'दूर हटो ऐ दुनिया वालों...', वह गाना जिसने अंग्रेजों की नाक में किया दम, 1931 में आई ये फिल्म भी बन गई थी सिरदर्द
Republic Day 2024 हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में हर तरह के ओकेजन के लिए कई गाने बने हैं। दशभक्ति पर गानों को आज भी लोग सुनना पसंद करते हैं। बच्चा-बच्चा तक देशभक्ति के गानों पर झूमते नजर आता है। लेकिन इनमें से कुछ गाने ऐसे हैं जिनकी रचना मतलब और रिलीज तक को लेकर दिलचस्प कहानी है। इस गणतंत्र दिवस के मौके पर हम ऐसे ही एक गाने पर बात करेंगे।
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। 26 जनवरी को हर साल देश में धूमधाम से गणतंत्र दिवस (Republic Day) का जश्न मनाया जाता है। देश का संविधान लागू होने की खुशी में बच्चा-बच्चा तक देशभक्ति के गानों पर झूमते हुए नजर आता है। इनमें कुछ गाने आज भी फेमस है। लेकिन इन गानों के पीछे एक कहानी छिपी है। आज हम आपको ऐसे ही एक गाने के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अंग्रेजों के लिए सिरदर्द बन गया था।
1943 में रिलीज हुई थी ये फिल्म
अंग्रेजों के शासनकाल में कभी भारत के लिए एक मौका ऐसा भी आया था, जब निर्माता-निर्देशकों ने चालाकी से सेंसर बोर्ड को गुमराह किया। 'किस्मत' (1943) को बॉलीवुड की पहली एंटी-हीरो फिल्म माना जाता है। इस फिल्म में अशोक कुमार (Ashok Kumar) लीड रोल में थे और वह क्रिमिनल बने थे। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित हुई और आने वाले कई वर्षों तक चलती रही।
अंग्रेजों के लिए सिर दर्द बन गया था ये गाना
यह फिल्म गणतंत्र दिवस के पहले यानी भारत का संविधान लागू होने से पहले रिलीज की गई थी। मूवी में एक गाना है, जिसे आज भी सुना जाता है। हालांकि, उस जमाने में ये गाना अंग्रेजों के लिए सिर दर्द से कम नहीं था। यह गाना था- आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है। दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है। फिल्म का संगीत तैयार किया था अनिल बिस्वास (Anil Biswas) ने। फिल्म रिलीज से पहले सेंसर बोर्ड ने गाने पर आपत्ति जताते हुए इसे हटाने की बात कही थी।
गाना लिखने वाले ही हो गए थे अंडरग्राउंड
दरअसल, उन दिनों में इस तरह के मुद्दों पर फिल्में बनाने का चलन तेज नहीं था। तब सेंसर बोर्ड में यह तर्क दिया गया कि फिल्म अंग्रेजों के खिलाफ नहीं, बल्कि जर्मनी और जापान जैसी ताकतों के खिलाफ है, जो ब्रिटेन के खिलाफ मैदान में हैं। गाने में एक लाइन आती है 'शुरू हुआ है जंग तुम्हारा, जाग उठो हिन्दुस्तानी, तुम न किसी के आगे झुकना, जर्मन हो या जापानी, आज सभी के लिए हमारा यही कौमी नारा है।' इसी लाइन की बदौलत निर्माता सेंसर बोर्ड के सामने अपनी बात रखने में कामयाब रहे।
(1943) Bombay Talkies Studio at Malad (Mumbai)
This is the promotion of ‘Kismet’ - considered the highest grossing film then and the first film with an anti-hero protagonist. pic.twitter.com/XDbxVWJSIc— Film History Pics (@FilmHistoryPic) February 17, 2020
फिल्म 'भारत छोड़ो आंदोलन' के छह महीने बाद रिलीज हुई थी। रिलीज के साथ ही ये गाना भी काफी फेमस हुआ। ये गाना आजादी की लड़ाई लड़ रहे हर व्यक्ति की जुबां पर था। मगर सॉन्ग की पॉपुलैरिटी के साथ ही अंग्रेज सरकार ने गाना लिखने वाले कवि प्रदीप (Kavi Pradeep) की खोज शुरू कर दी। इस बात की भनक लगते ही कवि प्रदीप अंडरग्राउंड हो गए, ताकि देशद्रोह के आरोप में उन्हें गिरफ्तार न कर लिया जाए।
यह था वह गाना जिस पर हुई थी आपत्ति
आज हिमालय की चोटी से फिर हम ने ललकरा है,
दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है।
जहाँ हमारा ताज-महल है और क़ुतब-मीनारा है,
जहाँ हमारे मन्दिर मस्जिद सिखों का गुरुद्वारा है,
इस धरती पर क़दम बढ़ाना अत्याचार तुम्हारा है।
शुरू हुआ है जंग तुम्हारा जाग उठो हिन्दुस्तानी,
तुम न किसी के आगे झुकना जर्मन हो या जापानी,
आज सभी के लिये हमारा यही कौमी नारा है।
देशभक्ति दिखाते रिलीज हुए थे ये गाने भी
1931 में वी. शांताराम की फिल्म 'स्वतंत्रयाचा तोरन' रिलीज हुई थी। यह मूवी मराठा सम्राट शिवाजी के बारे में थी। अंग्रेजों के शासनकाल में रिलीज हुई इस फिल्म का टाइटल बदलकर 'उद्याकल' कर दिया गया। साथ ही फिल्म में और भी बदलाव किए गए तब जाकर फिल्म रिलीज हो सकी।
इसी तरह 1946 में चेतन आनंद की 'नीचा नागर' रिलीज हुई थी। फिल्म में अमीरों और गरीबों के बीच अंतर दिखाया गया था। फिल्म मक्सिम गोर्की के नाटक द लोएस्ट डेप्थ्स पर आधारित थी, जिसमें चेतन आनंद ने उनकी आजादी के विचारों को साफ तौर पर दिखाया। ये फिल्म कांस फिल्म फेस्टिवल में पाल्मे डी ओर अवॉर्ड पाने वाली पहली भारतीय फिल्म है।
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