Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

कॉलेज में गर्लफ्रेंड ने दिल तोड़ा तो देवदास बन गए थे Rishi Kapoor, ताज होटल में लोगों को बांटी फ्री ड्रिंक्स

प्रेम कहानियों का संजीदा नायक भय पैदा करने वाला खलचरित्र या चरित्र भूमिकाओं में ढलने की कला सभी में माहिर थे ऋषि कपूर। अभिनय से इतर जो बात उन्हें खास बनाती थीवह उनकी बेबाकी थी। जीतेंद्र के साथ उन्होंने फिल्म ‘कुछ तो है’ की थी। इसकी निर्देशक एकता कपूर थी फिल्म रिलीज हुई तो बॉक्स ऑफिस पर अच्छा कमाल नहीं कर पाई। ऋषि ने इसके लिए उन्हें बहुत डांट लगाई।

By Surabhi Shukla Edited By: Surabhi Shukla Updated: Sat, 31 Aug 2024 07:50 PM (IST)
Hero Image
ऋषि कपूर के बारे में अनजानें किस्से

कीर्ती सिंह, मुंबई। ‘प्रेम तो वो रोग है जो आसानी से लगता नहीं और जब लग जाता है तो कभी मिटता नहीं।’ फिल्म ‘प्रेम रोग’ में ऋषि कपूर के इस संवाद पर सिनेमाघरों में दर्शकों ने खूब तालियां बजाई थीं। पर्दे का यह संवाद उनके वास्तविक जीवन का सच बन गया। फिल्मों में उनकी नायिकाएं बदलती रहीं,पर प्रेम में डूबे नायक के हर पात्र को वह जीवंत कर देते थे। उससे इतर जब असल जीवन में किसी के प्रति आकर्षित हुए तो उसका वाकया भी दिलचस्प था।

ऋषि कपूर से जुड़ी स्मृतियों के बारे में हमसे बात की उनके बचपन के दोस्त और फिल्मकार राहुल रवेल ने। आइए जानते हैं बातचीत के कुछ अंश।

कॉलेज में यास्मीन ने तोड़ा दिल

कॉलेज के दिनों की साथी यास्मीन ने जब उनका दिल तोड़ा तो देवदास बन गए। मुंबई के ताज होटल पहुंचे और ड्रिंक करने के बाद वहां मौजूद लोगों को भी अपनी ओर से ड्रिंक ऑफर करने लगे। राहुल ने बताया कि दोस्त का मनोबल बनाए रखने के लिए उस वक्त वो भी उनके साथ थे। बार बंद होने के समय जब बिल चुकाने की बारी आई तो पैसे कम पड़ गए। होटल वालों ने रोक लिया फिर किसी तरह एक दोस्त के माध्यम से पैसे का इंतजाम किया गया और बिल चुकाया। बाद में हम इस घटना को याद करके मुस्कुराते भी थे। हालांकि बाद में जब ऋषि जी को कई फिल्मों में उनके साथ काम कर चुकीं अभिनेत्री नीतू सिंह से प्यार हुआ तो फिर कभी किसी के साथ उनका नाम नहीं जुड़ा।

यह भी पढ़ें: जब Rishi Kapoor ने पिता राज कपूर और नरगिस के अफेयर पर की थी बात, बोले- शादीशुदा लोगों के साथ हो जाते हैं हादसे

राज कपूर का बहुत सम्मान करते थे ऋषि

ऋषि अपने पिता राज कपूर का इतना सम्मान करते थे कि उनके सामने सिगरेट को हाथ नहीं लगाते थे। उनके फ्रेंड ने कहा, 'एक बार मैं और चिंटू (ऋषि कपूर को बचपन में प्यार से दिया नाम) लंदन में स्टेशन पर ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहे थे। चिंटू ने सिगरेट सुलगाई ही थी कि अचानक उनके चेहरे का रंग बदल गया। जल्दी में सिगरेट तुरंत बुझा दी। मैंने पूछा कि क्या हुआ,तो उन्होंने कहा कि सामने एयर इंडिया की ड्रेस में उन्होंने उसके क्रू मेंबर को आते देखा है,अगर उन्होंने राज साहब को बता दिया तो वह कितना नाराज होंगे।'

अपने पिता को साहब बुलाते थे ऋषि

वो अपने पिता को साहब कहकर पुकारते थे जिसकी कहानी अलग है। राहुल और चिंटू ने साथ में करियर शुरू किया था। फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ में उन्होंने नायक के बचपन का पात्र निभाया था,जबकि राहुल फिल्म में सर्कस वाले अंश के शूटिंग शेड्यूल से बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर जुड़ा थे। पहले मैं राज साहब को राज अंकल बोलता था पर सेट पर सब उन्हें साहब बोलते थे तो मैंने भी साहब बोलना शुरू कर दिया। मुझे ऐसा करते देखकर चिंटू भी उन्हें साहब बोलने लगे।

बेबाक अंदाज के लिए जाने जाते हैं ऋषि

फिल्म ‘बाबी’ से बतौर नायक करियर आरंभ करने के बाद उन्होंने 90 से अधिक फिल्मों में रोमांटिक एक्टर के तौर पर काम किया। बेबाक अंदाज के लिए पूरी इंडस्ट्री में उनकी प्रशंसा होती थी। जब उन्होंने आत्मकथा ‘खुल्लम खुल्ला’ लिखी तो प्रतिक्रिया की परवाह किए बिना हर वाकये को सच्चाई से सामने रखा। जीतेंद्र के साथ उन्होंने फिल्म ‘कुछ तो है’ की थी, जिसकी निर्देशक एकता कपूर थीं। फिल्म बनने के दौरान कहानी में कई बदलाव हुए, किसी तरह फिल्म पूरी हुई। जब सिनेमाघरों में फिल्म लगी तो बुरी तरह फ्लाप रही, जिसके लिए उन्होंने एकता को खरी-खरी सुनाई थी।

जीतेंद्र को यह बात अच्छी नहीं लगी, कुछ समय वह नाराज भी रहे, लेकिन ‘खुल्लम खुल्ला’ के रिव्यू में उन्होंने ऋषि जी की खूब तारीफ की। जीतेंद्र ने कहा कि बेलाग सच बोलने के लिए हिम्मत चाहिए। इससे ऋषि के साथ उनकी मित्रता कम नहीं होती। अवार्ड खरीदने की बात भी उन्होंने बेबाकी से स्वीकार की।

यह भी पढ़ें: 'खराब डायरेक्टर थे ऋषि कपूर', बेटे Ranbir Kapoor ने बताया- 'क्यों नहीं बन पाए अच्छे निर्देशक'