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दिलीप कुमार को नौकर से क्यों पिटवाना चाहते थे राज कुमार? अमरीश पुरी के विग पहनने पर कसा था तंज

28 जुलाई 1965 को प्रदर्शित हुई फिल्म ‘वक्त’ ने अभिनेता राज कुमार (Raaj Kumar) को शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया था। फिल्म जगत में मुंहफट अंदाज के लिए चर्चित राज कुमार को निजी जीवन में करीब से जानने वाले फिल्मकार राहुल रवेल ने कुछ किस्से साझा किये हैं जिनसे शायद ही आप वाकिफ होंगे। जानिए उन्हें क्या-क्या कहा है।

By Jagran News Edited By: Rinki Tiwari Updated: Sun, 28 Jul 2024 06:00 AM (IST)
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राज कुमार के इन किस्सों से अनजान होंगे आप। फोटो क्रेडिट- इंस्टाग्राम

कीर्ति सिंह, मुंबई। चिनाय सेठ जिनके घर शीशे के बने होते हैं वो दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते’ फिल्म ‘वक्त’ में राज कुमार (Raaj Kumar) के इस संवाद पर सिनेमाघरों में बैठे दर्शकों की तालियों की गड़गड़ाहट थमती नहीं थी, वहीं ‘हमराज’ फिल्म में उनकी एंट्री का दृश्य, जिसमें कैमरा उनके सफेद जूतों को दिखाता है, चेहरे पर कैमरा आकर टिकने से पहले ही दर्शकों की सीटियां और तालियां बता देती थीं कि हर आयु वर्ग में उनका क्रेज किस कदर था।

बेबाक थे राज कुमार

आदत में समाई थी साफगोई मीडिया में अक्सर कहा गया कि राज कुमार में अहंकार था, पर मुझे लगता है कि वह उनकी साफगोई थी। वह इस बात का विचार नहीं करते थे कि सामने वाला क्या सोचेगा। बेबाग बोलने की यह आदत अभिनेता बनने से पहले पुलिस में सब इंस्पेक्टर की नौकरी की वजह से थी।

राज कुमार ने अमरीश पुरी पर कसा था तंज

राज कुमार ने अमरीश पुरी के साथ ‘हिंदुस्तान की कसम’ और ‘सूर्या: एन अवेकनिंग’ जैसी कई हिट फिल्में दी थीं। एक बार दोनों साथ में शूटिंग कर रहे थे। उस दृश्य में अमरीश पुरी ने विग पहनी थी। एक टेक के बाद अमरीश पुरी संतुष्ट नहीं थे। तब राज कुमार तपाक से बोले कि विग लगाकर हर गंजा राज कुमार नहीं बन सकता। ये अमरीश जी पर तंज था, पर स्वयं के साथ भी उन्होंने विनोद किया था। दरअसल राज कुमार स्वयं विग लगाते थे, ये स्वीकार करने में उन्हें हिचक नहीं थी, हालांकि वह कभी बगैर विग किसी के सामने नहीं आए। असल जीवन में भी हीरो असल जीवन में भी उनका स्टाइल अलग ही था।

राजेंद्र कुमार संग ठुकराई फिल्म

फिल्म ‘लव स्टोरी’ की बात है। मैं फिल्म निर्देशित कर रहा था और राजेंद्र कुमार फिल्म के निर्माता थे। हम सभी चाहते थे कि राज कुमार फिल्म का हिस्सा बनें। राज कुमार को राजेंद्र कुमार के घर बुलाया गया, उन्होंने कहानी सुनी और वो फिल्म करने को राजी हो गए। उन्हें लड़की के पिता का रोल करना था, उन्होंने ये भी हामी भरवा ली कि शूटिंग से 15 दिन पहले वह कश्मीर आएंगे। घूमेंगे-फिरेंगे, गोल्फ खेलेंगे, तब शूटिंग करेंगे।

