पिता की बात मान लेता तो Villain की जगह IAS या डॉक्टर होता ये बॉलीवुड अभिनेता, लोकल ट्रेन में मिली थी पहली फिल्म
हिंदी सिनेमा में कई कलाकार हीरो बनने के लिए आए लेकिन किस्मत ने उन्हें खलनायक बना दिया। बड़े पर्दे पर खलनायिकी में कई अभिनेताओं ने नाम कमाया। इनमें से एक अभिनेता ऐसे हैं जिन्होंने परिवार के खिलाफ जाकर अभिनय चुना और रोजी रोटी के लिए अखबार में काम किया। पिता उन्हें डॉक्टर या आईएएस बनाना चाहते थे। जानिए उनके बारे में।
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। 'कर भला तो हो भला' या 'बात जब अपनी मौत पर आती है ना, तो सारी खिड़कियां खुल जाती हैं'... ये फेमल डायलॉग्स हैं हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता प्रेम चोपड़ा (Prem Chopra) के। हीरो बनने बॉलीवुड में आए प्रेम चोपड़ा ने खलनायक बनकर पहचान हासिल की। मगर शायद ही आपको पता हो कि उनके पिता नहीं चाहते थे कि वह अभिनय की दुनिया में आए।
23 सितंबर 1935 को लाहौर (पाकिस्तान में स्थित) में जन्मे प्रेम चोपड़ा भारत-पाक विभाजन के बाद परिवार के साथ शिमला में शिफ्ट हो गए थे। वहीं से उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और कॉलेज के दिनों में उन्हें अभिनय का चस्का लग गया। कॉलेज में ड्रामे वगैरह किया करते थे, देखते ही देखते उन्होंने खुद को फिल्मों में देखने का सपना बुनने लगे। मगर परिवार को जरा भी मंजूर नहीं था।
पिता बनाना चाहते थे IAS या डॉक्टर
प्रेम चोपड़ा के पिता चाहते थे कि उनका बेटा आईएएस ऑफिसर या फिर डॉक्टर बने, लेकिन मन ही मन उन्होंने अपने लिए कुछ और ही सोच रखा था। टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में अभिनेता ने इस बारे में कहा था-
मैं शिमला के बी.एम. कॉलेज में पढ़ रहा था। मेरे पिता चाहते थे कि मैं आईएएस अधिकारी या डॉक्टर बनूं लेकिन वहां मेरा रुझान अभिनय की ओर बढ़ा और मैंने ड्रामों में भाग लेना शुरू कर दिया। मैं 1960 के दशक की शुरुआत में मुंबई आ गया। शुरुआत में मैंने कुछ छोटे-मोटे काम किए और फिर टाइम्स ऑफ इंडिया के सर्कुलेशन विभाग में नौकरी कर ली। मैंने वहां करीब तीन से चार साल तक काम किया। मुझे टाइम्स ऑफ इंडिया में अच्छा वेतन मिल रहा था।
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लोकल ट्रेन में मिली थी पहली फिल्म
मुंबई आने के बाद प्रेम चोपड़ा कई फिल्म स्टूडियोज गए और अपना बायोडाटा दिखाया लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा। वह नौकरी भी कर रहे थे, ताकि रोजी-रोटी चलती रहे। वह 20 दिन तो काम के चलते ट्रेवलिंग में ही गुजार दिया करते थे। फिर उन्होंने अपना दिमाग लगाया और उन्होंने रेलवे स्टेशन में ही अखबार का सर्कुलेशन करना शुरू किया, ताकि उनका समय बच जाए और वह अपने फिल्मी करियर पर ध्यान दे सकें।
पहली फिल्म ने जीता था नेशनल अवॉर्ड
एक बार सफर के दौरान ही प्रेम चोपड़ा की किस्मत ने यू टर्न लिया। IMDb के मुताबिक, 'बॉबी' अभिनेता को लोकल ट्रेन में पहली फिल्म का ऑफर मिला था। दरअसल, वह एक लोकल ट्रेन में सफर कर रहे थे, तभी एक अजनबी ने उन्हें फिल्मों में काम करने के लिए पूछा। यह सुनकर प्रेम चोपड़ा ने तुरंत हामी भर दी और वह अजनबी उन्हें रंजीत स्टूडियो ले आया। पंजाबी निर्माता जगजीत सेठी ने उन्हें पंजाबी फिल्म चौधरी करनैल सिंह में जाबीन का किरदार निभाने का मौका दिया। इस फिल्म ने नेशनल अवॉर्ड जीता था।
प्रेम चोपड़ा के फेमस डायलॉग्स
मैं वो बला हूं, जो शीशे से पत्थर को तोड़ता हूं
फिल्म- सौतन (1983)
प्रेम नाम है मेरा... प्रेम चोपड़ा
फिल्म- बॉबी (1973)
नंगा नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या
फिल्म- दुल्हे राजा (1998)
जिनके घर शीशे के होते हैं, वो बत्ती बुझाकर कपड़े बदलते हैं
फिल्म- सौतन (1983)
लोग तो आस्तीन में सांप पालते हैं, लेकिन तुम तो आस्तीन के बिच्छू निकले
फिल्म- दुल्हे राजा (1998)
बात जब अपनी मौत पर आती है ना, तो सारी खिड़कियां खुल जाती हैं
फिल्म- दूध का कर्ज (1990)
प्रेम चोपड़ा की बेस्ट फिल्में
कटी पतंग
बॉबी
दो अनजाने
राजा बाबू
अजनबी
कोई मिल गया
फूल और अंगार
शहंशाह
तहलका
आखिरी बार प्रेम चोपड़ा को संदीप रेड्डी वांगा की सुपरहिट फिल्म एनिमल (Animal) में रणबीर कपूर के दादा के किरदार में देखा गया था।
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