तकरीबन हर सामाजिक बुराई और सोच की तंगी पर
राज कपूर ने अपनी फिल्मों के जरिए कमेंट किया। यही वजह है कि दशकों बाद भी उनकी फिल्में कालजयी मानी जाती हैं और उनकी कशिश फीकी नहीं पड़ी है।
हिंदी सिनेमा में शोमैन के उपनाम से मशहूर राज कपूर ने अपने करियर की शुरुआत दस साल की उम्र में 1935 की फिल्म 'इंकलाब' से की थी। 1947 में उन्होंने फिल्म 'नील कमल' में मधुबाला के साथ अभिनय किया।
1948 में आई आग निर्माता और निर्देशक के रूप में राज कपूर की पहली फिल्म थी।
नरगिस के साथ भी उनकी पहली फिल्म थी। दिलचस्प बात यह है कि इस फिल्म में राज के सबसे छोटे भाई शशि कपूर भी बाल कलाकार के रूप में थे। शशि ने यंग 'केवल' की भूमिका निभाई थी। इस फिल्म के जरिए बाहरी सुंदरता के मुकाबले आंतरिक सुंदरता की अहमियत बताई गई थी।
आवारा (1951)
1951 में उन्होंने आवारा का निर्माण, निर्देशन और अभिनय भी किया, जो एक और मेगा हिट थी। फिल्म में उनके साथ नरगिस नजर आई थीं। आवारा ने ना केवल भारत में, बल्कि रूस में भी लोकप्रियता हासिल की, जहां फिल्म और गाने रूसी भाषा में डब किए गए।
थीम सॉन्ग,
आवारा हूं, कई सालों तक ईस्ट में लोकप्रिय था। इस फिल्म को 1953 में कान फिल्म फेस्टिवल में ग्रैंड पुरस्कार के लिए भी नामांकित किया गया था। यह फिल्म बेहद गरीब राज और अमीर रीता के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है।
श्री 420 (1955)
फिल्म में
राज कपूर की भूमिका एक अनाथ की थी, जो अपने सपनों को हकीकत में बदलने के लिए बॉम्बे (अब
मुंबई) आता है। फिल्म की सफलता को इसी बात से समझा जा सकता है कि इसे क्रिटिक्स और दर्शकों से काफी लोकप्रियता मिली।
'मेरा जूता है जापानी' गाना ना सिर्फ तुरंत हिट हुआ, बल्कि नए स्वतंत्र भारत का प्रतीक भी बन गया। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर भी अच्छा-खासा बिजनेस किया था।
जिस देश में गंगा बहती है (1960)
आखिरी ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म
राधू करमाकर द्वारा निर्देशित और राज कपूर द्वारा निर्मित थी और यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट रही थी। राधू, राज कपूर की कई फिल्मों की सिनेमैटोग्राफी कर चुके थे और इस फिल्म से निर्देशकीय पारी शुरू की। डकैतों के पुनर्वास पर बनी ये शुरुआती फिल्मों में शामिल है।
राज ने एक गरीब, मिलनसार अनाथ की भूमिका निभाई, जो गाने गाकर अपना जीवन चलाता है। एक इत्तेफाक से डाकुओं के गैंग के बीच पहुंच जाता है और फिर उन्हें हथियार डालने के लिए मनाता है। फिल्म में पद्मिनी और प्राण भी अहम किरदारों में थे।
संगम (1964)
राज कपूर की पहली रंगीन फिल्म संगम ने खूब सुर्खियां बटोरीं। यह लव ट्रायंगल है, जिसका निर्देशन और निर्माण राज कपूर ने किया था। इसकी शूटिंग वेनिस, पेरिस और स्विट्जरलैंड में हुई थी। फिल्म में राज कपूर और
वैजयंतीमाला के साथ राजेंद्र कुमार ने लीड रोल्स निभाये थे। फिल्म संगीत के अलावा अपनी लम्बाई के लिए भी खूब चर्चा में रही थी। यह सबसे लम्बी भारतीय फिल्मों में शामिल है।
तीसरी कसम (1966)
बासु भट्टाचार्य निर्देशित 'तीसरी कसम' हिंदी नॉवलिस्ट फणीश्वरनाथ रेणु की शॉर्ट स्टोरी 'मारे गए गुलफाम' पर आधारित है। इसमें राज कपूर और
