Rahul Bose ने अपने फिल्मी करियर को बताया शानदार, बोले- मुझे कभी किसी ने मदद के लिए मना नहीं किया
हिंदी सिनेमा के उम्दा अभिनेताओं में शुमार राहुल बोस (Rahul Bose) इन दिनों अपनी लेटेस्ट फिल्म बर्लिन (Berlin) को लेकर चर्चा में हैं। एक्टर चमेली प्यार के साइड इफेक्ट जैसी बेहतरीन फिल्मों में काम कर चुके हैं। इसके अलावा वो बुलबुल में तृप्ति डिमरी के साथ नजर आए थे। हाल ही में एक इंटरव्यू में एक्टर ने इंटरनेट मीडिया को लेकर कई सवाल उठाए।
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। भले ही तीन दशक लंबे अभिनय करियर में अभिनेता राहुल बोस की कम बजट की फिल्में आई हों, मगर अपने काम से उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में दोस्त और सकारात्मकता कमाई है। बीते दिनों थ्रिलर फिल्म ‘बर्लिन’ में नजर आए राहुल बोस मानते हैं इंटरनेट मीडिया का सबसे बड़ा दुश्मन है।
मैंने अपने बारे में कोई गासिप नहीं सुनी - राहुल बोस
अपने तीन दशक के फिल्मी करियर में 52 फिल्में कर चुके राहुल अपने सफर को लेकर कहते हैं,‘छह बरस की उम्र में जब पहली बार स्टेज पर कदम रखा तो लगा कि यह मेरे लिए ही है। अभी भी वही सकारात्मकता, वहीं आदर्शवाद, वहीं मेहनत और उत्सुकता बरकरार है। वही इनोसेंस भी है, लेकिन 30 साल बाद मैं कह सकता हूं कि मेरे कुछ बहुत करीबी दोस्त इस इंडस्ट्री में बने हैं और इतने सालों में मैंने कभी अपने लिए किसी प्रकार की नकारात्मकता या गासिप नहीं सुनी। जब भी मैंने अपने एनजीओ के लिए मदद मांगी, चाहे विद्या बालन हों, फरहान अख्तर हों, प्रियंका चोपड़ा हों या मनोज बाजपेयी, किसी ने कभी मना नहीं किया। यह बहुत ही शानदार और दिलचस्प सफर रहा है।’
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उन्होंने आगे कहा कि मुझे फर्क नहीं पड़ता अब कई कलाकार इंटरनेट मीडिया फालोवर्स को देखते हुए काम मिलने की बात करते हैं।
इंटरनेट मीडिया ने बच्चों को खराब कर दिया है
वहीं जब उनसे सवाल किया गया कि आप इस चलन को कैसे देखते हैं? इस पर राहुल ने कहा,‘यह बात काफी हद तक असत्य है। कोई किसी को उनके फालोवर्स देखकर कास्ट नहीं करता है। फिल्म बनाने में बहुत पैसा लगता है। मैं बहुत खुश हो जाऊंगा अगर कल को इंटरनेट मीडिया हमारी जिंदगी से निकल जाए। इसके सकारात्मक पहलू बहुत कम हैं, जबकि नकारात्मक बहुत ज्यादा हैं। इस देश में कितने सारे लोग हैं जिन्हें एंग्जाइटी के लिए काउंसलिंग दी जाती है, क्योंकि इंटरनेट मीडिया पर उनके साथ फलां-फलां व्यवहार किया जाता है। कितने बच्चे हैं जिन्हें डिजिटली यौन पीड़ित किया जाता है। यह इंटरनेट मीडिया की देन है। वर्चुअल दुनिया से निकलकर देखें कि वास्तविक दुनिया कितनी सुंदर है।
उन्होंने कहा कि तस्वीरों से खुशबू नहीं मिलती, नाक से खुशबू लीजिए। तो इंटरनेट मीडिया के जाने से मेरी जिंदगी पर खास फर्क नहीं पड़ेगा।’आपने कामर्शियल फिल्में कम कीं जबकि आर्ट फिल्में ज्यादा कीं?इस पर राहुल कहते हैं,‘कामर्शियल सिनेमा का मतलब क्या है? आप जब भी किसी फिल्म को देखें तो उसमें कहानी बहुत जरूरी होती है। मेरी फिल्मों का बजट छोटा रहा है, क्योंकि मेरा चेहरा पोस्टर पर देखकर चंद सीट बिकेंगी पर सुपरस्टार का चेहरा होने से लाखों बिकेंगी, तो यह बजट का फर्क है। मैंने ‘झंकार बीट्स’, ‘चमेली’, ‘शौर्य’ जैसी फिल्में कीं,लेकिन उनके बजट बहुत नियंत्रित थे। उसमें दुख की क्या बात है। यह तो सच्चाई है।’ संतुलन बना रहता है फिल्म के सेट पर हर बार नए लोगों के साथ काम करना होता है। इन अनुभवों से सीखते हुए अभिनेता राहुल बोस ने करीब 15 साल पहले फैसला किया था कि वो कभी खराब इंसान के साथ काम नहीं करेंगे।
अच्छे-बुरे इंसान की पहचान को लेकर राहुल कहते हैं, ‘शायद आपको किसी की अच्छाई गहराई से पता न हो, लेकिन यह तो पता चल ही जाता है कि फलां शख्स सही नहीं है।’इस तरह कभी किसी किरदार के हाथ से निकल जाने का मलाल रहा?राहुल हंसते हुए कहते हैं,‘कई रोल मुझे ऐसे मिले हैं, जो किसी और को आफर हुए। पहले उसके लिए कोई और पसंद था,लेकिन वो इसे कर नहीं पाया। कई रोल हैं जहां मुझे ना कहना पड़ा। जिंदगी में कभी प्लस, कभी माइनस, दोनों होते हैं।’ ‘पूर्णा’ के बाद बतौर निर्देशक अपनी अगली फिल्म को लेकर राहुल कहते हैं, ‘अगले साल उम्मीद है कि एक फिल्म निर्देशित करूं। मैंने एक फिल्म लिखी है। वह बहुत फनी और अनूठी है। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि दर्शकों को यकीन नहीं होगा कि यह मैंने लिखी है।’
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