name-Tiranga Review: कहानी का असली कोड ढूंढते रह जाएंगे, पढें परिणीति चोपड़ा की फिल्म को मिले कितने स्टार
Code Name Tiranga परिणीति चोपड़ा और हार्डी संधु की मच अवेटेड फिल्म कोड नेम तिरंगा आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई। फिल्म दर्शकों को कैसी लगी और रिव्यू के अनुसार पहले दिन कितना कलेक्शन कर सकती है आइये जानते हैं।
नई दिल्ली, जेएनएन। Code Name: Tiranga Film Review: 'द गर्ल ऑन ट्रेन' जैसी क्लासिक फिल्म बना चुके रिभू दासगुप्ता इस बार 'कोड नेम: तिरंगा' के जरिये दर्शकों के सामने नई कहानी लेकर आए हैं। कोड नेम तिरंगा एक ऐसे अंडरकवर एजेंट पर आधारित कहानी है, जिसका हीरो फिल्म की हीरोइन ही है यानी कि परिणीति चोपड़ा। इस फिल्म में परिणीति चोपड़ा ने एक्शन सीन में दो-दो हाथ किए हैं। मूवी में उनके कमाल के एक्शन सीन हैं। मगर फिल्म देखकर लगता है कि जितनी मेहनत ऐक्शन सीन पर की गई है, उतनी मजबूत कहानी गढ़ने में नहीं।
रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी रा के एजेंट्स का दूसरे देश में जाकर खुफिया मिशन को अंजाम देने की कहानी कई फिल्मों में दिखाई जा चुकी है। कोड नेम तिरंगा भी उन्हीं फिल्मों की सूची को आगे बढ़ाती है।
(Photo Credit: Parineeti Chopra Instagram)
कोड नेम तिरंगा की कहानी
कहानी शुरू होती है अफगानिस्तान के काबुल शहर से जहां इस्मत उर्फ अंडरकवर रॉ एजेंट दुर्गा सिंह (परिणीति चोपड़ा) की सच्चाई से अनजान डॉक्टर मिर्जा अली (हार्डी संधू) को उससे प्यार हो जाता है। दुर्गा साल 2001 में दिल्ली में संसद पर हुए आतंकी हमले के लिए जिम्मेदार आतंकी ओमार खालिद (शरद केलकर) की तलाश में अफगानिस्तान आई है। वह उसी शादी में आने वाला है, जहां मिर्जा को जाने का भी न्योता है। वह मिशन फेल हो जाता है। फिर कहानी पहुंचती है तुर्किए, जहां दुर्गा को एक और मिशन दिया जाता है कि उसे रॉ एजेंट अजय बक्शी (दिब्येंदु भट्टाचार्य) को मारना है, जो रॉ के एक सीनियर के मुताबिक गद्दार है। क्या वाकई अजय बक्शी गद्दार है? क्या दुर्गा अजय को मार पाएगी या ओमर को पकड़ पाएगी? कहानी इसी पर आगे बढ़ती है।
फिल्म का नाम कोड नेम तिरंगा क्यों है, यह सवाल आप अंत तक खुद से पूछते रह जाएंगे। जिस मिशन का नाम तिरंगा रखा गया है, उस मिशन की गंभीरता तो दिखती ही नहीं है। फिल्म के सभी चरित्र जैसे हैं, वैसे क्यों हैं उसकी वजहें स्पष्ट नहीं हैं। जैसे आतंकी ओमर कहता है कि मेरे वालिद कहा करते थे कि जब एक कमजोर इंसान आवाज उठाता है, तो पूरी दुनिया लानत करती है, लेकिन जब वही कमजोर इंसान बंदूक उठाता है तो उसे दहशरतगर्दी कहते हैं...।
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कन्फ्यूज करते हैं ये सीन
फिल्म के अंत में ओमार के घर में दुर्गा का अकेले घुसकर उसके लोगों को मारने वाले दृश्य में वंदे मातरम... गाने को बैकग्राउंड में रखने के पीछे निर्देशक रिभु दासगुप्ता का उद्देश्य समझ नहीं आता है। सिर्फ एक गाना इसे देशभक्ति वाली फिल्म नहीं बना सकता है। इस क्लाइमेक्स सीन को एक वीडियो गेम की तरह शूट किया गया है, जिसमें परिणीति के सिर्फ हाथ दिखते हैं और बंदूकें बदलती रहती हैं, जो दिलचस्प नहीं लगता है।
(Photo Credit: Parineeti Chopra Instagram)
पसंद की जा रही हार्डी संधु की भूमिका
शरद केलकर की भारीभरकम आवाज उन्हें आतंकी दिखाने के लिए काफी नहीं लगती। हार्डी संधू मिर्जा की भूमिका में अच्छे लगे हैं। इस फिल्म में कुछ देखने लायक है, तो वह है मध्यपूर्व देश की लोकेशन, जिसे सिनेमेटोग्राफर त्रिभुवन बाबू सदिनेनी ने अपने कैमरे में कैद किया है। कहानी में एक-दो मोड़ आते हैं, लेकिन वहां भी खोदा पहाड़ निकली चूहिया वाला हाल हो जाता है। फिल्म में क्या कोई गीत भी था, यह याद करना भी मुश्किल है।
फिल्म – कोड नेम तिरंगा
मुख्य कलाकार – परिणीति चोपड़ा, हार्डी संधू, रजित कपूर, शरद केलकर, शिशिर शर्मा, दिब्येंदु भट्टाचार्य
निर्देशक – रिभु दासगुप्ता
अवधि – 137 मिनट
रेटिंग – डेढ़
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