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'महिलाओं को हमेशा पैर की धूल दिखाया गया', रत्ना पाठक ने गुरू दत्त और बिमल रॉय की फिल्मों को बताया अपमानजनक

अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह अपनी बेबाक राय रखने के लिए जानी जाती हैं। हाल ही में उन्होंने एक्टिंग स्कूल को दुकान बताने के लिए चर्चा बटोरी थी। अब एक्ट्रेस गुरू दत्त और बिमल रॉय की फिल्मों पर कमेंट करने के लिए चर्चा बटोर रही हैं। उन्होंने बिमल रॉय और गुरु दत्त की फिल्मों में महिलाओं के किरदारों को अपमानजनक बताया है।

By Vaishali Chandra Edited By: Vaishali Chandra Updated: Mon, 13 May 2024 06:27 PM (IST)
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रत्ना पाठक ने गुरू दत्त और बिमल रॉय की फिल्मों को बताया अपमानजनक, (X Image)

एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। रत्ना पाठक शाह ने बिमल रॉय और गुरु दत्त की फिल्मों में महिलाओं के किरदारों को लेकर बात की है। उन्होंने कहा कि इन दिग्गज फिल्ममेकर्स ने अपने फिल्म में महिलाओं को ऐसे दिखाया है कि ये अपमानजनक है। एक्ट्रेस ने अनपढ़ फिल्म के गाने आपकी नजरों ने का उदाहरण भी दिया।

रत्ना पाठक शाह ऐसी अभिनेत्री हैं, जो अपनी बेबाक राय रखने के लिए जानी जाती हैं। कुछ दिनों पहले एक्ट्रेस एक्टिंग स्कूल को दुकान बताने के लिए चर्चा बटोरी थी। अब वो गुरू दत्त और बिमल रॉय की फिल्मों पर कमेंट करने के लिए चर्चा बटोर रही हैं।

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रत्ना को नहीं पसंद ब्लैक एंड व्हाइट टोन

रत्ना पाठक शाह ने अपने हालिया इंटरव्यू में पुरानी फिल्मों के लेकर बात की। हटरफ्लाई के साथ बातचीत में उन्होंने फिल्मों के ब्लैक एंड व्हाइट टोन पर बात की। एक्ट्रेस ने कहा,  "अच्छे लोग केवल अच्छे हो सकते हैं, बुरे लोग केवल बुरे हो सकते हैं, सब कुछ बड़े स्तर पर किया गया था।"

अपमानजनक रहा महिलाओं का किरदार

अनपढ़ फिल्म के गाने आपकी नजरों ने का उदाहरण देते हुए रत्ना पाठक शाह ने कहा, "यहां तक कि कुछ बेहद सुंदर फिल्मों में भी, जो कुछ ज्यादा संवेदनशील लोगों द्वारा बनाई गई हैं। गुरुदत्त की फिल्में हों या बिमल रॉय की फिल्में, महिलाएं बस पुरुषों के चरणों में नजर आती हैं। 'आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे' का भी यही मूड था। मुझे ये कभी समझ नहीं आया। अब मुझे ये आपत्तिजनक लगता है और मुझे लगता है कि कुछ समय के लिए मैंने भी इसे अपना लिया था।''

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देवी से खलनायिका तक

रत्ना पाठक शाह ने इस बात की भी आलोचना की कि कैसे महिलाओं के किरदारों को पवित्र पत्नी से लेकर पिशाचिनी तक दिखाया गया था। उन्होंने कहा, "ये सीधे देवी से खलनायिका तक चला गया, और दोनों ही अच्छे नहीं हैं। मुझे लगता है कि हम पुरुषों की तरह ही जटिल हैं, और ये अफसोस की बात है कि हमारी कहानी कहने का तरीका कभी भी इंसानों के बीच दिलचस्पी का कारण नहीं बन पाया।"