वहीदा रहमान मुख्य भूमिका में हैं।फिल्म एक भोले-भाले बैलगाड़ी चालक हीरामन (राज कपूर) के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे नौटंकी नर्तकी हीराबाई (
रहमान) से प्यार हो जाता है और कैसे वे अपनी स्थितियों पर काबू पाने की कोशिश करने के बाद अपनी वास्तविकताओं को स्वीकार करते हैं। यह फिल्म महिलाओं के शोषण के मुद्दे पर भी आधारित है।
मेरा नाम जोकर (1970)
राज कपूर ने अपनी शानदार फिल्म 'मेरा नाम जोकर' का निर्माण, निर्देशन और अभिनय किया। रिलीज के समय फ्लॉप रही ये फिल्म बाद में क्लासिक मानी गई। राज कपूर ने इस फिल्म के जरिए एक एंटरटेनर के जीवन को छूने की कोशिश की। 'कल खेल में हम हों ना हों, गर्दिश में तारे रहेंगे सदा' गीत इस स्थिति को जाहिर करता है।इस फिल्म में रूसी अभिनेत्री केसेनिया रयाबिंकिना खूब चर्चा में रही थीं।
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ऋषि कपूर ने राज का यंग किरदार निभाया था। सिमी ग्रेवाल यंग राज की टीचर के रोल में थीं। पद्मिनी ने फीमेल लीड रोल निभाया था। राजेंद्र कुमार, मनोज कुमार, धर्मेंद्र ने फिल्म में अलग-अलग भूमिकाओं में कैमियो किये थे। विडम्बना देखिए, बॉक्स ऑफिस पर यह राज कपूर के करियर की सबसे बड़ी असफलता रही।
बॉबी (1973)
इस फिल्म से राज कपूर ने अपने दूसरे बेटे ऋषि कपूर को लॉन्च किया था। डिम्पल कपाड़िया ने फिल्म से बतौर लीड एक्ट्रेस डेब्यू किया। फिल्म बेहद सफल रही। इस फिल्म के गाने भी खूब लोकप्रिय हुए थे।
सत्यम शिवम सुंदरम (1978)
राज कपूर निर्मिति निर्देशित सत्यम शिवम सुंदरम हिंदी सिनेमा की आइकॉनिक फिल्म मानी जाती है। फिल्म आग में पुरुष के जरिए सुंदरता पर बहस छेड़ने वाले राज कपूर ने इस फिल्म में महिला किरदार के जरिए आंतरिक और बाहरी सुंदरता के फर्क को रेखांकित किया था।फिल्म में
जीनत अमान के किरदार के चेहरे को जला हुआ दिखाया था। आग के यंग केवल शशि कपूर इस फिल्म में मुख्य भूमिका में थे। फिल्म जीनत अमान के बोल्ड लुक की वजह से विवादों में भी रही थी। पद्मिनी कोल्हापुरे ने फिल्म में कैमियो किया था। इसका संगीत आज भी उतना ही पसंद किया था।
प्रेम रोग (1982)
प्रेम रोग 1982 में बनी प्रेम कहानी है, जिसका निर्माण और निर्देशन राज कपूर ने किया था। विधवा पुनर्विवाह के विषय पर टिप्पणी करती फिल्म में जमींदारों के घरों में महिलाओं के हालात को भी रेखांकित किया गया। महिला सशक्तिकरण का संदेश देती फिल्म ने आज भी अपनी चमक नहीं खोई है। फिल्म में देवधर (दिवंगत ऋषि कपूर) और मनोरमा (पद्मिनी कोल्हापुरे) की प्रेम कहानी दिखाई गई थी। इसका संगीत भी हिट रहा था।
राम तेरी गंगा मैली (1985)
बतौर निर्देशक राम तेरी गंगा मैली राज कपूर की आखिरी फिल्म थी। इस फिल्म से उन्होंने अपने सबसे छोटे बेटे (दिवंगत)
राजीव कपूर को लॉन्च किया था। साथ में मंदाकिनी की भी फिल्मी पारी शुरू हुई थी। प्रेम रोग की तरह इस फिल्म में भी पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं की बेकद्री का खाका खींचा गया था। हालांकि, अपने विषय के साथ फिल्म मंदाकिनी के प्रस्तुतिकरण को लेकर भी विवादों में रही। यह बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट रही थी। यह भी पढ़ें:
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