50 Years Of Phagun: 50 साल पहले, इस फिल्म में धर्मेंद्र की बेटी के किरदार में नजर आईं थीं जया बच्चन
Jaya Bachchan Played Dharmendras Daughter आज से ठीक 50 साल पहले एक फिल्म रिलीज हुई थी जिसमें जया बच्चन ने धर्मेंद्र की बेटी का किरदार निभाया था। फागुन में धर्मेंद्र की हिरोइन थीं वहीदा रहमान जिनकी अदाकारी ने फिल्म को यादगार बना दिया था।
By Ruchi VajpayeeEdited By: Ruchi VajpayeeUpdated: Thu, 08 Jun 2023 03:54 PM (IST)
नई दिल्ली, जेएनएन। जया बच्चन और धर्मेंद्र ने अब तक साथ पांच फिल्में की गुड्डी, चुपके चुपके, शोले, फागुन और समाधि। इनमें से किसी भी फिल्म वो उनकी हिरोइन नहीं रही। गुड्डी में ग्रीक गॉड कहे जाने वाले एक्टक की फैन बनीं तो वहीं चुपके-चुपके में वो प्रोफेसर बने धर्मेंद्र के नॉलेज की दीवानी थीं। इन सबके बीच एक ऐसी फिल्म भी थी जिसमें जया बच्चन ने धर्मेंद्र की बेटी का किरदार निभाया था।
जया-धर्मेंद्र ने अब की है पांच फिल्में
अगर आप अपने जेहन पर जोर डालकर फिल्म का नाम याद करने की कोशिश कर रहे हैं तो हम बता दें कि वो भी थी 'फागुन'। इस फिल्म में धर्मेंद्र की हिरोइन बनीं थी वहीदा रहमान और बेटी के किरदार में थीं जया बच्चन। फिल्म को रिलीज हुए 20 साल हो चुके हैं और इस साल फिर से आपको धर्मेंद्र और जया बच्चन, करण जौहर की फिल्म रॉकी और रानी की प्रेम कहानी में नजर आने वाले हैं।
वहीदा रहमान ने निभाया था पत्नी का किरदार
साल 1973 और फिल्म का नाम फागुन, होली का दिन और ‘फागुन आयो रे…’ गा रही नायिका (वहीदा रहमान)। उनके पति (घर दामाद, धर्मेंद्र) इस गाने पर काफी रोमांचित हो रहे हैं। होली के इसी उत्साह में वो अपनी पत्नी के कीमती साड़ी पर रंग डाल देते हैं। अमीरी की ठसक में डूबी नायिका को ये कतई पसंद नहीं आता। वो फटकार देती है और नायक आत्म सम्मान पर लगी इस चोट को सह नहीं पाता, घर छोड़कर चला जाता है।जया बच्चन बनी थीं धर्मेंद्र की बेटी
वहीदा रहमान हमेशा ही पति की जुदाई की आग में जलती रहती हैं और बेटी जया बच्चन को अकेले ही पाल पोसकर बड़ा करती हैं। पर उनके जेहन से होली की कड़वीं यादें मिटाए नहीं मिटती। बेटी बड़ी होती है उसे प्यार हो जाता है। मां शादी तो करवा देती है पर बेटी के बिना रह नहीं पाती। मां के बढ़ते दखल से बेटी जया बच्चन परेशान हो जाती है और उसकी जिंदगी में जहर घुल जाता है।साल 1973 में रिलीज हुई थी फागुन
ये वो दौर था जब ज्यादातर फिल्में बनाने का मकसद समाज को संदेश देना हुआ करता था। तो फागुन ने भी इस परंपरा का पालन किया। इस फिल्म के जरिए भी यह बताने की कोशिश की गई कि जो लोग उल्लास से भरे त्योहारों की उपेक्षा करते हैं उनके जीवन से ही उल्लास खत्म हो जाता है, साथ ही ये भी कि पैसा और कीमती चीजों से सारे सुख खरीदे नहीं जा सकते हैं।