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Prithviraj Kapoor's 50th Death Anniversary: मुगल-ए-आजम फिल्म की ली 1 रुपये फीस, पूरी जमा पूंजी लगाकर बनाया था पृथ्वी थिएटर

Prithviraj Kapoors 50th Death Anniversaryपृथ्वीराज कपूर ने 1944 में भारत को पहला व्यावसायिक स्टूडियो पृथ्वी थिएटर दिया था। पृथ्वीराज अकेले ही पेशावर से बॉम्‍बे पहुंच गए और इम्पीरियल फिल्म कंपनी में शामिल हो गए। प्रोडक्शन में बन रही कुछ फिल्मों में कंपनी ने उन्हें छोटे रोल देना शुरू किया।

By Babita KashyapEdited By: Updated: Sun, 29 May 2022 02:17 PM (IST)
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भारतीय सिनेमा की शुरुआत में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले पृथ्वीराज कपूर की आज 50वीं पुण्यतिथि

नई दिल्‍ली, जेएनएन। भारतीय सिनेमा की शुरुआत में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले पृथ्वीराज कपूर की आज 50वीं पुण्यतिथि है। यह वही पृथ्वीराज हैं जिन्होंने 1944 भारतीय सिनेमा की शुरुआत में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले पृथ्वीराज कपूर की आज 50वीं पुण्यतिथि में भारत को पहला व्यावसायिक स्टूडियो पृथ्वी थिएटर दिया था। पृथ्वीराज ने ही कपूर परिवार को फिल्‍म उद्योग में जगह दी। मात्र आठ साल की छोटी से उम्र से अभिनय की शुरुआत करने वाले पृथ्वीराज ने मूक फिल्मों में अभिनय किया। जब पहली बोलती फिल्म आलम आरा बनी तो वह बोलती फिल्मों के पहले खलनायक बने। 47 साल के फिल्मी करियर में पृथ्वीराज ने कई कल्ट क्लासिक फिल्में दीं, जिसके लिए उन्हें दादा साहब फाल्के और पद्म भूषण से भी नवाजा गया। पृथ्वीराज को आज भले ही भारतीय सिनेमा का अहम हिस्सा रहे हों, लेकिन शुरुआत में उन्हें इस इंडस्ट्री में जगह बनाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा।

आइये आपको बताते हैं कि थोड़े पैसों में पेशावर से बॉम्बे तक का पृथ्वीराज का खूबसूरत सफर कैसा -

पृथ्वीराज कपूर का जन्म 3 नवंबर 1906 को समुंद्री में एक पंजाबी परिवार में हुआ था, ये इलाका अब विभाजन के बाद अब पाकिस्तान का हिस्सा है। पृथ्वीराज के पिता बशेश्वरनाथ कपूर था जो पेशे से एक पुलिस अधिकारी थे जबकि उनके दादा केशवमल कपूर समुंद्री के तहसीलदार थे। जब उनके पिता का तबादला पेशावर हुआ तो उनका पूरा परिवार एक साथ वहां आकर रहने लगा।

पृथ्वीराज कपूर ने अपनी पढ़ाई लायलपुर के खालसा कॉलेज और पेशावर के एडवर्ड्स कॉलेज से पूरी की। अपने कॉलेज के दिनों में, वह प्रोफेसर जय दलाल से मिले जिन्होंने उनका परिचय थिएटर के रंगमंच से करवाया। कुछ महीनों तक पेशावर में कुछ नाटकों का हिस्सा रहने के बाद, पृथ्वीराज ने अभिनेता बनने का मन बना लिया था।

17 साल की उम्र में किया विवाह

पृथ्वीराज कपूर ने महज 17 साल की उम्र में 3 साल छोटी रामसरानी मेहरा से शादी की थी। उनके तीन बच्चे राज कपूर, शशि कपूर और शम्‍मी कपूर थे। इनके अलावा उनके दो और बच्चे हुए, लेकिन शम्मी कपूर के जन्म से पहले उनके दो बच्चों की मौत हो गई। इसके बाद उनकी एक बेटी हुई, उर्मिला सियाल। पृथ्वीराज कपूर के बताए रास्ते पर चलकर बेटे राज कपूर, शम्मी कपूर और शशि ने भी इंडस्ट्री में काफी ऊंचाईयां हासिल कीं।

रिश्तेदार से लिए पैसे उधार

पृथ्वीराज कपूर ने 1928 में बॉम्बे जाने का मन बनाया लेकिन उनके पास इसके लिए पैसे नहीं थे। जब उन्‍होंने अपनी आंटी को ये सारी कहानी सुनाई, तो वह कुछ रुपये उधार देने के लिए तैयार हो गई। पृथ्वीराज अकेले ही पेशावर से बॉम्‍बे पहुंच गए और इम्पीरियल फिल्म कंपनी में शामिल हो गए। प्रोडक्शन में बन रही कुछ फिल्मों में कंपनी ने उन्हें छोटे रोल देना शुरू किया। यह मूक फिल्मों का दौर था जिसमें किसी ने एक्स्ट्रा पर ध्यान तक नहीं दिया।

पहली बार स्क्रीन पर आए तो नहीं ली फीस

वर्ष 1928 में, पृथ्वीराज कपूर को मूक फिल्म बे धारी तलवार में पहली बार एक अतिरिक्त के रूप में काम करने का मौका मिला। पृथ्वी इस काम से इतने खुश हुए कि उन्होंने मेकर्स से कोई फीस नहीं ली। पहली ही फिल्म से उन्होंने अभिनय की इतनी गहरी छाप छोड़ी कि हर कोई उन्हें फिल्में ऑफर करने लगा। दूसरी फिल्म सिनेमा गर्ल के लिए उन्हें पूरे 70 रुपये मिले, जो उस समय के लिए बहुत बड़ी रकम थी।

