'मैंने घर बेचकर यह फिल्म बनाई...', ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ को प्रोपेगेंडा बताने पर Randeep Hooda ने तोड़ी चुप्पी
Randeep Hooda की आगामी फिल्म Swatantrya Veer Savarkar 22 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। फिल्म में रणदीप हुड्डा राजनेता और क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर की भूमिका निभा रहे हैं। चुनावी माहौल के बीच रिलीज हो रही फिल्म को प्रोपेगेंडा बताए जाने पर रणदीप हुड्डा ने चुप्पी तोड़ी है। अभिनेता ने बताया कि घर बेचकर उन्होंने यह फिल्म बनाई है।
प्रियंका सिंह, मुंबई। कुछ कहानियां ऐसी होती हैं कि कलाकार उन पर सब न्योछावर करने को तैयार होते हैं। रणदीप हुड्डा (Randeep Hooda) के लिए वह फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ (Swatantra Veer Savarkar) है, जिसमें अभिनय के साथ ही उन्होंने लेखन, निर्देशन और सहनिर्माण भी किया है। प्रियंका सिंह के साथ खास बातचीत में जानिए रणदीप ने क्या-क्या कहा...
फिल्म का ट्रेलर आते ही यह विवादों में घिर गई। फिल्म करने के बाद इन चीजों से निपटना तनाव भरा होता होगा?
मेरे शुभचिंतकों ने कहा था कि तुम यह फिल्म मत करो। तुम्हें एक राजनीतिक पार्टी से जोड़ा जाएगा। एक कलाकार को न्यूट्रल रहना चाहिए। मेरा सवाल है कि अगर मैं जवाहरलाल नेहरू पर इसी शिद्दत से फिल्म बनाता, तो जो पार्टी इस वक्त विवाद कर रही है, वह क्या ऐसे ही प्रतिक्रिया देती। खैर, लोगों का काम है कहना। मुझे उससे फर्क नहीं पड़ता।
मना करने के बावजूद फिल्म करने का क्या कारण रहा?
मैं जाट हूं, जिद्दी हूं। इतिहास का विद्यार्थी रहा हूं। वीर सावरकर के बारे में मैंने काला पानी के अलावा खास पढ़ा नहीं था। स्कूल की किताबों में भी सशस्त्र क्रांति का केवल एक पैराग्राफ था। फिर मैंने उनके बारे में हिंदी, अंग्रेजी, मराठी में लिखी कई किताबें पढ़ीं। तब लगा कि इस कहानी को हमारी याद्दाश्त से दूर कर दिया गया है।
मैं इतना पढ़ चुका था कि मैंने फिल्म ही लिख दी। फिर निर्देशक और निर्माता भी बन गया। अच्छा हुआ मैंने किसी की नहीं सुनी। मेरी फिल्म सशस्त्र क्रांति की बात करेगी। मैंने तारीख के अनुसार कहानी को बनाया है। हमारे तो ईश्वर के हाथों में भी हथियार हैं। हिंसा करना गलत है, लेकिन आत्मरक्षा के लिए भी बचाव नहीं करेंगे, तो कैसे चलेगा। मुझे लगा कि इस पर बात होनी चाहिए।
यह भी पढ़ें- कालापानी जेल की जिस सेल में 11 साल बंद रहे सावरकर, 20 मिनट से ज्यादा नहीं टिक पाये Randeep Hoodaआपने कहा था कि विनायक दामोदर सावरकर को जो माफी वीर कहेगा, उसको थप्पड़ पड़ना चाहिए...
मैंने वीर सावरकर को जिया है। वह होते तो थप्पड़ ही लगाते। यह उन पर बेहूदा लांछन लगाया गया है। अब उन्हें माफी वीर के नाम से बुलाया जाने लगा। वीर सावरकर ने माफीनामा या दया याचिका नहीं, बल्कि जमानत याचिका दी थी। सजा होने पर कैदी के पास अधिकार होता है कि वह जमानत याचिका दे सके। 26-27 साल के युवा को 25-25 साल के दो आजीवन कारावास के लिए काला पानी भेज दिया गया। वह पढ़े-लिखे थे।वहां से निकलने का प्रयास तो करेंगे ही। काला पानी में कई अनपढ़ कैदी भी थे, जो खुद के लिए नहीं लड़ सकते थे। वीर सावरकर साम, दाम, दंड, भेद करके वहां से निकले, ताकि स्वतंत्रता संग्राम, देश निर्माण और सामाजिक मामलों में मदद कर सकें। काला पानी की सजा से वह साल 1960 में छूटने वाले थे। क्या वहां घुटते रहते?
मैं ट्रेलर के अंत में कहता हूं कि कांग्रेस के किसी भी आदमी को काला पानी की सजा क्यों नहीं हुई? वीर सावरकर को दो उम्रकैद दी गईं, लेकिन फांसी क्यों नहीं? अगर उन्हें फांसी दे दी जाती, तो वह बलिदानी कहलाते और बड़े नायक बन जाते। जो उन्हें माफी वीर कहते हैं, वह केवल राजनीतिक चोंचले हैं।फिल्म को आप चुनावी माहौल में लेकर आ रहे हैं। इसे प्रोपेगेंडा फिल्म बताया जा रहा है...
यह एंटी प्रोपेगेंडा फिल्म है, जो वीर सावरकर के खिलाफ दुष्प्रचार चल रहा है, उसको तोड़ेगी। मैंने अपना घर बेचकर यह फिल्म बनाई है। लोग कौन से प्रोपेगेंडा की बात कर रहे हैं। ओखली में सिर दिया है, तो मूसल से क्या डरना। जिस पार्टी से लोग इस फिल्म को जोड़ रहे हैं, उसे चुनाव जीतने के लिए मेरी फिल्म की जरूरत नहीं है। चुनावी माहौल में यह फिल्म आ रही है, तो अच्छा है। वीर सावरकर की बातचीत आई- गई नहीं होगी।
वीर सावरकर को भारत रत्न देने की मांग उठती रहती है। आपने उनको जीया है। आपका क्या मानना है?इस फिल्म से एक अभियान चलाना चाहता हूं, ताकि ऐसे गुमनाम नायकों की कहानी बाहर ला सकूं। मुझे लगता है कि फिल्म देखने के बाद आम जनता उनके लिए भारत रत्न की मांग करेगी। वह बात माननी भी पड़ेगी।