लौटा दी थी साइनिंग अमाउंट

उन्हें साइनिंग अमाउंट दिया गया। लिफाफे को चूमकर उन्होंने रख लिया। राज कुमार की गाड़ी आगे बढ़ गई। हम सब राहत की सांस ले रहे थे कि सब फाइनल हो गया, इतनी देर में गाड़ी रिवर्स होकर आई और राज कुमार ने पूछा कि लड़के के पिता का रोल कौन करेगा, तब मैंने बताया कि राजेंद्र जी करेंगे। राज कुमार ने कहा कि तुम निर्देशक तो अच्छे हो, पर ऐसा तो हो नहीं सकता कि राजेंद्र कुमार के साथ राज कुमार काम करेंगे। इतना कहकर उन्होंने लिफाफा लौटा दिया। राजेंद्र कुमार वहीं सामने खड़े थे, पर वो उनकी ओर मुखातिब तक नहीं हुए।

शत्रु भी करते थे सम्मान

राज कुमार ने इस बात का हमेशा ध्यान रखा कि उनका पात्र दमदार हो। सह कलाकारों को लेकर भी उनकी अपनी पसंद थी। ‘पैगाम’ के बाद से ही दिलीप कुमार के साथ उनके रिश्ते में खिंचाव था। मेरे पिता एच.एस. रवेल फिल्म ‘संघर्ष’ में दिलीप कुमार और राज कुमार को लेना चाहते थे। राज कुमार ने कहानी सुनी और बोले कि क्लाइमेक्स में थोड़ा बदलाव करना होगा।

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दिलीप को नहीं मारना चाहते थे राज कुमार

दिलीप कुमार का कद छोटा है, मैं उन्हें मारते हुए अच्छा नहीं दिखूंगा।अच्छा होगा कि मैं अपने नौकरों को बुलाकर उनसे दिलीप कुमार के पात्र को पिटवाऊं। बहरहाल उस फिल्म में दोनों के साथ आने को लेकर बात नहीं बनी। करीब 32 वर्ष बाद ‘सौदागर’ में दोनों साथ आए। दिलीप कुमार भी बतौर अभिनेता राज कुमार का सम्मान करते थे।

अंतिम दिनों में यहां जाना चाहते थे राज कुमार

राज कुमार को कैंसर होने की बात सुनकर मेरे पिता व्यथित थे। हम उन्हें देखने उनके घर गए। उतनी पीड़ा में भी उनकी जिंदादिली कायम थी। उन्होंने कहा कि राज कुमार को छोटी बीमारी फ्लू तो नहीं ही होगी, कैंसर ही होगा। अंतिम दिनों में वह उत्तराखंड में रानीखेत स्थित अपने फार्महाउस जाना चाहते थे ताकि भीड़ से दूर एकांत में अंतिम सांस ले सकें, लेकिन व्हील चेयर पर जाना पड़ता। लोग उन्हें बीमारी की हालत में ना देखें, इसलिए वे मुंबई में ही रहे।

राज के अंतिम संस्कार में सबसे पहले पहुंचे थे दिलीप-अमिताभ

बेबस दिखना राज कुमार का मिजाज था ही नहीं। तीन जुलाई, 1996 को तड़के राज कुमार की मृत्यु हुई तो उनके घर के सामने रहने वाले पुलिस अधिकारी के माध्यम से यह समाचार दिलीप कुमार को मिली। उन्होंने अमिताभ बच्चन को बताया। राज कुमार के अंतिम संस्कार में सबसे पहले वे दोनों ही पहुंचे थे। राज कुमार नहीं चाहते थे कि उनकी मृत्यु की खबर से उनके प्रशंसक दुखी हों। चंद लोगों की उपस्थिति में उनका अंतिम संस्कार हुआ।

फर्श से अर्श का सफर तय करने वाले राज कुमार के व्यक्तित्व को फिल्म ‘बुलंदी’ में उनका ही संवाद परिभाषित

करता है कि ‘इरादा पैदा करो, इरादा। इरादे से आसमान का चांद भी इंसान के कदमों में सजदा करता है।’

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