पहली बोलती फिल्म में विलेन बने पृथ्वीराज

जब 1931 में पहली बोलती फिल्म आलम आरा बनी तो निर्देशक अर्देशिर ईरानी ने पृथ्वीराज को फिल्म में खलनायक का रोल दिया। इसके बाद उन्होंने विद्यापति (1937) और सिकंदर (1941) में अपने अभिनय से इंडस्ट्री में अपने अभिनय का लोहा मनवाया। फिल्मों में काम करने के साथ-साथ पृथ्वीराज थिएटर ग्रुप का भी हिस्सा बने रहे। उन्होंने एक साल तक विदेशी थिएटर कंपनी एंड्रेसन में भी काम किया। 1940 तक, पृथ्वीराज फिल्‍म उद्योग के सबसे कुशल और लोकप्रिय कलाकार बन गए थे।

कब हुई पृथ्वी थिएटर की शुरुआत

पृथ्वीराज कपूर ने 1944 में पहला कमर्शियल थिएटर पृथ्वी शुरू किया था। उन्होंने अपनी पूरी जमा पूंजी पृथ्वी थिएटर में लगा दी। थिएटर में शो दिखाने के बाद पृथ्वी खुद बैग लेकर दरवाजे पर खड़ा हो जाते थे। थिएटर से बाहर निकलते समय जो कुछ रुपये लोग उनके बैग में डालते थे, उस जमा पैसे का इस्तेमाल उन्होंने श्रमिकों के फंड बनाने के लिए किया। इस फंड से वह थिएटर में काम करने वाले लोगों की मदद करते थे। यह पहला इंडस्ट्री वर्कर फंड था।

पैसों के अभाव में बंद हुआ पृथ्वी थिएटर

पृथ्वीराज कपूर का थिएटर करीब 16 साल तक चला जिसमें 2,662 परफॉर्मेंस हुईं। इस थिएटर के एक नाटक पठान का बाम्‍बे में लगभग 600 बार प्रदर्शन किया गया। ये समूह पूरे देश में यात्रा करते थे और लगभग सभी लोगों के प्ले करते थे, लेकिन सिर्फ टिकट के पैसे से खर्चों को पूरा करना मुश्किल था। 1950 तक, थिएटर की आर्थिक समस्याओं और फिल्मों के बढ़ते चलन के कारण पृथ्वी थिएटर को बंद कर दिया गया था।

जब थिएटर बंद होने की कगार पर आया तो फिल्म निर्माताओं ने इसे फिल्में रिलीज करने का ऑफर देना शुरू कर दिया। पृथ्वीराज के बेटे शशि कपूर और उनकी पत्नी जेनिफर केंडल ने इसे पुनर्जीवित करने में मदद की। जेनिफर ने इसकी मरम्मत कराई और इसमें फिल्में रिलीज होने लगीं। पृथ्वी थिएटर का जेनिफर के पिता के थिएटर ग्रुप शेक्सपियर में विलय हो गया। इसका उद्घाटन 5 नवंबर 1978 को हुआ था।

मुगल-ए-आजम फिल्म के लिए पृथ्वीराज ने ली 1 रुपये की फीस

1960 के मुगल-ए-आजम में पृथ्वीराज कपूर ने मुगल शासक अकबर की भूमिका निभाई थी। आसिफ इस फिल्म में पृथ्वीराज कपूर को किसी भी कीमत पर कास्ट करना चाहते थे। उन्होंने बैठक के दौरान पृथ्वीराज को ब्लैंक चेक दिया। उन्होंने कहा कि पृथ्वीराज जितनी चाहे फीस ले सकते हैं। पृथ्वीराज मान गए और इस फिल्म के लिए पूरे 1 रुपये लिए और कहा, मैं पुरुषों के साथ काम करता हूं, व्यापारियों के साथ नहीं।

मुगल-ए-आजम फिल्म के लिए पृथ्वीराज ने ली 1 रुपए फीस

1960 में आई मुगल-ए-आजम में पृथ्वीराज कपूर ने मुगल शासक अकबर का रोल निभाया। के. आसिफ इस फिल्म में किसी भी कीमत पर पृथ्वीराज कपूर को कास्ट करना चाहते थे। उन्होंने मीटिंग के दौरान पृथ्वीराज को एक ब्लैंक चेक दिया था। उन्होंने कहा कि पृथ्वीराज जितनी चाहे उतनी फीस ले सकते हैं। पृथ्वीराज मान गए और उन्होंने इस फिल्म के लिए पूरे 1 रुपए लिए और कहा, मैं आदमियों के साथ काम करता हूं, व्यापारियों के साथ नहीं।

सालों तक हिंदी सिनेमा में योगदान देने के बाद साल 1968 में पृथ्वीराज कपूर को भारत सरकार की ओर से पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। साल 1971 में इन्हें दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड मिला।

फिल्मों से रिटायरमेंट लेकर कॉटेज में गुजारी जिंदगी

उम्र के साथ पृथ्वीराज फिल्मों से दूरी बनाने लगे। ये जुहू बीच के पास बसे पृथ्वी झोपड़ें में पत्नी के साथ रहने लगे। ये प्रॉपर्टी पृथ्वी ने लीज पर ली थी लेकिन बाद में उनके बेटे शशि कपूर ने इसे माता-पिता के लिए खरीद लिया। पृथ्वीराज कपूर और उनकी पत्नी को एक साथ कैंसर हो गया। लंबी समय तक बीमारी से लड़ने के बाद पृथ्वीराज कपूर का 29 मई 1972 में निधन हो गया। इनकी मौत के ठीक दो हफ्ते बाद पत्नी रामसरणी मेहरा भी 14 जून को दुनिया छोड़ गईं।